बातों की पाँखों पर दुनिया का बसेराबातें जो डैनें फैलातींतो पल दो पल सुस्ताती मुण्डेर परफिर जा पसरती गिरजी चाची की खटिया परसूखती मिरचाई के संगतीखी, लाल, करारी हो उठती बच्चू बाबा के हुक्के में घुसतीधुएँ के नशे में मदमस्त…
Poetry is a form of literature that uses aesthetic and often rhythmic qualities of language, such as phonaesthetics, sound symbolism, and metre to evoke meanings in addition to, or in place of, the prosaic ostensible meaning.
बातों की पाँखों पर दुनिया का बसेराबातें जो डैनें फैलातींतो पल दो पल सुस्ताती मुण्डेर परफिर जा पसरती गिरजी चाची की खटिया परसूखती मिरचाई के संगतीखी, लाल, करारी हो उठती बच्चू बाबा के हुक्के में घुसतीधुएँ के नशे में मदमस्त…
मैं असीम आकाश को सौंपती हूँ मेरा निर्णयनदी से कहती हूँ मुझे बताओ कैसे बहना है,सड़क का पत्थर जो असँख्य ठोकरों के बाद भी सलामत है,उसे ज़िन्दगी मुझसे बेहतर जीनी आती हैमिट्टी की ख़ुशबू भर से एक नन्ही बेल बोतल…
तुम्हारे लिखे दो शब्दों के बीच बेख़्याली से जो जगह छूट जायेगी,मैं अपनी कविता के साथ वहां मिल जाया करुंगीउसी जगह, जहाँ तुम्हारे रचे इतिहास से वंचित किए गए लोग रहते हैं,हारे -थके और दमित लोगवहीं, जहाँ उनके आँसू रहते…
एक पुरुष ने लिखा दुखऔर यह दुनिया भर के वंचितों की आवाज़ बन गयाएक स्त्री ने लिखा दुःखयह उसका दिया एक उलाहना था एक पुरुष लिखता है सुखवहाँ संसार भर की उम्मीद समायी होती हैएक स्त्री ने लिखा सुखयह उसका…
प्रेम-घातों को किससे कहे लड़की वह इश्क़ लिखे तो काग़ज़ पर फ़रेब उगे रोना मुफ़ीद नहीं किसी के सामने प्याज़ काटने का बहाना हो या नल की धार बहती हो बंद दरवाज़े के पार 85 नंबर की बस में रात…
जागते दिनों की तमाम साज़िशों के बाद नींद एक मरहम है यह हौले से आकर चुपचाप भरती है आग़ोश में माँ-सी थपकियाँ देती है और हम एक मौत ओढ़कर सो जाते हैं मृत्यु के इन नितांत निजी पलों में कल…
कुछ लोगों का कोई देश नहीं होता इस पूरी पृथ्वी पर ऐसी कोई चार दीवारों वाली छत नहीं होती जिसे वे घर बुला सकें ऐसा कोई मानचित्र नहीं जिसके किसी कोने पर नीली स्याही लगा वह दिखा सकें अपना राज्य…
आषाढ़ के एक दिन में हृदय में कोई नाम बारिशों-सा हल्का काग़ज़ पर लिखना चाहूँ तो एक भारी पत्थर पानी-सी बहती है अडेल की आवाज़ : बारिशों को आग लगा दो… और कहीं एक तपता रेगिस्तान रो देता होगा संसार…
एक पुरुष ने लिखा दुखऔर यह दुनिया भर के वंचितों की आवाज़ बन गयाएक स्त्री ने लिखा दुःखयह उसका दिया एक उलाहना था एक पुरुष लिखता है सुखवहाँ संसार भर की उम्मीद समाई होती हैएक स्त्री ने लिखा सुखयह उसका…
उस घर से जाते हुए अंजुलि भर अन्न लेनाऔर पीछे की ओर उछाल देनापलट कर मत देखना पुत्री, बँध जाओगीतुम अन्न बिखेरो, पिता-भाई को धन-धान्य का सौभाग्य सौंपोऔर आगे बढ़ जाओख़ुद को यहाँ मत रोपनाहमने तुम्हें हृदय में सहेज लिया…