हम एक घर चाहते थे सुरक्षित हम से कहा गया राजगृह में एक आदमी तुम्हारा भी है तुम्हारी कमज़ोर भुजाओं में जो मछलियाँ हैं मरी हुईं उस आदमी की आँखों में तैर रही हैं देखो वह तुम्हारा आदमी है, उसका…
हम एक घर चाहते थे सुरक्षित हम से कहा गया राजगृह में एक आदमी तुम्हारा भी है तुम्हारी कमज़ोर भुजाओं में जो मछलियाँ हैं मरी हुईं उस आदमी की आँखों में तैर रही हैं देखो वह तुम्हारा आदमी है, उसका…
एक भीड़ है पगलाई हुई और पीछे जलते हुए घर तमाम मैं सड़क किनारे खड़ा हूँ किताबें सँभाले एक टूटे हुए लैंपपोस्ट की आड़ में खड़ा जाने किसे पुकार रहा हूँ और आवाज़ बुझे बल्ब के हल्के धुएँ में डूबती…
November brought some certainty to Booklovers’ lives, as the 52nd Booker Prize was awarded to Douglas Stuart for his semi-autobiographical debut novel, Shuggie Bain. Usually, a pretty neat affair, this year’s ceremony was kept to its bare bones formality keeping…
कू-ब-कू फैल गई बात शनासाई की उस ने ख़ुशबू की तरह मेरी पज़ीराई की कैसे कह दूँ कि मुझे छोड़ दिया है उस ने बात तो सच है मगर बात है रुस्वाई की परवीन शाकिर के शेरों में लोकगीत की…
"..जो ग़ायब भी है हाज़िर भी जो मंज़र भी है नाज़िर भी उट्ठेगा अन-अल-हक़ का नारा जो मैं भी हूँ और तुम भी हो.." उर्दू शायरी के अजीमुश्शान शायर - फै़ज़ अहमद फ़ैज़ अपनी शायरी को अपने लहू की आग…
Indira Gandhi remained India’s Prime Minister for 16 years. Her charisma made for a cult following which often resulted in extremities. To measure her presence in the knot of time, we rediscover her through books written on her over the…
उपस्थित तो रहे हम हर समारोह में अजनबी मुस्कुराहटों और अभेद्य चुप्पियों के बीच अधूरे पते और ग़लत नंबरों के बावजूद पहुँच ही गए हम तक आमंत्रण-पत्र हर बार हम अपने समय में थे अपने होने के पूरे एहसास के…
On the 131st birthday of India’s first Prime Minister, Pundit Jawaharlal Nehru, we rediscover the man through his thoughts at various points in his life. “India has known the innocence and insouciance of childhood, the passion and abandon of youth,…
एक मालदार जाट मर गया तो उसकी घरवाली कई दिन तक रोती रही। जात-बिरादरी वालों ने समझाया तो वह रोते-रोते ही कहने लगी, 'पति के पीछे मरने से तो रही! यह दुःख तो मरूँगी तब तक मिटेगा नहीं। रोना तो…
तुम कहाँ होगी इस वक़्त? क्षितिज के उस ओर अपूर्ण स्वप्नों की एक बस्ती है जहाँ तारें झिलमिलाते रहते हैं आठों पहर और चंद्रमा अपनी घायल देह लिए भटकता रहता है तुम्हारी तलाश में हज़ार बरस भटका हूँ वहाँ नक्षत्रों…