जागते दिनों की तमाम साज़िशों के बाद नींद एक मरहम है यह हौले से आकर चुपचाप भरती है आग़ोश में माँ-सी थपकियाँ देती है और हम एक मौत ओढ़कर सो जाते हैं मृत्यु के इन नितांत निजी पलों में कल…
जागते दिनों की तमाम साज़िशों के बाद नींद एक मरहम है यह हौले से आकर चुपचाप भरती है आग़ोश में माँ-सी थपकियाँ देती है और हम एक मौत ओढ़कर सो जाते हैं मृत्यु के इन नितांत निजी पलों में कल…
खबर है पोलैंड के भूतपूर्व राष्ट्रपति अब फिर से अपने पुराने धंधे में लौटना चाहते हैं। मजदूर नेता से राष्ट्रपति बनने से पहले वे बिजली मिस्त्री थे। अब फिर से बिजली की बिगड़ी चीजें दुरुस्त करेंगे। स्वाभाविक है कि जब…
कुछ लोगों का कोई देश नहीं होता इस पूरी पृथ्वी पर ऐसी कोई चार दीवारों वाली छत नहीं होती जिसे वे घर बुला सकें ऐसा कोई मानचित्र नहीं जिसके किसी कोने पर नीली स्याही लगा वह दिखा सकें अपना राज्य…
अच्छी कविता अब तक थोड़ी बहुत कोर्स की किताबों में, पत्रिकाओं में दो पन्नों पर और उससे भी कम कविता संग्रहों में बची थी, मंचों से तो वह कब की विदा हो चुकी थी लेकिन अब जहां देखो कविता ही…
एक बार एक नाटक की रिहर्सल चल रही थी। संयोग से नाटक का निर्देशक उन्हीं के विभाग का एक टाइपिस्ट था और पाठक जी तब तक अधिकारी बन चुके थे। निर्देशक के बार बार समझाये जाने पर भी वे वही…
उन मैडम से आज भी माफ़ी मांगनी बाकी है। बी ए में एडमिशन जिस घटना ने जिंदगी के प्रति मेरा नज़रिया बदला बुद्धू होते हैं न प्यार में इस घटना ने मुझे लेखक बनाया हम दोनों ने प्यार के चक्कर…
आषाढ़ के एक दिन में हृदय में कोई नाम बारिशों-सा हल्का काग़ज़ पर लिखना चाहूँ तो एक भारी पत्थर पानी-सी बहती है अडेल की आवाज़ : बारिशों को आग लगा दो… और कहीं एक तपता रेगिस्तान रो देता होगा संसार…
एक पुरुष ने लिखा दुखऔर यह दुनिया भर के वंचितों की आवाज़ बन गयाएक स्त्री ने लिखा दुःखयह उसका दिया एक उलाहना था एक पुरुष लिखता है सुखवहाँ संसार भर की उम्मीद समाई होती हैएक स्त्री ने लिखा सुखयह उसका…
उस घर से जाते हुए अंजुलि भर अन्न लेनाऔर पीछे की ओर उछाल देनापलट कर मत देखना पुत्री, बँध जाओगीतुम अन्न बिखेरो, पिता-भाई को धन-धान्य का सौभाग्य सौंपोऔर आगे बढ़ जाओख़ुद को यहाँ मत रोपनाहमने तुम्हें हृदय में सहेज लिया…
हम स्मृतियों में लौटते हैं क्योंकि लौटने के लिए कहीं कुछ और नहीं वे सभी जगहें जहाँ हम जा सकते थे हमारी पहुँच से थोड़ा आगे बढ़ चुकी हैं या इतना पीछे छूट गई हैं कि हमारे पैर नहीं नाप…