वह कस कर जकड़ता है उसे अपने बाज़ुओं में
और चाहता है कि प्रेयसी की देह पर छूट गए अनगिनत नील निशानों को
आने वाले दिनों के लिए सहेज लिया जाए
जब शेष हो अनुपस्थिति की नमी
उसके आतुर होंठ नींद में भी तलाशते रहते हैं
प्रेयसी के अनावृत वक्ष
उसके पास एक शिशु की भूख है
और एक प्रेमी की तलब
जो असीम गहराइयों में उतर कर भी
प्यास से भरा रहता है
वह नींद में भी सुनना चाहता है उसकी साँसें
और प्रेयसी के सपनों में अपनी उपस्थिति दर्ज कर देना चाहता है
जागते ही उसे ऐसे टटोलता है
जैसे खो दिया हो कहीं
अंतिम प्रहर की बची हुई नींद में,
सुबह की पहली किरण के उजाले में
आतुरता से खोजता है अपना अक्स
उसकी आँखों के फैले काजल में
वयस में आठ साल छोटा वह प्रेयस
अपनी प्रेमिका की देह पर हर कहीं अंकित हो जाने के बाद भी
उसके मन में अपनी उपस्थिति को लेकर
संशय में है
वह मरुभूमि में
पानी की फ़सल बोना चाहता है
हौले से कानों में पूछता रहता है
गहरी बारिशों के दौरान भी
तुम तृप्त तो हुईं न!
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रश्मि भारद्वाज की प्रमुख कविताऐं - Kathanak
July 13, 2021 at 6:01 am[…] वयस में छोटा प्रेयस […]