बरसों के बाद उसी सूने- आँगन मेंजाकर चुपचाप खड़े होनारिसती-सी यादों से पिरा-पिरा उठनामन का कोना-कोना कोने से फिर उन्हीं सिसकियों का उठनाफिर आकर बाँहों में खो जानाअकस्मात् मण्डप के गीतों की लहरीफिर गहरा सन्नाटा हो जानादो गाढ़ी मेंहदीवाले हाथों…
Poetry is a form of literature that uses aesthetic and often rhythmic qualities of language, such as phonaesthetics, sound symbolism, and metre to evoke meanings in addition to, or in place of, the prosaic ostensible meaning.
बरसों के बाद उसी सूने- आँगन मेंजाकर चुपचाप खड़े होनारिसती-सी यादों से पिरा-पिरा उठनामन का कोना-कोना कोने से फिर उन्हीं सिसकियों का उठनाफिर आकर बाँहों में खो जानाअकस्मात् मण्डप के गीतों की लहरीफिर गहरा सन्नाटा हो जानादो गाढ़ी मेंहदीवाले हाथों…
अपने हलके-फुलके उड़ते स्पर्शों से मुझको छू जाती हैजार्जेट के पीले पल्ले-सी यह दोपहर नवम्बर की ! आयी गयी ऋतुएँ पर वर्षों से ऐसी दोपहर नहीं आयीजो क्वाँरेपन के कच्चे छल्ले-सीइस मन की उँगली परकस जाये और फिर कसी ही रहेनित…
तुम कितनी सुन्दर लगती होजब तुम हो जाती हो उदास !ज्यों किसी गुलाबी दुनिया में सूने खँडहर के आसपासमदभरी चांदनी जगती हो ! मुँह पर ढँक लेती हो आँचलज्यों डूब रहे रवि पर बादल,या दिन-भर उड़कर थकी किरन,सो जाती हो पाँखें समेट,…
वह है कारे-कजरारे मेघों का स्वामीऐसा हुआ कियुग की काली चट्टानों परपाँव जमाकरवक्ष तानकरशीश घुमाकरउसने देखानीचे धरती का ज़र्रा-ज़र्रा प्यासा है,कई पीढ़ियाँबून्द-बून्द को तरस-तरस दम तोड़ चुकी हैं,जिनकी एक-एक हड्डी के पीछेसौ-सौ काले अन्धड़भूखे कुत्तों से आपस में गुथे जा…
घाट के रस्तेउस बँसवट सेइक पीली-सी चिड़ियाउसका कुछ अच्छा-सा नाम है! मुझे पुकारे!ताना मारे,भर आएँ, आँखड़ियाँ! उन्मन,ये फागुन की शाम है! घाट की सीढ़ी तोड़-तोड़ कर बन-तुलसा उग आयींझुरमुट से छन जल पर पड़ती सूरज की परछाईंतोतापंखी किरनों में हिलती…
बरसों के बाद उसी सूने- आँगन मेंजाकर चुपचाप खड़े होनारिसती-सी यादों से पिरा-पिरा उठनामन का कोना-कोना कोने से फिर उन्हीं सिसकियों का उठनाफिर आकर बाँहों में खो जानाअकस्मात् मण्डप के गीतों की लहरीफिर गहरा सन्नाटा हो जानादो गाढ़ी मेंहदीवाले हाथों…
गोरी-गोरी सौंधी धरती-कारे-कारे बीजबदरा पानी दे! क्यारी-क्यारी गूंज उठा संगीतबोने वालो! नई फसल में बोओगे क्या चीज ?बदरा पानी दे! मैं बोऊंगा बीर बहूटी, इन्द्रधनुष सतरंगनये सितारे, नयी पीढियाँ, नये धान का रंगबदरा पानी दे! हम बोएंगे हरी चुनरियाँ, कजरी, मेहँदीराखी…
वह तुम ही हो पिता पति की प्रेमिका के नाम स्त्री कहाँ रहती है वयस में छोटा प्रेयस ईश्वर होती देह वर्जित समय में एक कविता प्रेम में स्त्री अस्सी का दौर और एक अव्यक्त रिश्ते से गुज़रते हुए चंद्रिका…
नब्बे के दशक के बाद जिन काव्य व्यक्तित्वों की विशिष्ट स्वर में विकसित हुई उनमें प्रसिद्ध कवि ‘महेश आलोक’ समकालीन कविता के परिदृश्य में एक अलग सशक्त पहचान रखते हैं । यह समय सिर्फ कविता के मूल स्वर बदलने का…
Gitanjali, originally written in Bengali, and then later translated into English by Gurudev himself, is one of the seminal works in Bengali literature by Gurudev Rabindranath Tagore. Gitanjali meaning “Song Offering” is a collection of 156 poems (103 in the…