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Poem

वयस में छोटा प्रेयस

वह कस कर जकड़ता है उसे अपने बाज़ुओं में
और चाहता है कि प्रेयसी की देह पर छूट गए अनगिनत नील निशानों को
आने वाले दिनों के लिए सहेज लिया जाए
जब शेष हो अनुपस्थिति की नमी

उसके आतुर होंठ नींद में भी तलाशते रहते हैं
प्रेयसी के अनावृत वक्ष
उसके पास एक शिशु की भूख है
और एक प्रेमी की तलब
जो असीम गहराइयों में उतर कर भी
प्यास से भरा रहता है

वह नींद में भी सुनना चाहता है उसकी साँसें
और प्रेयसी के सपनों में अपनी उपस्थिति दर्ज कर देना चाहता है
जागते ही उसे ऐसे टटोलता है
जैसे खो दिया हो कहीं
अंतिम प्रहर की बची हुई नींद में,
सुबह की पहली किरण के उजाले में
आतुरता से खोजता है अपना अक्स
उसकी आँखों के फैले काजल में

वयस में आठ साल छोटा वह प्रेयस
अपनी प्रेमिका की देह पर हर कहीं अंकित हो जाने के बाद भी
उसके मन में अपनी उपस्थिति को लेकर
संशय में है

वह मरुभूमि में
पानी की फ़सल बोना चाहता है
हौले से कानों में पूछता रहता है
गहरी बारिशों के दौरान भी
तुम तृप्त तो हुईं न!

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