हम स्मृतियों में लौटते हैं क्योंकि लौटने के लिए कहीं कुछ और नहीं वे सभी जगहें जहाँ हम जा सकते थे हमारी पहुँच से थोड़ा आगे बढ़ चुकी हैं या इतना पीछे छूट गई हैं कि हमारे पैर नहीं नाप…
Poetry is a form of literature that uses aesthetic and often rhythmic qualities of language, such as phonaesthetics, sound symbolism, and metre to evoke meanings in addition to, or in place of, the prosaic ostensible meaning.
हम स्मृतियों में लौटते हैं क्योंकि लौटने के लिए कहीं कुछ और नहीं वे सभी जगहें जहाँ हम जा सकते थे हमारी पहुँच से थोड़ा आगे बढ़ चुकी हैं या इतना पीछे छूट गई हैं कि हमारे पैर नहीं नाप…
इस अनिश्चित जीवन में स्थायी बस सहेज लिए गए दुःख हैं वह रौशनी के लिए खोलती है खिड़कियाँ बाहर पत्थर उसकी प्रतीक्षा में रहते हैं सुख बाईं आँख में भूल से पड़ आया एक कंकड़ है जो ढेर सारे पानी…
पूर्वार्द्ध मैंने अपनी देह सहेजीऔर आत्मा को प्रताड़ित कियाउसे अक्सर विषाद के खौलते तेल में तड़पता छोड़ दिया या आँसुओं के खारेपन में डूब जाने दिया,स्मृतियों के गहन वन में भटकतीवह भूलती गई वापसी का रास्ता, अपना अनंत संगीत विस्मृत…
किसी कामनावश नहीं मिले थे उनके होंठ सदियों से अतृप्त थीं वे शताब्दियों से निर्वासित देवों के हृदय से जिनकी शय्या पर बिछाई जाती रहीं फूलों की तरह और मसल कर फेंकी जाती रहीं भोगा गया तन अनछुई रही आत्मा…
एक शहर में मेरी रिहायश को सोलहवाँ साल लगा है पर यह उम्र का वह सोलह नहीं जहाँ से एक दुनिया बननी शुरू होती है इस सोलहवें में एक शहर के हिस्से लिखे जा चुके हैं : मेरे जीवन के…
लौटना सिर्फ़ एक शब्द मात्र नहीं है इसके उच्चारण भर से लौटता है एक इतिहास अव्यस्थित हो जाता है एक भूगोल लौटते हुए तुम खोजते हो तुम्हारे पदचापों की पहचान से भरी पगडंडियाँ पर वे सब की सब या तो…
गाँव के सीमांत पर सदियों से खड़ा था एक बूढ़ा बरगद— किसी औघड़-सा अपनी जटाएँ फैलाएँ अपने गर्भ में सहेजे था एक देवता-स्त्री को यह रक्षक स्त्री है तो गाँव सलामत है, ऐसा कहते कई पीढ़ियाँ गुज़र गईं उसके खोंइछे…
जबकि हममें से कइयों को इस बात पर भी दुविधा हो सकती है कि हम प्रेम की संतानें हैं या नफ़रत की या किसी रात एक दिनचर्या या अनिच्छा से ही गुज़रते हुए हमें सँजो लिया गया अपने गर्भ में…
वहाँ किसी को जीतना नहीं है हार दोनों की तय है प्रेम के उत्कट क्षण ख़ुद को ख़ाली करता हुआ एक उन्मत्त, अधीर उसे ख़ुद में समेट लेने को व्याकुल प्रणयी बाँहें वक्ष, उदर, ग्रीवा, पृष्ठ, भुजाएँ आँखें, चिबुक, कर्ण…
वह जो असाधारण स्त्री है वह तुम्हारे प्रेम में पालतू हो जाएगी उसे रुचिकर लगेगी वनैले पशुओं-सी तुम्हारी कामना रात्रि के अंतिम प्रहर में तुम्हारे स्पर्श से उग आएगी उसकी स्त्री पर उसे नहीं भाएगा यह याद दिलाए जाना सूर्य…