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Literature

भीष्म साहनी – किताबें और कहानियां

भीष्म साहनी का जन्म 8 अगस्त, 1915 में रावलपिंडी (वर्तमान पाकिस्तान) में हुआ था।  इनके पिता अपने समय के प्रसिद्ध समाजसेवी थे जबकि प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता बलराज साहनी इनके बड़े भाई थे।  भीष्म साहनी की प्रारम्भिक शिक्षा घर पर ही हिन्दी व संस्कृत में हुई।  बाद में उनका दाखिला स्कूल में कराया गया जहां उन्होंने उर्दू व अंग्रेजी की शिक्षा प्राप्त की। 1937 में उन्होंने लाहौर गवर्नमेंट कॉलेज से अंग्रेजी साहित्य में एम.ए. किया. 1958 में पंजाब विश्वविद्यालय से पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त की।

भारत पाकिस्तान विभाजन के पूर्व भीष्म साहनी अवैतनिक शिक्षक होने के साथ-साथ व्यापार भी करते थे। विभाजन के बाद उन्होंने भारत आकर समाचारपत्रों में लिखने का काम किया। बाद में भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) से जा मिले। इसके पश्चात अंबाला और अमृतसर में भी अध्यापक रहने के बाद दिल्ली विश्वविद्यालय में साहित्य के प्रोफेसर बने। 1957 से 1963 तक मास्को में विदेशी भाषा प्रकाशन गृह (फॉरेन लॅग्वेजेस पब्लिकेशन हाउस) में अनुवादक के काम में कार्यरत रहे। यहां उन्होंने करीब दो दर्जन रूसी किताबें जैसे ‘टालस्टॉय’ , ‘आस्ट्रोवस्की’ इत्यादि लेखकों की किताबों का हिंदी में रूपांतर किया। 1965 से 1967 तक दो सालों में उन्होंने नयी कहानियां नामक पात्रिका का सम्पादन किया। वे प्रगतिशील लेखक संघ और अफ्रो-एशियायी लेखक संघ (एफ्रो एशियन राइटर्स असोसिएशन) से भी जुड़े रहे। 1996 से 97 तक वे साहित्य अकादमी के कार्यकारी समीति के सदस्य रहे।

भीष्म साहनी को हिन्दी साहित्य में प्रेमचंद की परंपरा का अग्रणी लेखक माना जाता है। वे मानवीय मूल्यों के लिए हिमायती रहे और उन्होंने विचारधारा को अपने ऊपर कभी हावी नहीं होने दिया। वामपंथी विचारधारा के साथ जुड़े होने के साथ-साथ वे मानवीय मूल्यों को कभी आंखो से ओझल नहीं करते थे। आपाधापी और उठापटक के युग में भीष्म साहनी का व्यक्तित्व बिल्कुल अलग था। उन्हें उनके लेखन के लिए तो स्मरण किया ही जाएगा लेकिन अपनी सहृदयता के लिए वे चिरस्मरणीय रहेंगे। भीष्म साहनी हिन्दी फ़िल्मों के जाने माने अभिनेता बलराज साहनी के छोटे भाई थे।

साहित्यकार भीष्म साहनी स्वाधीनता के आंदोलन से भी जुड़े रहे. 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में उन्हें जेल भी जाना पड़ा. विभाजन के समय वह और उनका परिवार पाकिस्तान से अमृतसर आ गया था। इस दौरान उन्होंने विभाजन के हर दर्द को भी महसूस किया।

भीष्म साहनी को 1975 में ‘तमस’ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार, 1975 में ही पंजाब सरकार द्वारा ‘शिरोमणि लेखक अवार्ड’, 1980 में एफ्रो एशियन राइटर्स असोसिएशन का ‘लोटस अवार्ड’, 1983 में ‘सोवियत लैंड नेहरू अवार्ड’ तथा 1998 में भारत सरकार के ‘पद्मभूषण अलंकरण’ से विभूषित किया गया।

भीष्म साहनी की किताबें

उनके उपन्यास तमस पर 1986 में एक फिल्म का निर्माण भी किया गया था। उनकी अन्य रचनाओं में मेरी प्रिय कहानियां, झरोखे, बसंती, मायादास की माड़ी, हानुस, कबिरा खड़ा बाजार में, भाग्य रेखा, पहला पाठ, भटकती राख जैसी रचनाएं शामिल हैं। प्रेमचंद की परमपरा के साहित्यककार भीष्म साहनी के साहित्य में सर्वत्र मानवीय करुणा, मानवीय मूल्य व नैतिकता विद्यमान है। भीष्म साहनी जी ने साधारण एवं व्यंग्यात्मक शैली का प्रयोग कर अपनी रचनाओं को जनमानस के निकट पहुँचा दिया। आइये पढ़ते हैं उनकी कुछ प्रसिद्द कहानियाँ

चीलें

चीफ की दावत

खून का रिश्ता

ओ हरामज़ादे

अमृतसर आ गया है

त्रास

फैसला

झूमर

मरने से पहले

माता-विमाता

वाङ्चू

साग-मीट

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