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Aalok Parv
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Aalok Parv

by Hazariprasad Dwivedi
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Publisher Rajkamal Prakashan
Synopsis आचार्य द्विवेदी ऐसे वाङ्‌मय-पुरुष हैं जिनका संस्कृत मुख है, प्राकृत बाहु है, अपभ्रंश जघन है और हिन्दी पाद है । आलोक पर्व के निबन्ध पढ़कर मन की आँखों के सामने उनका यह रूप साकार हो उठता है । आलोक पर्व के निबन्ध द्विवेदीजी के प्रगाढ़ अध्ययन और प्रखर चिन्तन से प्रसूत हैं । इन निबन्धों में उन्होंने एक ओर संस्कृत-काव्य की भाव-गरिमा की एक झलक पाठकों के सामने प्रस्तुत की है तो दूसरी ओर अपभ्रंश तथा प्राकृत के साथ हिन्दी के सम्बन्ध का निरूपण करते हुए लोकभाषा में हमारे सांस्कृतिक इतिहास की भूली कड़ियाँ खोजने का प्रयास किया है । आलोक पर्व में उन प्रेरणाओं के उत्स का साक्षात्कार पाठकों को होगा जिससे द्विवेदीजी ने यह अमृत-मन्त्र देने की शक्ति प्राप्त की- 'किसी से भी न डरना, गुरु से भी नहीं, मन्त्र से भी नहीं, लोक से भी नहीं, वेद से भी नहीं ।' आलोक पर्व के निबन्धों में आचार्य द्विवेदी ने भारतीय धर्म, दर्शन और संस्कृति के प्रति अपनी सम्मान-भावना को संकोचहीन अभिव्यक्ति दी है, किन्तु उनकी यह सम्मान-भावना विवेकजन्य है और इसीलिए नई अनुसन्धित्सा का भी इनमें निरादर नहीं है ।

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Binding: HardBack
About the author डॉ. हज़ारी प्रसाद द्विवेदी (19 अगस्त, 1907 - 19 मई, 1979) हिन्दी के शीर्षस्थ साहित्यकारों में से हैं। वे उच्चकोटि के निबन्धकार, उपन्यासकार, आलोचक, चिन्तक तथा शोधकर्ता हैं। साहित्य के इन सभी क्षेत्रों में द्विवेदी जी अपनी प्रतिभा और विशिष्ट कर्तव्य के कारण विशेष यश के भागी हुए हैं। द्विवेदी जी का व्यक्तित्व गरिमामय, चित्तवृत्ति उदार और दृष्टिकोण व्यापक है। द्विवेदी जी की प्रत्येक रचना पर उनके इस व्यक्तित्व की छाप देखी जा सकती है। द्विवेदी जी के निबंधों के विषय भारतीय संस्कृति, इतिहास, ज्योतिष, साहित्य विविध धर्मों और संप्रदायों का विवेचन आदि है। वर्गीकरण की दृष्टि से द्विवेदी जी के निबंध दो भागों में विभाजित किए जा सकते हैं - विचारात्मक और आलोचनात्मक। विचारात्मक निबंधों की दो श्रेणियां हैं। प्रथम श्रेणी के निबंधों में दार्शनिक तत्वों की प्रधानता रहती है। द्वितीय श्रेणी के निबंध सामाजिक जीवन संबंधी होते हैं। आलोचनात्मक निबंध भी दो श्रेणियों में बांटें जा सकते हैं। प्रथम श्रेणी में ऐसे निबंध हैं जिनमें साहित्य के विभिन्न अंगों का शास्त्रीय दृष्टि से विवेचन किया गया है और द्वितीय श्रेणी में वे निबंध आते हैं जिनमें साहित्यकारों की कृतियों पर आलोचनात्मक दृष्टि से विचार हुआ है। द्विवेदी जी के इन निबंधों में विचारों की गहनता, निरीक्षण की नवीनता और विश्लेषण की सूक्ष्मता रहती है।
Specifications
  • Language: Hindi
  • Publisher: Rajkamal Prakashan
  • Pages: 221
  • Binding: HardBack
  • ISBN: 9788171786862
  • Category: Criticism & Interviews
  • Related Category: Politics & Current Affairs
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