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Home Literature Poetry Premraag
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Premraag
by Anubhooti
4.3
4.3 out of 5
Creators
AuthorAnubhooti
PublisherRadhakrishna Prakashan
Synopsisहमारे समय में प्रेम उतना संकटग्रस्त नहीं दिखता, जितनी संकटग्रस्त हमारी भाषा में प्रेम-कविता हो गई मालूम पड़ती है । निज संवेदना पर कवि का अनुशासन होते -होते उसकी संवेदना की सामाजिक व्याप्ति तक पहुँच जाता है, और फिर उसे सब तरफ़ सब कुछ दिखाई देता है--भूख-गरीबी भी संघर्ष और यातना भी, देश और राजनीति भी लेकिन इस सबके साथ लगातार मौजूद प्रेम पर उसकी निगाह नहीं पड़ती । इसका सबसे बड़ा नुकसान यह हुआ कि जीवन की इस दैनिकता के लिए, जिसे प्रेम कहते हैं, हमारी भाषा बहुत महीन और नए औज़ार विकसित नहीं कर पाई । प्रेम कविताओं के नाम पर जो लिखा जाता है, वह बाकी हर कविता के मुकाबले अपंग जैसा नजर आता है । यह संग्रह काफ़ी हद तक इसका अपवाद प्रस्तुत करता है । इसमें संकलित नातिदीर्घ कविताएँ प्रेमानुभव के भिन्न-भिन्न बिन्दुओं को प्रकाशित करती हुई, प्रेम के उस मूल संकल्प को रेखांकित करती चलती है, कि प्रेम हर हाल में गहरे बदलाव का आरम्भ होता है, जिसकी पहली कोंपल की अलग-अलग मुद्राओं के बिम्ब हैं । समर्पण का भाव, प्रेमी के माध्यम से विश्व-रूप का दर्शन और सामाजिक-दैनिक निरंतरता के रोजमर्रा प्रवाह में कुछ और होते जाते प्रेमी मन की अलग-अलग ताप की उसाँसे ।