जब मैं जाड़ों में लिहाफ़ ओढ़ती हूँ, तो पास की दीवारों पर उसकी परछाईं हाथी की तरह झूमती हुई मालूम होती है और एक दम से मेरा दिमाग़ बीती हुई दुनिया के पर्दों में दौड़ने भागने लगता है। न जाने…
जब मैं जाड़ों में लिहाफ़ ओढ़ती हूँ, तो पास की दीवारों पर उसकी परछाईं हाथी की तरह झूमती हुई मालूम होती है और एक दम से मेरा दिमाग़ बीती हुई दुनिया के पर्दों में दौड़ने भागने लगता है। न जाने…
रात के सन्नाटे में फ़्लैट की घंटी ज़ख़्मी बिलाव की तरह ग़ुर्रा रही थी। लड़कियां आख़िरी शो देखकर कभी की अपने कमरों में बंद सो रही थीं। आया छुट्टी पर गई हुई थी और घंटी पर किसी की उंगली बेरहमी…
“लेफ़्ट राइट, लेफ़्ट राइट! क्वीक मार्च!’ उड़ा उड़ा धम! ! फ़ौज की फ़ौज कुर्सीयों और मेज़ों की ख़ंदक़ और खाइयों में दब गई और ग़ुल पड़ा। “क्या अंधेर है। सारी कुर्सीयों का चूरा किए देते हैं। बेटी रफ़िया ज़रा मारियो…
सूरज कुछ ऐसे ज़ावीये पर पहुंच गया कि मा’लूम होता था कि छः सात सूरज हैं जो ताक-ताक कर बुढ़िया के घर में ही गर्मी और रोशनी पहुंचाने पर तुले हुए हैं। तीन दफ़ा खटोली धूप के रुख से घसीटी…
समझ में नहीं आता, इस कहानी को कहाँ से शुरू करूँ? वहां से जब छम्मी भूले से अपनी कुँवारी माँ के पेट में पली आई थी और चार चोट की मार खाने के बाद भी ढिटाई से अपने आसन पर…
“तो आपा फिर अब क्या होगा?” “अल्लाह जाने क्या होगा। मुझे तो सुबह से डर लग रहा है,” नुज़हत ने कंघी में से उलझे हुए बाल निकाल कर उंगली पर लपेटना शुरू किए। ज़हनी इंतिशार से उसके हाथ कमज़ोर हो…
और ये सब कुछ बस ज़रा सी बात पर हुआ… मुसीबत आती है तो कह कर नहीं आती… पता नहीं वो कौन सी घड़ी थी कि रेल में क़दम रखा अच्छी भली ज़िंदगी मुसीबत हो गई। बात ये हुई कि…
भीष्म साहनी का जन्म 8 अगस्त, 1915 में रावलपिंडी (वर्तमान पाकिस्तान) में हुआ था। इनके पिता अपने समय के प्रसिद्ध समाजसेवी थे जबकि प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता बलराज साहनी इनके बड़े भाई थे। भीष्म साहनी की प्रारम्भिक शिक्षा घर पर ही…
हिसाब बराबर (व्यंग्य संग्रह) – डा. रमाकांत शर्मा प्रकाशक – स्टोरी मिरर इंफोटेक प्रा. लि., 145, पहली मंजिल, पवई प्लाजा, हीरानंदानी गार्डन्स, पवई, मुंबई – 400076 पृष्ठ सं. 161 मूल्य : 350/- रुपये हिंदी में व्यंग्य की स्थिति इस समय…
कहानी संग्रह – भीतर दबा सच – डा. रमाकांत शर्मा प्रकाशक – हर्ष पब्लिकेशंस, 1/10753, द्वितीय तल, सुभाष पार्क, नवीन शाहदरा, दिल्ली -110032मूल्य – 350/- कहानी अपने समय, परिवेश, परिस्थिति का प्रतिबिंब होती है। वैसे तो सारा साहित्य ही इन…