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Home Literature Poetry Aankhon Mein Uljhi Dhoop
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Aankhon Mein Uljhi Dhoop
by Amita Sharma
4.3
4.3 out of 5
Creators
AuthorAmita Sharma
PublisherRadhakrishna Prakashan
Synopsisये कविताएँ कुछ हद तक ‘पर्सनल पोएम्स’ हैं, निजी कविताएँ। जैसे व्यक्तिगत काव्य-डायरियाँ। इनका ‘मैं’ कोई पराया ‘मैं’ नहीं। पूरी तरह आत्मकथात्मक ‘मैं’ भी नहीं। यह एक अंदर की कहीं छिपी-ढँकी इच्छा के कविता में प्रकट होने की प्रक्रिया में आका लेता ‘मैं’ है। सपनों का ‘मैं’। कविता में सपना देखनेवाला ‘मैं’।
ये कविताएँ निर्द्वंद्व मानवीय संबंधों की ऊष्मा का प्रगीत हैं। अपने बेहद निजी, दैहिक संबंध को भी प्रकृति के पूरे वैभव और समूचे ब्रह्मांड के साथ विमर्श में पाने की लालसा इन कविताओं में है। इहलौकिक संबंधों के बारे में कोई मुखरता यहाँ नहीं है, पर कोई अंतर्बाधा भी नहीं। यह एक ऐसा अप्रतिम और अनाम संबंध है जैसे आकाश में चिड़िया की उड़ान होती है जो हवा पर अपने पदचिह्न नहीं छोड़ती। इन कविताओं में लौकिक और अलौकिक के बीच सहज आवाज़ाही है। इसलिए कोई मिथक यहाँ आता भी है तो उसकी सिर्फ हल्की-सी पदचाप ही सुनाई पड़ती है।
इन कविताओं में शब्द की चिंता और शब्द की काया का स्वीकार बहुत दिलचस्प भी है और अलग-सा भी। ये शब्द की आज़ादी और मौन के साहस, दोनों को जानती हैं। वे शब्द और देह को एक-दूसरे के विकल्प की हद तक देखने और उसे एक दूसरे की जगह रखने की कोशिश करती हैं।
ये कविताएँ एक ऐसा दिक रचती हैं जहाँ किसी अनुपस्थित की अदेह उपस्थिति है। उस अनुपस्थित के शब्दों की गूँज है। उसके स्पर्श का अहसास है। देहदीन देह की खामोशी है। अनुपस्थित समय है। एक स्टिललाइफ जैसा चित्रा.जिसमें हर चीज पर किसी अनुपस्थित की छाप भी है और उसके किसी भी क्षण आ जाने की संभावना है।
इन कविताओं की खनक में चुप और बातूनीपन का दुर्लभ संतुलन है। इसे सुनना थोड़ा अटपटा हो सकता है, पर कहना चाहता हूँ कि यह संतुलन किसी स्त्राी की कविता में ही संभव हो सकता है।
-राजेश जोशी