कहानी संग्रह – भीतर दबा सच – डा. रमाकांत शर्मा
प्रकाशक – हर्ष पब्लिकेशंस, 1/10753, द्वितीय तल, सुभाष पार्क, नवीन शाहदरा, दिल्ली -110032मूल्य – 350/-
कहानी अपने समय, परिवेश, परिस्थिति का प्रतिबिंब होती है। वैसे तो सारा साहित्य ही इन सारी बातों का प्रतिनिधित्व करता है। काव्य में सांकेतिकता अधिक होती है। कहानी और उपन्यास में पात्रों के माध्यम से जीवंतता और रोचकता पिरोई जाती है। सृजन के क्षणों में लेखक निरपेक्ष नहीं होता, वह किसी पात्र को जीते हुए अपनी प्रक्रिया में व्यस्त रहता है। इसीलिए शैली कोई भी हो, कहानी हमेशा प्रथम पुरुष का बयान लगती है। कथाकार कभी ऊंचाई से तो कभी पात्र के साथ चलते हुए कहानी बुनता है। यथार्थ के धरातल पर खड़े पात्र अमरता पा जाते हैं। इस कथा-यात्रा में घर-परिवार, समाज-राजनीति, देश-विदेश, इतिहास-भूगोल, ज्ञान-विज्ञान के तमाम परिवेश निर्द्वन्द्व हो निरंतर बहते रहते हैं। कई कथाकार मनुष्य की भीतरी परतों का विश्लेषण कर सामाजिक, आर्थिक और वैयक्तिक ऊहापोहों को अक्षरबद्ध करते हैं। डा. रमाकांत शर्मा उन्हीं में से एक हैं।
डा. रमाकांत शर्मा अपनी कहानियों के बीजों को रेखांकित करते हुए कहते हैं – “हर व्यक्ति अपने को सही समझता है, यहीं से जीवन के द्वन्द्व शुरू होते हैं और कहानियों का जन्म होता है…..।“ संग्रह की पहली ही कहानी “भीतर दबा सच” ऐसी ही मानसिकता से उपजी है। संपत्ति और सौंदर्य का अहंकार दूसरों को नीचा दिखाकर फलता-फूलता है। बड़ी भाभी इस मुगालते में रहती है कि उसका ऐश्वर्य हमेशा इसी तरह बना रहेगा। लेकिन, समय ने पलटा खाया और जिंदगी का सारा वैभव चूर-चूर हो गया। तब जीवन उपेक्षित, तिरस्कृत और असह्य होता गया। ऐसे में यदि कोई उदार और दयालु व्यक्ति देवर के रूप में न मिलता तो जीवन मुहाल हो जाता। बड़ी भाभी के “भीतर दबा सच” हालात के कारण स्पष्ट हुआ। कथाकार ने सहजता से कह दिया – “ईश्वर कभी किसी को इतनी बेचारगी न दे कि वह किसी के भी पास, यहां तक कि अपने संगे-संबंधियों के पास भी अवांछित और बोझ बन कर रहे……।“ कहानी में मनुष्य के स्वभावगत व्यवहार का मनोविश्लेषण बहुत सूक्ष्मता से हुआ है।
यह संग्रह एक विशिष्टता लिये हुए है कि कहानियों में विविधता बहुत है। एक ओर जहां मनोविश्लेषण है, वहीं सामाजिकता भी है, परिवार बांधे रखने के लिए उदाहरण भी हैं, सांप्रदायिक भावावेश पर सदाशयता की कसौटी है और सतत अच्छाई की विजय पताका लहराती दिखती है। वह भी दिखावटी नहीं, बल्कि सहज, स्वाभाविक रूप में सब घटित होते चलता है क्योंकि अभी भी समाज में सकारात्मक शक्तियां हैं। कथाकार ने ऐसे ही सकारात्मक पात्रों के इर्द-गिर्द कथावस्तु का ताना-बाना बुना है। कथाकार शेष – “सत्यम् शिवम् सुंदरम्” का अनायास ही पक्षधर प्रतीत होता है। “अकीदत” में कर्तव्य निर्वहन के दौरान पूजा और नमाज को लेकर आपस में तकरार होती है, लेकिन अंतत: फर्ज सर्वोपरि होता है और सांप्रदायिकता पीछे छूट जाती है। कथाकार ने इसे सांप्रदायिक मुद्दे की कहानी होने से साफ बचा लिया है। चेतावनी यह है कि “याद रखो, फर्ज भूल कर उसकी इबादत करोगे तो वह उसे कतई कुबूल नहीं होगी।“
