आज की उम्र पूरी हो गई है चाँद की नींद की भी उम्र होती है बस सपने हैं जिन्होंने आब-ए-ज़मज़म चखने का गुनाह किया है और अश्वस्थामा की तरह भटक रहे हैं घायल न नींद का कोई दिन मुअइय्यन है…
आज की उम्र पूरी हो गई है चाँद की नींद की भी उम्र होती है बस सपने हैं जिन्होंने आब-ए-ज़मज़म चखने का गुनाह किया है और अश्वस्थामा की तरह भटक रहे हैं घायल न नींद का कोई दिन मुअइय्यन है…
कैंप डायरी पहला दिन जिस जगह हमने कैंप लगाया है, वह समतल जमीन का एक छोटा–सा टुकड़ा है। नीचे की तरफ पहाड़ी नाला और ऊपर की तरफ सड़क। आसपास ऊबड़–खाबड़ जमीन है जिस पर बेतरतीबी से जंगली झाड़ियाँ उगी हुई…
Though I had acquired a nodding acquaintance with Hinduism and other religions of the world, I should have known that it would not be enough to save me in my trails. Of the thing that sustains him through trials, man…
मुझे तुम पर शर्म आ रही है अल्बर्ट। तुम इस लायक भी नहीं रह गये हो माय सन कि तुम्हें बेटा कहूं। पता नहीं यह पत्र पढ़ने के लिए तुम घर पर लौट कर आओगे भी या नहीं। मुझे पता…
एक रौशनी शराब में पड़ी बर्फ़-सी पिघल रही है जुलाई की उमस भरी गीली सुबह-सी उदास तुम्हारी आँखों में पिघल रहा है कोई अक्स डॉली की पेंटिंग से रंग सोख लिए हों किसी ने जैसे उदासी की बेंच पर बैठे…
आपने मुझे भारी विपदा में डाल दिया है, इंस्पेक्टर साहब! लिख सकूँगी क्या वह सब? सब कुछ हालांकि आँखों के आगे हर वक्त घूमता रहता है, लेकिन उसे शब्दों में बयान करना, उस सब कुछ को फिर से झेलने-भोगने जैसा…
There are books, then there are books. Kafka on the shore is like those latter books that put an anchor through your heart and keep on tugging, giving you sweet pain, until you revisit them, again and again. While I…
खबर परेशान करने वाली है। संयुक्त राष्ट्र संघ दीवालिया हो रहा है। हालाँकि उसकी सदस्य-संख्या पूरी दुनिया के देशों की संख्या के बराबर है, अमीर-गरीब सभी देश उसके सदस्य हैं, लेकिन तकलीफ यह है कि ज्यादातर देश वक्त पर संघ…
यद्यपि सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का साहित्यिक जीवन काव्य से प्रारंभ हुआ तथापि ‘चरचे और चरखे’ स्तम्भ में दिनमान में छपे आपके लेख विशेष लोकप्रिय रहे। सन 1983 में राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित कविता संग्रह ‘खूँटियों पर टंगे लोग’ के लिए…
दुकान पर सफेद गुड़ रखा था। दुर्लभ था। उसे देखकर बार-बार उसके मुँह से पानी आ जाता था। आते-जाते वह ललचाई नजरों से गुड़ की ओर देखता, फिर मन मसोसकर रह जाता। आखिरकार उसने हिम्मत की और घर जाकर माँ…