वहाँ किसी को जीतना नहीं है हार दोनों की तय है प्रेम के उत्कट क्षण ख़ुद को ख़ाली करता हुआ एक उन्मत्त, अधीर उसे ख़ुद में समेट लेने को व्याकुल प्रणयी बाँहें वक्ष, उदर, ग्रीवा, पृष्ठ, भुजाएँ आँखें, चिबुक, कर्ण…
वहाँ किसी को जीतना नहीं है हार दोनों की तय है प्रेम के उत्कट क्षण ख़ुद को ख़ाली करता हुआ एक उन्मत्त, अधीर उसे ख़ुद में समेट लेने को व्याकुल प्रणयी बाँहें वक्ष, उदर, ग्रीवा, पृष्ठ, भुजाएँ आँखें, चिबुक, कर्ण…
वह जो असाधारण स्त्री है वह तुम्हारे प्रेम में पालतू हो जाएगी उसे रुचिकर लगेगी वनैले पशुओं-सी तुम्हारी कामना रात्रि के अंतिम प्रहर में तुम्हारे स्पर्श से उग आएगी उसकी स्त्री पर उसे नहीं भाएगा यह याद दिलाए जाना सूर्य…
1. बर्तनों के बच्चे एक गांव में रहने के लिए एक नया शहरी आया। चाय पानी के बहाने सबसे मेल जोल बढ़ाया।एक दिन वह गांव के सबसे धनी आदमी के घर पहुंचा और बोला – शहर से कुछ मेहमान आने…
वह कस कर जकड़ता है उसे अपने बाज़ुओं में और चाहता है कि प्रेयसी की देह पर छूट गए अनगिनत नील निशानों को आने वाले दिनों के लिए सहेज लिया जाए जब शेष हो अनुपस्थिति की नमी उसके आतुर होंठ…
अस्पर्श स्त्री अपनी योनि में रहती है यह नानी ने अपनी माँ से सुना था उन्होंने पहले माँ और फिर मुझे इतने कपड़ों में लपेटा कि धूप, हवा, बारिश सबसे अछूती रही वह मालिश के दौरान भी भले ही खुली…
13. विकल्प वह भिखारन थी। होश सँभालते ही उसने भीख माँगना शुरू कर दिया था। भीख माँगते समय उसे हर किस्म के ताने सुनने पड़ते थे, गालियाँ सुननी पड़ती थी, पर पेट की भूख और बरसों से भीख माँगने की…
9. विकल्पहीन वे बहुत सारे हैं। अलग अलग उम्र के लेकिन लगभग सभी रिटायर्ड या अपना सब कुछ बच्चों को सौंप कर दीन दुनिया से, सांसारिक दायित्वों से मुक्त। सवेरे दस बजते न बजते वे धीरे–धीरे आ जुटते हैं यहाँ…
5. विकल्प “सुन री, अगले हफ्ते से बजाज सेंटर में चाइनीज और ओरिएंटल कुकरी की क्लासेस शुरू हो रही है। बहुत मन कर रहा हैं मेरा ओरिएंटल खाना बनाना सीखने का लेकिन जाऊं कैसे? “क्यों, क्या परेशानी है?” “परेशानी सिर्फ…
1. विकल्पहीन उस स्कूल की हैडमिस्ट्रेस रोज ही देखती है कि मिसेज मनचन्दा स्कूल का समय खत्म हो जाने के बाद भी स्कूल में ही बैठी रहती हैं और लाइब्रेरी वगैरह में समय गुजारती हैं। वे आती भी सबसे पहले…
सोचती हूँ कि तुम्हें एक घर तोड़ने का इल्ज़ाम दूँ या कि उस पुरुष के कहीं रिक्त रह गए हृदय को भरने का श्रेय जो घर गृहस्थी के झमेलों में शायद मेरे प्रेम को ठीक से ग्रहण नहीं कर पाया…