Synopsis‘आदमी अरण्यों में’ शीर्षक ही बहुत कुछ कह सकने में समर्थ है। हर आदमी के मन में एक ‘अरण्य’ होता है, चाहे कितना ही छोटा क्यों न हो। तुलसी के ‘मानस’ में भी एक ‘अरण्य’ है। राम का वह जीवन जो राम को ‘राम’ बनाता है, इसी ‘अरण्य’ से प्रारम्भ होता है। आज की गजल भी तरह-तरह के आरण्यक संदर्भों में खो गयी है। कलम रुकनी नहीं चाहिए। बस, इसी साधना-याचना-आराधना-अर्चना-आशा- अभिलाषा और विश्वास के साथ कि- जो कि कहना चाहती है, आज कहने दो गजल को।
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Binding: PaperBack
About the author
लेखक डा. चन्द्रभाल सुकुमार पूर्व न्यायाधीश एवं साहित्यकार है। उनकी अब तक दजर्नों पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। दो दर्जन से अधिक सह-संकलनों में रचनाएं संकलित, प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित एवं आकाशवाणी के विभिन्न केन्द्रों से प्रसारित। शताधिक साहित्यिक, सांस्कृतिक, न्यायिक एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित/अलंकृत। आपकी डॉ0 भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय, आगरा द्वारा ‘‘समकालीन हिन्दी गजल को चन्द्रभाल सुकुमार का प्रदेय’’ विषयक शोध प्रबन्ध पी.एच.डी. हेतु स्वीकृत है। काव्यायनी साहित्यिक वाटिका (तुलसी जयंती, 1984) के संस्थापक-अध्यक्ष है। 35 वर्षों की न्यायिक सेवा के उपरांत जनपद न्यायाधीश, इलाहाबाद के पद से 2010 में सेवा निवृत्त होने के बाद 2011 में राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0 प्र0 लखनऊ में वरिष्ठ न्यायिक सदस्य के पद पर नियुक्त एवं प्रभारी अध्यक्ष के पद से 2016 में सेवा-निवृत्त।