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इस्मत चुगताई

21 अगस्त 1915 को उत्तर प्रदेश के बदायूं में जन्मी इस्मत चुगताई उर्दू साहित्य की सर्वाधिक विवादास्पद और सर्वप्रमुख लेखिका थी। उन्हें ‘इस्मत आपा’ के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने आज से लगभग 70 साल पहले पुरुष प्रधान समाज में स्त्रियों के मुद्दों को स्त्रियों के नजरिए से कहीं चुटीले और कहीं संजीदा ढंग से पेश करने का जोखिम उठाया। न सिर्फ स्त्रियों के सवाल बल्कि उन्होंने समाज की कुरीतियों, व्यवस्थाओं और अन्य पात्रों को भी अपनी कहानियों में बखूबी पेश किया। उनके अफसानों में करारा व्यंग्य मौजूद है।

इस्मत आपा ने अपनी कहानियों में ठेठ मुहावरेदार गंगा जमुनी भाषा का इस्तेमाल किया जिसे हिंदी या उर्दू की सीमाओं में कैद नहीं किया जा सकता। उनका भाषा प्रवाह अद्भुत है और इसने उनकी रचनाओं को लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने स्त्रियों को उनकी अपनी जुबान के साथ अदब में पेश किया। इस्मत आपा ने निम्न मध्यवर्गीय मुस्लिम तबक़े की दबी-कुचली सकुचाई और कुम्हलाई लेकिन जवान होती लड़कियों की मनोदशा को अपनी कहानियों व उपन्यासों में पूरी बेबाकी से बयान किया है।

इस्मत चुगताई की  रचनाओं में सबसे आकर्षित करने वाली बात उनकी निर्भीक शैली थी। उन्होंने अपनी रचनाओं में समाज के बारे में निर्भीकता से लिखा और उनके इसी दृष्टिकोण के कारण साहित्य में उनका खास मुकाम बना। इस्मत चुगताई अपनी कहानी ‘लिहाफ’  के कारण खासी मशहूर हुईं। 1941 में लिखी गई इस कहानी में उन्होंने महिलाओं के बीच समलैंगिकता के मुद्दे को उठाया था। उस दौर में किसी महिला के लिए यह कहानी लिखना एक दुःस्साहस का काम था। इस्मत को इस दुःस्साहस की कीमत अश्लीलता को लेकर लगाए गए इलजाम और मुक़दमे के रूप में चुकानी पड़ी। यह मुक़दमा बाद में ख़ारिज हो गया।

इस्मत आप के अफसानों में औरत अपने अस्तित्व की लड़ाई से जुड़े मुद्दे उठाती है। साहित्य तथा समाज में चल रहे स्त्री विमर्श को उन्होंने आज से 70 साल पहले ही प्रमुखता दी थी। इससे पता चलता है कि उनकी सोच अपने समय से कितनी आगे थी। उन्होंने अपनी कहानियों में स्त्री चरित्रों को बेहद संजीदगी से उभारा और इसी कारण उनके पात्र जिंदगी के बेहद करीब नजर आते

उर्दू साहित्य में सआदत हसन मंटो, इस्मत, कृष्ण चंदर और राजेन्दर सिंह बेदी को कहानी के चार स्तंभ माना जाता है। इनमें भी आलोचक मंटो और चुगताई को ऊँचे स्थानों पर रखते हैं क्योंकि इनकी लेखनी से निकलने वाली भाषा, पात्रों, मुद्दों और स्थितियों ने उर्दू साहित्य को नई पहचान और ताकत बख्शी।

इस्मत चुगताई  के कुछ प्रमुख उपन्यास ‘टेढी लकीर‘ , ‘जिद्दी‘ , ‘एक कतरा ए खून‘ , ‘दिल की दुनिया‘ , ‘मासूमा‘ , ‘बहरूप नगर’ , ‘सैदाई’, ‘जंगली कबूतर‘ , ‘अजीब आदमी‘ ‘बांदी’  इत्यादि हैं।  इस्मत आप के चर्चित कहानी संग्रह ‘चोटें’ , ‘छुईमुई‘ , ‘एक बात’ , ‘कलियाँ’ , ‘एक रात’ ‘दो हाथ’ , ‘दोज़खी’ , ‘शैतान’ ‘जड़े’ आदि हैं।

भारतीय समाज के रूढ़िवादी जीवन मूल्यों और घिसी पिटी परम्पराओं पर इस्मत चुग़ताई ने अपनी कहानियों से जितनी चोट की है और इसे एक अधिक मानवीय समाज बनाने में जितना बड़ा योगदान किया है, उसकी बराबरी कर पानेवाले लोग बिरले ही हैं । पाठकों के मन में सहज ही यह सवाल उठता रहा है कि इतनी पैनी नज़र से अपने परिवेश को टटोलनेवाली और इतने जीते जागते पात्र रचनेवाली इस लेखिका की खुद अपनी बनावट क्या है, किस प्रक्रिया में उसका निर्माण हुआ है । इस्मत आपा ने शायद अपने पाठकों की इस जिज्ञासा को ध्यान में रखते हुए ही अपनी आत्मकथा काग़जी है पैरहन शीर्षक से कलमबंद की । कहने को ही यह पुस्तक आत्मकथा है । पढ़ने में यह बाकायदा उपन्यास और उपन्यास से भी ज़्यादा कुछ है । एक पूरे समय और समाज का इतना जीवन्त, इतना प्रामाणिक वर्णन मुश्किल से ही मिल सकता है।

इस्मत चुगताई का कैनवास काफी व्यापक था जिसमें अनुभव के विविध रंग उकेरे गए हैं। ऐसा माना जाता है कि “टेढी लकीरे” उपन्यास में उन्होंने अपने ही जीवन को मुख्य प्लाट बनाकर एक स्त्री के जीवन में आने वाली समस्याओं और स्त्री के नजरिए से समाज को पेश किया है।

इस्मत चुगताई ने अनेक चलचित्रों की पटकथा लिखी और जुगनू में अभिनय भी किया। उनकी पहली फिल्म “छेड़-छाड़” 1943 में आई थी। वे कुल 13 फिल्मों से जुड़ी रहीं। उनकी आख़िरी फ़िल्म “गर्म हवा” (1973) को कई पुरस्कार मिले। साहित्य की दुनिया में ‘इस्मत आपा’ के नाम से विख्यात इस विद्रोहिणी लेखिका का निधन 24 अक्टूबर 1991 को हुआ। उनकी वसीयत के अनुसार मुंबई के चन्दनबाड़ी में उन्हें अग्नि को समर्पित किया गया।

आइये पढ़ते हैं उनकी कुछ लोकप्रिय एवं चर्चित कहानियाँ

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