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Home Literature Literature Naye Shekhar ki Jeevani
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Naye Shekhar ki Jeevani
by Avinash Mishra
4.8
4.8 out of 5
Creators
AuthorAvinash Mishra
Publisher
Synopsisशेखर मूलतः कवि है और कभी-कभी उसे लगता है कि वह इस पृथ्वी पर आख़िरी कवि है। यह स्थिति उसे एक व्यापक अर्थ में उस समूह का एक अंश बनाती है, जहाँ सब कुछ एक लगातार में ‘अन्तिम’ हो रहा है। वह इस यथार्थ में बहुत कुछ बार-बार नहीं, अन्तिम बार कह देना चाहता है। वह अन्तिम रूप से चाहता है कि सब अन्त एक सम्भावना में बदल जाएँ और सब अन्तिम कवि पूर्ववर्तियों में।
वह एक कवि के रूप में अकेला रह गया है, ग़लत नहीं है तो एक मनुष्य के रूप में अकेला रह गया है एक साथ नया और प्राचीन। वह जानता है कि वह जो कहना चाहता है, वह कह नहीं पा रहा है और वह यह भी जानता है कि वह जो कहना चाहता है उसे दूसरे कह नहीं पाएँगे।
शेखर जब भी एक उल्लेखनीय शास्त्रीयता अर्जित कर सम्प्रेषण की संरचना में लौटा है, उसने अनुभव किया है कि सामान्यताएँ जो कर नहीं पातीं उसे अपवाद मान लेती हैं और जो उनके वश में होता है उसे नियम...। वह मानता है कि प्रयोग अगर स्वीकृति पा लेते हैं, तब बहुत जल्द रूढ़ हो जाते हैं। इससे जीवन-संगीत अपने सतही सुर पर लौट आता है। इसलिए वह ऐसे प्रयोगों से बचता है जो समझ में आ जाएँ।
शेखर बहुत-सी भाषाएँ केवल समझता है, बोल नहीं पाता। शेखर पागल थोड़ा नहीं है, अर्थात् बहुत है।