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1857 : Itihas Kala Sahitya
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1857 : Itihas Kala Sahitya

by Murli Manohar Prasad Sing, Chanchal Chauhan
4.5
4.5 out of 5

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Creators
Author Murli Manohar Prasad Sing, Chanchal Chauhan
Publisher Rajkamal Prakashan
Synopsis 1857 आधुनिक भारतीय इतिहास की ऐसी परिघटना है जिस पर सैकड़ों पुस्तकें लिखी गई हैं। इसके बावजूद इतिहास, कला और साहित्य के क्षेत्र में पिछले 150 वर्षों के अनुसंधानों पर आधारित नवोन्मेषकारी विवेचनाओं और उद्भावनाओं से हिंदी-उर्दू भाषी समुदाय की चेतना में मंथन उत्पन्न करनेवाली पुस्तक का नितान्त अभाव है। इसी जश्रूरत को ध्यान में रखकर इस पुस्तक की सम्पूर्ण सामग्री में श्रमसाध्य और नए ढंग के संचयन का प्रयास किया गया है। इस पुस्तक में पूर्व प्रकाशित सामग्री अल्पतम है - सिर्फष् संदर्भ बताने के उद्देश्य से। अंग्रेज़ी और हिंदी-उर्दू में अभी तक अप्रकाशित अनेक महत्त्वपूर्ण आलेखों और सृजनधर्मी रचनाओं को व्यवस्थित रूप में प्रस्तुत किया गया है - इस व्यवस्था में एक वैचारिक अन्विति का होना स्वाभाविक है। चूंकि अन्विति ही वह विधि है जिसके माध्यम से अत्याधुनिक प्रक्रियाओं को समझने और इतिहास से संवाद कर रही कलात्मक और साहित्यिक सृजनशीलता के सन्दर्भ का खुलासा करने में मदद मिलती है। रंगकर्म, फ़िल्म, चित्रकला, उर्दू शायरी तथा हिंदी साहित्य के परिदृश्यों के विवेचन से इसे समृद्ध किया गया है ताकि इतिहास, कला और साहित्य की परस्पर सम्बद्धता की अन्तःक्रिया भी स्पष्ट हो सके। 1857 पर इतिहास लेखन यद्यपि दो प्रतिधु्रवों में विभक्त रहा, इसके बावजूद सन् सत्तावन की जंगे-आजशदी को समकालीन समाजवैज्ञानिक, चिन्तक और रचनाकार जिस दृष्टि से देखते हैं, उस ऐतिहासिक प्रक्रिया का तात्पर्य जिस तर्कव्यवस्था से आलोकित करते हैं - इस पूरी पद्धति के लिहाज से इस संकलन में इरफ़ान हबीब, एजाजश् अहमद, सव्यसाची भट्टाचार्य, सूरजभान, रजत कांत रे, एस.पी. वर्मा, शीरीं मूसवी, पी.के. शुक्ला, देवेन्द्र राज अंकुर, इम्तियाजश् अहमद, अमर फारूक़ी, नुजश्हत काजश्मी, मुहम्मद हसन, शिवकुमार मिश्र, कमलाकांत त्रिपाठी, खगेन्द्र ठाकुर, विजेन्द्र नारायण सिंह, सीताराम येचुरी, नलिनी तनेजा, मनमोहन, असद जैश्दी, संजीव कुमार आदि के आलेख गशैरतलब हैं। 1857 के साथ मैत्रेयी पुष्पा, कुमार अंबुज, योगेन्द्र आहूजा, दिनेश कुमार शुक्ल, सुल्तान अहमद, वंदना राग, विमल कुमार का रचनात्मक संवाद अतीत के साथ वर्तमान को भी आन्दोलित करता है। इतिहास, कला और साहित्य की घटनाओं और रचना प्रक्रियाओं का अन्तर्विरोध समझने के लिहाज से ही बीसवीं सदी के महान फ्रांसीसी इतिहासकार मार्क ब्लाख की यह टिप्पणी स्मरणीय है कि ‘राजनीति, अर्थव्यवस्था और संस्कृति के क्षेत्र की परिघटनाएं एक ही वक्र पर उपस्थित हों, यह आवश्यक नहीं है’ इस पुस्तक के माध्यम से इसे 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध के भारतीय इतिहास और संस्कृति के सन्दर्भ में बखूबी समझा जा सकता है। अंग्रेज़ी में प्रकाशित होने से पहले ही अनेक आलेखों को हिंदी में उपलब्ध कराने के सराहनीय प्रयास के साथ 1857 की जनक्रांति पर अभी तक हिंदी में प्रकाशित पुस्तकों के बीच निस्संदेह यह पुस्तक अनूठी और विचारोत्तेजक है।

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Binding: HardBack
About the author
Specifications
  • Language: Hindi
  • Publisher: Rajkamal Prakashan
  • Pages: 287
  • Binding: HardBack
  • ISBN: 9788126714322
  • Category: History
  • Related Category: Historical
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