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कुल देवी माँ कात्ययनी की असीम अनुकम्पा से नैमिष क्षेत्र के ग्राम चवा-बेगमपुर, पो. महोली, जनपद सीतापुर, उ.प्र. में संस्कृत के वैदिक साहित्य, लौकिक साहित्य, व्याकरण, दर्शन, साँख्य, उपनिषद निरुक्त, ज्योतिष एवं कर्मकाण्डों के प्रकाण्ड पण्डित, अपने नाम की सार्थकता को सिद्ध करने वाले पं. वंश भानु मिश्र के घर दिनाँक 28.11.1934 को पं. उमेश चन्द्र मिश्र ने जन्म लिया। इनको विद्वता, सहनशीलता, कर्मठता एवं ईमानदारी आनुवांशिक लक्षणों द्वारा विरासत में प्राप्त थे। मूर्धन्य विद्वान पं. कामता दत्त मिश्र के सानिध्य एवं गुरुता में हिन्दुस्तानी मिडिल स्कूल की परीक्षा 1950 में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की लेकिन धनाभाव के कारण उच्च शिक्षा नहीं प्राप्त कर सके। प्रशिक्षण प्राप्त करके सन 1954 में शिक्षक जैसे गरिमामय पद को विभूषित किया। मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम के जीवन को आत्मसात करते हुए श्री रामचरित मानस के मर्मज्ञ थे। अपनी कर्त्तव्य परायणता, ईमानदारी एवं रामभक्ति के कारण सम्पूर्ण मानव समाज में अजातशत्रु थे। अनेकों छात्र/छात्राओं, शिक्षकों एवं शिष्यों के आदर्श एवं प्रेरणास्रोत दिनाँक 30.06.1995 को शिक्षक पद से सेवानिवृत्त हो गए। दिनाँक 08.04.2005 को तीन पुत्रों, तीन पुत्रवधुओं, दो पुत्रियों, सात पौत्रों एवं एक पौत्रवधु को सदा के लिए छोड़कर ब्रह्मलीन हो गए। कृतियाँ - आलोक, उद्भ्रान्ति, पंचवटी, भीष्म पितामह, कौशल्या विलाप, श्रीराम चालीसा, परिहास, पुण्यआत्मायें, मानस प्रसंग, हनुमान चरित्र, काव्यान्जलि, राजा दिलीप एवं रामचरित्र।