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Home Literature Poetry Aaye Nahin Sudin
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Aaye Nahin Sudin
by Devendra Kumar Pathak
4.4
4.4 out of 5
Creators
AuthorDevendra Kumar Pathak
PublisherSanmati Publishers
Synopsisआज कविता की पहचान पर ही सवाल उठते हैं कि कविता किसे मानें? क्योंकि जिसे हम कविता कहते हैं या जिसे कविता के रूप में रोज़मर्रा की ज़िंदगी में पढ़ते, जानते-पहचानते, बूझते-समझते और मानते रहे हैं; वह कविता जो जन-जन की, जन-जन में रच-बसी होती है, जिसमें आम बहुसंख्य भारतीय जन का जीवन अंटता-समाता, उजागर होता है, वह कविता कहाँ है, कैसी है? हिंदी और तमाम भारतीय भाषाओं, क्षेत्रीय बोलियों की फिल्मों, हरियाणवी, भोजपुरी गानों में जो है क्या वह कविता है? वह कविता है जिसे कवि अब मंचों, समाचार-चैनलों पर सुनाता है, खूब हँसाता है और जो पंडालों में भारी-भरकम बाजों-गाजों, मधुर कण्ठस्वरों से भक्तमंडली को सुनाई-गाई जा रही है या जो सड़कों के किनारे मजमा लगाकर बच्चों द्वारा ढोलक बजाकर सुनाई जा रही है, वह कविता है? समूचे तौर पर विचार आलेख के रूप में जो लिखी जा रही है, वह कविता है या, जो परंपरागत छंद या नये छंद और शिल्प में आ रही है, वह कविता है? कविता, जिसे लोगों तक पहुँचाने के लिए कभी गोपाल सिंह नेपाली गाँव-गाँव, सड़क-सड़क गाते थे; रमेश रंजक किताबों के रूप में छाप कर हाट-मेलों में बेचने निकल पड़े थे या वह जो आंदोलित लोगों के समवेत कण्ठों से सड़कों पर मुखरित होती है । पत्र-पत्रिकाओं में छपने वाली कवियों की किसी भी रूप की कविताओं को हम क्यों बांटकर देखते हैं? कमोबेश कविता किसी न किसी रूप में जहाँ भी है, गीतात्मकता और लय लिये हुए है, समूची प्रकृति लय से परिपूर्ण है...