“गुड्डी” कहानी “दो वक्त की रोटी खाने के लिए दूसरों की रोटियां बनाने को भाग्य समझने वाली’” कामवाली युवती की मर्मस्पर्शी कहानी है। हमेशा मालिक और मजदूर के बीच एक टकराव देखा जाता है। लेकिन, इस कहानी में गुड्डी की ईमानदारी और मालकिन की संवेदनशीलता देखते ही बनती है। हालांकि यह एक बिरला संयोग लग सकता है, पर मालकिन के व्यवहार से अंदर तक भीगी गुड्डी की यह कहानी अविश्वसनीय कतई नहीं लगती। मनुष्यता का यह दुर्लभ समीकरण सकारात्मक सोच की नींव रखता है। इसके विपरीत, सारी दुनिया को “जूते की नोक पर” रखने वाला दिनेश बाबू सबको ठुकराता है। उसका अहं उसे निरंतर अकेलेपन की ओर ढकेलता है। प्रतिभावान होते हुए भी वह भावनाओं को नहीं पहचान पाता और उन्हें ठुकरा कर अंधेरेपन की गहरी खाइयों में गिरता चला जाता है। कथाकार ने प्रेम, समर्पण, अहंकार और अकेलेपन को बहुत सूक्ष्मता से रेखांकित किया है।
डा. रमाकांत शर्मा अपनी छोटी-छोटी कहानियों में मनुष्य के अतल मन की गहराइयों की थाह लेते हैं। मनुष्य अपने व्यवहार से अपने मन को प्रकट करता है। कहानी “मां के चले जाने के बाद” एक पिता की भीतरी परतों में दबी भावना का बहुत प्रखर पल्लवन है। निरपेक्ष और कुछ हद तक नकारात्मक स्थिति में पहुंचने वाले पिता को जब यह पता चलता है कि उसका बेटा भी अपनी मां को खोकर कितना दु:खी है तो वह एक अपराध भाव से भर उठता है और उसे अपनी निष्ठुरता पर अफसोस होता है। इस संग्रह की कहानियों की एक और विशेषता यह है कि स्थितियां खलनायक का काम करती हैं और अंतत: सकारात्मक सोच की विजय होती है।
“एक पत्र की मौत” अद्भुत प्रेम कथा है। यह कहानी, इस बात को पुराने तथाकथित आदर्श के घेरे में न रख कर कि – सच्चा प्रेम त्याग में पलता है – उसे एक नया आयाम देती है। ऐसी ही एक कहानी “सत्ताइस साल बाद” है जो असफल प्रेम की प्रौढ़ावस्था में याद के रूप में उजागर होती है। “वह क्यों रोई” मनुष्य की भीतरी संवेदनाओं और अच्छाइयों को उकेरने वाली कहानी है। “भीतरी परतें” एक गाइड प्रोफेसर के स्वभाव को प्रतिध्वनित करती कहानी है, जो बाहर से बहुत कठोर है और अंदर से बहुत संवेदनशील। कई बार कुछ दुर्घटनाएं मनुष्य की भीतरी परतों को खोलने में मदद करती हैं। “वह बड़ा हो गया था” अभावों में पल रहे बचपन को अचानक बड़ा होते अनुभव करने की स्थिति में किसी भी मां को चौंका सकती है। “मास्टर प्यारे लाल” एक ऐसे मास्टर की मार्मिक कहानी है जिसे निलंबन के बाद अपना परिवार चलाने के लिए क्या कुछ नहीं करना पड़ा। उसकी स्थिति से वह उद्दंड विद्यार्थी