एक चाँद पर भी कितनी धूल है तुम रूमाल लाई हो न मीनाक्षी ये आँसू नहीं है धूल पड़ गई है आँखों में मैंने चश्मे सारे छोड़ दिए बिस्तर पर ही और आँखें लिए चला आया मना तो किया था…
Poetry is a form of literature that uses aesthetic and often rhythmic qualities of language, such as phonaesthetics, sound symbolism, and metre to evoke meanings in addition to, or in place of, the prosaic ostensible meaning.
एक चाँद पर भी कितनी धूल है तुम रूमाल लाई हो न मीनाक्षी ये आँसू नहीं है धूल पड़ गई है आँखों में मैंने चश्मे सारे छोड़ दिए बिस्तर पर ही और आँखें लिए चला आया मना तो किया था…
एक दिन आता है जब शरीर सिकुड़ कर अस्थि मात्र रह जाता हैजीवन के हर उल्लास पर भारी हो जाती हैं व्याधाएंस्मृतियाँ लुका छिपी का खेल खेलती हर बार मात दे जाती हैंएक मृत्यु है जिसकी शेष रहती है प्रतीक्षाहर…
एक इस जंगल में एक मोर था आसमान से बादलों का संदेशा भी आ जाता तो ऐसे झूम के नाचता कि धरती के पेट में बल पड़ जाते अंखुआने लगते खेत पेड़ों की कोख से फूटने लगते बौर और नदियों…
दिशाएँ पिघलते बर्फ़-सी बेशक्ल गोजर की तरह असंख्य पैरों से रेंगती समय की पीठ पर कच्छप से खुरदुरे निशानों में समय को बींधते से कँटीले बाड़ बाँधती उस पार से इस पार तक रिस-रिसकर जा रही हैं, क्वार की अनमनी…
किसी अनजान-सी बीमारी से या फिर महल की सीढ़ियों से गिरकर खाते-खाते या फिर सोते-सोते मामूली ज़ुकाम या फिर उम्र के बोझ से ही दबकर अमरत्व की इच्छा लिए राजा भी मरेगा एक दिन बदसूरत हेडलाइनों और रूदालियों के अनमने…
एक आधी रात बाक़ी है जैसे आधी उम्र बाक़ी है आधा क़र्ज़ बाक़ी है आधी नौकरी आधी उम्मीदें अभी बाक़ी हैं पता नहीं आधा भी बचा है कि नहीं जीवन अब भी अधूरे मन से लौट आता हूँ रोज़ शाम…
पुल की बात करते ही बचपन का एक पुल याद आता हैजो नानी घर जाने के रास्ते में आया करता थाइतना संकरा और इतना कमजोर कि एक रिक्शा भी गुजरता तो हिल पड़ता थाउसपर से गुजरते मैं हमेशा भय से…
घर के सबसे उपेक्षित कोने में बरसों पुराना जंग खाया बक्सा है एक जिसमें तमाम इतिहास बन चुकी चीज़ों के साथ मथढक्की की साड़ी के नीचे पैंतीस सालों से दबा पड़ा है माँ की डिग्रियों का एक पुलिंदा बचपन में…
एक क़त्ल की उस सर्द अँधेरी रात हसन-हुसैन की याद में छलनी सीनों के करुण विलापों के बीच जिस अनाम गाँव में जन्मा मैं किसी शेष नाग के फन का सहारा हासिल नहीं था उसे किसी देव की जटा से…
फ़ोर बाई फ़ोर के क्यूबिकल में फँसे इंसान को कितना उड़ना चाहिए !ज़्यादा से ज़्यादा उसे देखना चाहिएएक अदद गाड़ी का सपनावह देख सकता है दो कमरों का आधुनिक फ़्लैटऔर सजे-धजे बच्चे भीफिर उसे सोचना चाहिए इ०एम०आई० के बारे मेंसीखना…