उत्तर नहीं हूँमैं प्रश्न हूँ तुम्हारा ही! नये-नये शब्दों में तुमनेजो पूछा है बार-बारपर जिस पर सब के सब केवल निरुत्तर हैंप्रश्न हूँ तुम्हारा ही! तुमने गढ़ा है मुझेकिन्तु प्रतिमा की तरह स्थापित नहीं कियायाफूल की तरहमुझको बहा नहीं दियाप्रश्न…
उत्तर नहीं हूँमैं प्रश्न हूँ तुम्हारा ही! नये-नये शब्दों में तुमनेजो पूछा है बार-बारपर जिस पर सब के सब केवल निरुत्तर हैंप्रश्न हूँ तुम्हारा ही! तुमने गढ़ा है मुझेकिन्तु प्रतिमा की तरह स्थापित नहीं कियायाफूल की तरहमुझको बहा नहीं दियाप्रश्न…
सृजन की थकन भूल जा देवता!अभी तो पड़ी है धरा अधबनी, अभी तो पलक में नहीं खिल सकीनवल कल्पना की मधुर चाँदनीअभी अधखिली ज्योत्सना की कलीनहीं ज़िन्दगी की सुरभि में सनी अभी तो पड़ी है धरा अधबनी,अधूरी धरा पर नहीं…
आँजुरी भर धूप-सामुझे पी लो!कण-कणमुझे जी लो!जितना हुआ हूँ मैं आज तक किसी का भी –बादल नहाई घाटियों का,पगडंडी का,अलसाई शामों का,जिन्हें नहीं लेता कभी उन भूले नामों का, जिनको बहुत बेबसी में पुकारा हैजिनके आगे मेरा सारा अहम् हारा…
मैं क्या जिया ? मुझको जीवन ने जिया –बूँद-बूँद कर पिया, मुझकोपीकर पथ पर ख़ाली प्याले-सा छोड़ दिया मैं क्या जला?मुझको अग्नि ने छला –मैं कब पूरा गला, मुझकोथोड़ी-सी आँच दिखा दुर्बल मोमबत्ती-सा मोड़ दिया देखो मुझेहाय मैं हूँ वह सूर्यजिसे…
अगर डोला कभी इस राह से गुजरे कुवेला,यहाँ अम्बवा तरे रुकएक पल विश्राम लेना,मिलो जब गाँव भर से बात कहना, बात सुननाभूल कर मेरान हरगिज नाम लेना अगर कोई सखी कुछ जिक्र मेरा छेड़ बैठे,हँसी में टाल देना बात,आँसू थाम…
चेक बुक हो पीली या लाल,दाम सिक्के हों या शोहरत –कह दो उनसेजो ख़रीदने आये हों तुम्हेंहर भूखा आदमी बिकाऊ नहीं होगा है !
रख दिए तुमने नज़र में बादलों को साधकर,अाज माथे पर सरल संगीत से निर्मित अधर,अारती के दीपकों की झिलमिलाती छाँव में,बाँसुरी रखी हुई ज्यों भागवत के पृष्ठ पर। 2. उस दिन जब तुमने फूल बिखेरे माथे पर,अपने तुलसी दल जैसे…
ये अनजान नदी की नावेंजादू के-से पालउड़ातीआतीमंथर चाल। नीलम पर किरनोंकी साँझीएक न डोरीएक न माँझी ,फिर भी लाद निरंतर लातीसेंदुर और प्रवाल! कुछ समीप कीकुछ सुदूर की,कुछ चन्दन कीकुछ कपूर की,कुछ में गेरू, कुछ में रेशमकुछ में केवल जाल।…
लादकर ये आज किसका शव चले?और इस छतनार बरगद के तले,किस अभागन का जनाजा है रुकाबैठ इसके पाँयते, गर्दन झुका,कौन कहता है कि कविता मर गई? मर गई कविता,नहीं तुमने सुना?हाँ, वही कविताकि जिसकी आग सेसूरज बनाधरती जमीबरसात लहराईऔर जिसकी…
बरबाद मेरी ज़िन्दगीइन फिरोज़ी होठों पर गुलाबी पाँखुरी पर हल्की सुरमई आभाकि ज्यों करवट बदल लेती कभी बरसात की दुपहरइन फिरोज़ी होठों पर तुम्हारे स्पर्श की बादल-धुली कचनार नरमाईतुम्हारे वक्ष की जादू भरी मदहोश गरमाईतुम्हारी चितवनों में नर्गिसों की पाँत…