भी द्रवित हो आया जो उसके निलंबन का कारण बना था। जिम्मेदारी, प्रेम और समर्पण के प्रतीक के रूप में “मंदिर की सबसे ऊंची सीढ़ी” कहानी को देखा जा सकता है। प्रेम का सात्विक रूप जगमगाते भविष्य का प्रतीक बना जाता है। “मैं भी कुछ हूं” अस्पतालों में मरीजों की दुर्दशा बयान करती कहानी तो है ही, मनुष्य के मन में पलती उस आकांक्षा को अभिव्यक्त करती कहानी भी है जिसमें वह अपने छोटेपन से उबरने के लिए अपने अधिकारों का इस्तेमाल दूसरों को छोटा दिखाने में करता है और उसका आनंद भी लेता है। कहानी “मैं और नदी” का शिल्प नवीनता लिये है। नदी और स्त्री पात्र के जीवन की तुलना करती हुई यह कहानी नदी का सा प्रवाह लिये चलती है और पढ़ते समय वैसी ही ताजगी का अहसास कराती है। कहानी “उतरती धूप” समय रहते जिंदगी को जी लेने का संदेश देती है।
डा. रमाकांत शर्मा मानव मन की अतल गहराइयों में पहुंच कर पात्रों के सुख-दु:ख से संवाद करते हैं। “और कुछ जानना चाहते हैं आप”? – कहानी की मुख्य नारी पात्र यह प्रश्न करती है। नौकरीशुदा महिलाओं की त्रासदी, चुनौती और वरिष्ठ अधिकारियों की नजर को उजागर करती यह कहानी अकेली कामकाजी स्त्री की व्यथा-कथा है। वह महसूस करती है कि अकेले रहना भी कोई आसान काम नहीं है। जाना-पहचाना हर पुरुष यह मानता है कि अकेली रहने वाली स्त्री उसके लिए उपलब्ध है। यह कहानी लालची दुर्व्यवहार और उसके प्रतिकार की कहानी है। “ईश्वर अगर है तो” अलग तरह की कहानी है। यह कहानी ईश्वर की कल्पना के अलग-अलग आयामों को छूती हुई ईश्वर की मौजूदगी के अहसास को अनुभव कराने की एक कोशिश है।
वही कहानी मन में जगह बना पाती है जिसमें यथार्थ का पुट हो, रोचकताभरा बयान हो और मनुष्य की भीतरी परतों की दास्तान हो। इस दृष्टि से डा. रमाकांत शर्मा की कहानियां खरी उतरती हैं। उनका कोई भी पात्र काल्पनिक नहीं लगता, वह जीता-जागता हाड़-मांस का मनुष्य होता है। कहानी की कहन सहज, स्वाभाविक और सरल शैली में होने से पाठकों के लिए रोचकता से भरी होती है। कहानियां पढ़ कर ऐसा लगता है कि हमेशा सदाशयता की जीत होती है। पात्र एक सात्विकता के साथ जीवन को देखते हैं और विपरीत स्थितियों में भी अपने को डिगने नहीं देते, यह कथाकार की सृजनात्मक जीत है।
इस संग्रह की कहानियों की भाषा बहुत सहज है, शैली कहानियों के मर्म तक पहुंचाने में सफल रही है। हर कहानी कोई न कोई संदेश देती है। यह संदेश, मौटेतौर पर लाउड न होकर मनोविश्लेषणात्मक ढंग से, मनुष्य के मन को अनेक आयामों, कोणों से निरूपित कर प्रस्तुत किया गया है। इन कहानियों की रोचकता और पठनीयता विशिष्ट गुण के रूप में उजागर होते हैं।
डा. दामोदर खड़से
बी – 503-504, हाई ब्लिस
कैलाश जीवन के पास
धायरी, पुणे – 411041
मोबाइल – 09850088496
ईमेल – [email protected]
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