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Home Literature Poetry Kaljayee
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Kaljayee
by Bhawaniprasad Mishra
4.9
4.9 out of 5
Creators
AuthorBhawaniprasad Mishra
PublisherPratishruti Prakashan
Synopsisयह कथा व्यक्ति की नहीं/एक संस्कृति की है/स्नेह-शांति-शौर्य की, धृति की है ।
हिन्दी के अप्रतिम कवि भवानीप्रसाद मिश्र ने यह रचना— कालजयी— उत्तर रहित प्रश्नों का सामना करने के लिए रची है । कलिंग की जीत के बाद सम्राट अशोक विचारों के ऐसे चक्रव्यूह में अपने आपको घिरा हुआ पाता है जहाँ तर्क तो है पर अनुभव नहीं है। अशोक ने अपने राजकीय जीवन में द्रविड़, आर्य, शक, हूण, यवन आदि को जाना है। सबका रहना-सहना, कहना-करना और धर्माचरण देखा है । पर कहने और करने को कभी एक नहीं पाया है। इसी कारण उसके मन-प्राण विकल होकर उसी से पूछ रहे हैं कि जबसे जगत बना, जीत-हार के खेल के सिवा और हुआ ही क्या है। तुमने धरती जीती तो इससे क्या जीता। यदि तुम सबके मन पर प्रेम की छाप नहीं डाल सके तो नाममात्र के शासन से जीवन का उत्कर्ष कैसे सँभाला जा सकेगा। अपनी जय-जय सुनने की इच्छा आखिर तुम्हें किस ऊँचाई पर उठाकर ले जायेगी। राष्ट्र के नाम पर किसी पर टूट पड़ना आखिर किस तरह से न्याय है। जो राज्य की प्रजा है उसे तो किसी निर्णय का अधिकार नहीं। राजा ही अपने वैभव की किसी तुच्छ स्वार्थ इच्छा से इस धरती को खून से सींचते रहते हैं। सभ्यता और संस्कृतियाँ युद्ध के मलबे में दबती चली जाती हैं।
संसार में दुख है, हिंसा है, क्षमाहीनता है। अहंकार बल, दर्प एक ओर है, दूसरी ओर दीनता है। यह कृति हमसे कहती है कि मनुष्य के दुख-दारिद्य्र की कथरी को किसी सिद्धान्त-सूत्र से नहीं सिला जा सकता। इसके लिए मनुष्य को अपने अभावों की गहराइयों को गोड़ना होगा और देश से देशांतर तक प्रेमभाव के बीज को बोना होगा। शोक-सिंधु में डूबे बहुजन के दुख को दूर करना होगा।
इतना ही देखो कि दुख क्या है, उसके स्रोत जीवन में कहाँ से फूटते हैं और वह दूर कैसे होता है। भवानीप्रसाद मिश्र की यह काव्य रचना सिद्धार्थ के बोधि-प्रकाश में रची गयी है। कविवर हमसे कहते हैं कि दुनिया निर्णय नहीं, अस्ति है/बनी हुई है/कितने संदेहों के बल पर/घनी हुई है/मत अनुमान लगाओ इसका/इसे पकड़ लो/स्नेह करो , छाती तक खींचो/सहज जकड़ लो।
वर्तमान विश्व परिवेश में अत्यंत प्रासंगिक एवं पठनीय कृति।
—ध्रुव शुक्ल