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Pani Ki Prarthana : Paryavaran Vishayak Kavitayen
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Pani Ki Prarthana : Paryavaran Vishayak Kavitayen

by Kedarnath Singh
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Publisher Rajkamal Prakashan
Synopsis केदारनाथ सिंह के कविता-कर्म में प्रकृति और पर्यावरण की उपस्थिति बरगद की जड़ों की तरह इतनी गहरी और विस्तीर्ण है कि उनकी कुछेक कविताओं को पर्यावरण-केन्द्रित कहना अन्याय होगा। उनकी कई ऐसी कविताएँ जो आपाततः प्रकृति और पर्यावरण की परिधि से बाहर दिखती हैं, लोक और प्रकृति के ताने-बाने को अन्तःसलिला की तरह समेटकर रखती हैं। उनकी पर्यावरण सम्बन्धी कविताओं का चयन दुष्कर तो है ही, कइयों को ग़ैरज़रूरी भी लग सकता है। यह भी हो सकता है कि इस तरह के चयन में ऐसी कई कविताएँ छूट जाएँ जिनमें प्रकृति और पर्यावरण की चिन्ता थोड़े भिन्न स्वरूप में मौजूद है। इस चयन का उद्देश्य केदारनाथ सिंह की ऐसी कविताओं को एक स्थान पर दर्ज करना है, जिनमें प्रकृति और पर्यावरण या तो चरित्र-नायक की तरह या स्थापत्य के स्तर पर अधिक प्रदीप्त हैं। आज पूरा विश्व जिस तरह से पर्यावरण संकट से गुज़र रहा है, यह चिन्ता का विषय है। यह चिन्ता जब कवि की चिन्ता बन जाती है तो जीवन के संकट का प्रश्न बन जाती है क्योंकि कवि पूरी पृथ्वी का नागरिक होता है। पृथ्वी की सभी आहटें उसकी बंसी के सुर बन जाती हैं। ऐसे विषय जब लेखन में आते हैं तो अक्सर बेसुरे हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में कविताएँ सुरसाधक-शब्दसाधक की तरह आपका सन्तुलन बनाए रखती हैं। पर्यावरणीय दृष्टि से केदारनाथ सिंह की कविताओं के चयन का यह सम्भवत: पहला प्रयास है। इससे कवि के दृष्टि-विस्तार को समझने और ऐसे विषयों को भाषा में बरतते हुए ज़रूरी संवेदनशील बिन्दुओं को उजागर करने में कुछ सहायता अवश्य मिलेगी, ऐसी उम्मीद है। साथ ही, कवि के कुछ अनचीन्हे बिन्दुओं को भी रेखांकित किया जा सकेगा।

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Binding: PaperBack
About the author केदारनाथ सिंह का जन्म सन् 1934 में बलिया, उत्तर प्रदेश के चकिया गाँव में हुआ। आरम्भिक शिक्षा गाँव में, बाद की शिक्षा हाईस्कूल से एम.ए. तक वाराणसी में। आधुनिक हिन्दी कविता में बिम्बविधान विषय पर सन् 1964 में पी-एच.डी. प्राप्त की। विधिवत् काव्य-लेखन सन् 1952-53 के आसपास शुरू हुआ। कुछ समय तक बनारस से निकलनेवाली अनियतकालिक पत्रिका हमारी पीढ़ी से सम्बद्ध रहे। पहला कविता-संग्रह अभी, बिलकुल अभी सन् 1960 में प्रकाशित। उसी वर्ष प्रकाशित तीसरा सप्तक के सहयोगी कवियों में से एक। पेशे से अध्यापक रहे केदारजी के कार्यक्षेत्र का प्रसार महानगर से ठेठ ग्रामांचल तक रहा। सन् 1976 से 1999 तक जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के भारतीय भाषा केन्द्र में अध्यापन और सम्प्रति उससे प्रोफेसर एमिरिटस के रूप में सम्बद्ध रहे। वे अनेक पुरस्कारों से सम्मानित हुए जिनमें प्रमुख हैं : ज्ञानपीठ पुरस्कार, साहित्य अकादेमी पुरस्कार, व्यास सम्मान, मैथिलीशरण गुप्त सम्मान (मध्यप्रदेश), कुमारन आशान पुरस्कार (केरल), दिनकर पुरस्कार (बिहार), जीवन भारती सम्मान, भारत भारती सम्मान, गंगाधर मेहर राष्ट्रीय कविता सम्मान (उड़ीसा), जाशुआ सम्मान (आन्ध्र प्रदेश) आदि। कई विदेशी तथा प्राय: सभी प्रमुख भारतीय भाषाओं में कविताओं के अनुवाद। फ्रेंच तथा इतालवी में बाघ शीर्षक लम्बी कविता के अनुवाद पुस्तकाकार प्रकाशित। प्रकाशित कृतियाँ : अभी, बिलकुल अभी, ज़मीन पक रही है, यहाँ से देखो, अकाल में सारस, उत्तर कबीर और अन्य कविताएँ, तालस्ताय और साइकिल, बाघ, सृष्टि पर पहरा, मतदान केन्द्र पर झपकी, प्रतिनिधि कविताएँ (काव्य-संग्रह)। कल्पना और छायावाद, आधुनिक हिन्दी कविता में बिम्बविधान, मेरे समय के शब्द, कब्रिस्तान में पंचायत (गद्य-कृतियाँ) तथा मेरे साक्षात्कार (संवाद)। निधन : 19 मार्च, 2018
Specifications
  • Language: Hindi
  • Publisher: Rajkamal Prakashan
  • Pages: 168
  • Binding: PaperBack
  • ISBN: 9789389598179
  • Category: Poetry
  • Related Category: Literature
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