आषाढ़ के एक दिन में
हृदय में कोई नाम
बारिशों-सा हल्का
काग़ज़ पर लिखना चाहूँ तो एक भारी पत्थर
पानी-सी बहती है अडेल की आवाज़ :
बारिशों को आग लगा दो…
और कहीं एक तपता रेगिस्तान रो देता होगा
संसार की सभी अच्छी लड़कियाँ
अपने सपनों में देखती हैं आवारा, दिलफ़रेब बादल
सूनी छतों पर एक उम्र खोती हैं उनके इंतज़ार में
कागा सब तन खाइयो… चुन-चुन खाइयो…
दो नैना मत खाइयो पिय मिलन की आस
यू आर टू मच इन माय हार्ट
मेरीएन के लिए तड़पती कोहेन की मद्धिम आवाज़ गूँजती है
और आत्मा शरीर हो जाती है
चाहती है चूम लेना एक माथा
यायावर राग-सा वह प्रेमी
जिसके जिस्म पर सती की राख है
ऋतु-राग में उफनती समस्त नदियाँ भी
जिसे नहीं बहा ले जा सकती
वह जो आरंभ ही नहीं हुआ
वह कभी अंत भी नहीं होगा
क्योंकि संसार के सभी ख़ूबसूरत प्रारंभ
एक दुखद अंत की भविष्यवाणी साथ लिए आते हैं
आषाढ़ के मेघ की मानिंद
सृष्टि के साथ जो दूत है प्रलय का
दुनिया के समस्त कवि अभी भी डूब जाते हैं
मल्लिका की आँखों के थिर जल में
जो नहीं बरसा आषाढ़ के उस दिन भी
कि एक हृदय की आँच बाक़ी रहे
कुछ शब्द पानी से बहते रहें
पृथ्वी की शुष्क हो रही प्रतीक्षा के बीच
नागार्जुन का कवि
या कि कालिदास का यक्ष
शब्दों से छन आती है उनकी व्यथा
और धुँधली हो आती है काग़ज़ों की सारी स्याही
जब मेघ-पाती के इंतज़ार में
पत्थर हो रही लड़कियाँ
बरसती होंगी आषाढ़ के एक दिन में
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रश्मि भारद्वाज की प्रमुख कविताऐं - Kathanak
July 3, 2021 at 12:17 pm[…] आषाढ़ का एक दिन […]