Synopsis‘मुझे घर ले चलो’ तसलीमा नसरीन की आत्मकथा का 5वां खंड है। औरत की आज़ादी में धर्म और पुरुष-सत्ता सबसे बड़ी बाधा बनती है-बेहद साफ़गोई से इस पर विचार करते हुए, धर्म औरत की राह में बाधक कैसे हो सकता है, इसके समर्थन में, बेबाक बयान दिया है। इस साहस के लिए वे सिर्फ़ गंवार-जाहिल कट्टर धर्मवादियों के ही हमले की शिकार नहीं हुईं, बल्कि समूची राष्ट्र-व्यवस्था और पुरुष वर्चस्व प्रधान समाज ने उनके ख़िलाफ़ जंग की घोषणा कर दी। देश के समस्त कट्टरवादियों ने तसलीमा को फांसी देने की माँग करते हुए, आन्दोलन छेड़ दिया। यहाँ तक की उनके सिर का मोल भी घोषित कर दिया। नतीजा यह हुआ कि उन्हें अपने प्रिय स्वदेश से निर्वासित होना पड़ा।
उनके देश में आज भी उनके ख़िलाफ़ फ़तवा झूल रहा है; तसलीमा का ही नहीं बल्कि वाक-स्वाधीनता के विरोधी असंख्य लोगों के द्वारा ठोंके गए मामले झूल रहे हैं ! मानवता की हिमायत में, सत्य तथ्यों पर आधारित उपन्यास, ‘लज्जा’; अपने शैशव की यादें दुहराता हुआ, ‘मेरे बचपन के दिन’; किशोर और तरुणाई की यादों का बयान करता हुआ, ‘उत्ताल हवा’; आत्मकथा का तीसरा और चौथा खण्ड ‘द्विखंडित’ और ‘वे सब अँधेरे’-इन पाँचों पुस्तकों को बाँग्लादेश सरकार ने निषिद्ध घोषित कर दिया है ! पश्चिम बंगाल में विभिन्न संप्रदायों के लोगों में दुश्मनी जाग सकती है, इस आशंका का वास्ता देकर और बाद में किसी एक विशेष संप्रदाय के धार्मिक मूल्यबोध पर आघात किया गया है, इसकी दुहाई देते हुए, उनकी आत्मकथा का तीसरा खंड-‘द्विखंडित’ पश्चिम बंगाल सरकार ने भी निषिद्ध कर दिया। पूरे एक वर्ष, नौ महीने, छब्बीस दिन तक निषिद्ध रहने के बाद, हाईकोर्ट की निर्णय के मुताबिक यह निषेध उठा लिया गया। दोनों बंगाल में इस खंड के ख़िलाफ़ (पश्चिम बंगाल में ‘द्विखंडित’ और बांग्लादेश में ‘क’) उनके समकालीन लेखकों द्वारा कुल इक्कीस करोंड़ रुपए का मामला दायर किया गया है।
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Binding: HardBack
About the author
तसलीमा नसरीन सुख्यात लेखक और मानवतावादी विचारक हैं। अपने विचारों और लेखन के लिए उन्हें अकसर फ़तवों का सामना करना पड़ा। विवादास्पद उपन्यास ‘लज्जा’ पर उन्हें उनके देश से निष्कासित कर दिया गया जहाँ वे 1994 से नहीं गईं। भारत समेत कई देशों से उन्हें विभिन्न सम्मानित पुरस्कारों और मानद उपाधियों से विभूषित किया जा चुका है। दुनिया की लगभग तीस भाषाओं में उनकी रचनाओं का अनुवाद हो चुका है।