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Rubaru : Laxmikant
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Rubaru : Laxmikant

by Laxmikant Verma
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Author Laxmikant Verma
Publisher Lokbharti Prakashan
Synopsis रूबरू : लक्ष्मीकांत ' उनकी काव्य-यात्रा की अन्तिम परिणति है । नयी कविता के परिसर में लक्ष्मीकांत वर्मा का व्यक्तित्व सबसे अलग किस्म के विकास की छाप छोड़ती है । काव्य में उनका सर्जनात्मक व्यक्तित्व अधिक गहराई और व्यापकता के साथ अभिव्यक्त हुआ है । नयी कविता' में लक्ष्मीकांत जी की अनेक कविताएं छप कर आयी थीं । लक्ष्मीकांत जी का कहना है कि इन कविताओं के विषय में मुझे इतना ही कहना है कि यह मेरी व्यक्तिगत अनुभूतियों का संग्रह है । कहीं-कहीं इसमें पूरा परिवेश हमारे साथ रहा है, कहीं-कहीं मैं बिल्कुल अकेला रह गया हूँ । जहाँ परिवेश ने मेरी अनुभूति को गहराई दी है, वहां मैं उसका ऋणी हूँ लेकिन जहां मैं बिस्कूल अकेला रह जाता हूँ वहां किसी को दोषी नहीं ठहराता क्योंकि अन्ततोगत्वा सब छूट जाते हैं । केवल कवि का व्यक्तित्व और स्थितियों का गहनतम् दबाव यही दो शेष बचते हैं । उस साक्षात्कार की अभिव्यक्ति कठिन भी है और जटिल भी और वही कवि के व्यक्तित्व की परख भी होती है । ' कवि व्यक्तित्व के परख की जिस कसौटी की चर्चा लक्ष्मीकांत जी ने इन पंक्तियों में की है, वह कसौटी आजीवन उनके काव्य के लिए निरन्तर बनी रही । ' रूबरू : लक्ष्मीकांत ' की प्रत्येक कविता आत्मदर्शन की कविता है । किन्तु यह आत्मदर्शन संकुचित आत्मदर्शन नहीं है । समाज की विस्तृत भूमि पर खड़ा एक रचनाकार समाज द्वारा कितना देखा जा सका और कितना अनदेखा रह गया, इसकी गहरी पीड़ा इन कविताओं में झलकती है । '' नहीं जानते लक्ष्मीकांत इस पिंजरे की मैना- - - कब और किस दिन उड़ जायेगी और यादगार रहेगा केवलएक ठाठर जिसे कहतेहैं मिट्टी, और जिस मिट्टी को सभी चाहते हैं, अकारथ न जाय- - पूरी की पूरी स्वारथ हो जाय । ', ' रूबरू : लक्ष्मीकांत' की कविताओं को गहराई से समझना एक अनिवार्य शर्त है और वही उनके प्रति सबसे गहरी श्रद्धांजलि भी ।

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Binding: HardBack
About the author
Specifications
  • Language: Hindi
  • Publisher: Lokbharti Prakashan
  • Pages: 158
  • Binding: HardBack
  • ISBN: 9788180312589
  • Category: Poetry
  • Related Category: Literature
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