Synopsisकभी-कभी सड़कों, गलियों मंे घूमते या अखबारों की अपराध-सुर्खियों में दिखाई देनेवाले कंजर, साँझी, नट, मदारी, सँपेरे, पारदी, हाबूड़े, बनजारे, बावरिया, कबूतरे- न जाने कितनी जन-जातियाँ हैं जो सभ्य समाज के हाशियों पर डेरा लगाए सदियाँ गुज़ार देती हैं- हमारा उनसे चौकन्ना सम्बन्ध सिर्फ कामचलाऊ ही बना रहता है। उनके लिए हम हैं कज्जा और ‘दिकू’- यानी सभ्य-सम्भ्रान्त, ‘परदेसी’, उनका इस्तेमाल करने वाले शोषक- उनके अपराधों से डरते हुए, मगर उन्हें अपराधी बनाए रखने के आग्रही। हमारे लिए वे ऐसे छापामार गुरिल्ले हैं जो हमारी असावधानियों की दरारों से झपट्टा मारकर वापस अपनी दुनिया में जा छिपते हैं। कबूतरा पुरुष या तो जंगल में रहता है या जेल में...स्त्रियाँ शराब की भट्टियों पर या हमारे बिस्तरों पर...
इन्हीं ‘अपरिचित’ लोगों की कहानी उठाई है कथाकार मैत्रेयी पुष्पा ने ‘अल्मा कबूतरी’ में। यह ‘बुन्देलखंड की विलुप्त होती जनजाति का समाज-वैज्ञानिक अध्ययन’ बिल्कुल नहीं है, हालाँकि कबूतरा समाज का लगभग सम्पूर्ण ताना-बाना यहाँ मौजूद है- यहाँ के लोग-लुगाइयाँ, उनके प्रेम-प्यार, झगड़े, शौर्य इस क्षेत्र को गुंजान किए हुए हैं।
About the author
Maitreyi Pushpa (मैत्रेयी पुष्पा) (born 30 November 1944), is a Hindi fiction writer. An eminent writer in Hindi, Maitreyi Pushpa has ten novels and seven short story collections to her credit. She also writes prolifically for newspapers on current issues concerning women, and adopts a questioning, daring and challenging stance in her writings. She, as a writer is best known for her Chak, Alma Kabutari, Jhoola Nat and an autobiographical novel Kasturi Kundal Base.