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Home Literature Poetry Pratinidhi Shairy : Habeeb Jalib
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Pratinidhi Shairy : Habeeb Jalib
by Habeeb Jalib
4.2
4.2 out of 5
Creators
AuthorHabeeb Jalib
PublisherRadhakrishna Prakashan
Synopsisउर्दू की मशहूर शायरा मोहतरमा फ़हमीदा रियाज ने कहा:
तारीख़ ने ख़िलक़त को तो क़ातिल ही दिए,
ख़िलक़त ने दिया है उसे ‘जालिब’ सा जवाब।
ओर इस शे’र के साथ एक ऐसे शायर की तस्वीर हमारे सामने आती है जिसने अपनी सारी ज़िन्दगी समाज के दबे-कुचले लोगों के नाम कर दी थी। यहाँ हमें ऐसा शायर नज़र आता है जो बार-बार सलाख़ों के पीछे डाला गया, जिसकी एक क्या, तीन-तीन किताबें ज़ब्त की गई, पासपोर्ट ज़ब्त किया गया, जिस पर झूठा आरोप लगाकर एक साज़िश के तहत मुक़दमें में फँसाया गया, जिसका एक बच्चा दवा-दारू के बिना मरा, और फिर भी जब वह जेल जाता है तो अपनी बीमार बच्ची के नाम संदेश देकर जाता है कि आनेवाला दौर नई नस्ल का ही होगा:
मेरी बच्ची, मैं आऊँ न आऊँ,
आनेवाला ज़माना है तेरा।
इतना ही नहीं, जब-जब उसे सत्ता की ओर से प्रलोभन दिए गए, उसने उन्हें ठुकराने में एक पल की देर नहीं की। हबीब जालिब की शायरी के बारे में कुछ कहना गोया सूरज को चिराग़ दिखाने के बराबर होगा। हम तो इतना ही जानते हैं कि ‘मज़ाज’ ने 1952 में ही भविष्यवाणी कर दी थी कि ‘जालिब अपने अहद का एक बड़ा शायर होगा’, ‘फ़िराक’ ने साफ़तौर पर कहा कि ‘सूरदास का नग्मा और मीराबाई का खोज अगर यकजा हो जाएँ तो हबीब जालिब बनना है,’ और सिब्ते-हसन न इन्तज़ार हुसैन समेत बहुत सारे अदीबों और जनसाधारण को जालिब ‘नज़ीर’ अकबराबादी के बाद उर्दू के अकेले जनकवि नज़र आते हैं। फिर हज़रत ‘जिगर’ मुरादाबादी ने जो दाद दी वह खुद ही दाद के क़ाबिल है। फ़रमाया, ‘‘हमारा ज़मान-ए-मैनोशी होता तो हम जालिब की ग़ज़ल पर सरे-महफ़िल ख़रा कराते।’’
ऐसे ही शायर का एक भरा-पूरा, प्रतिनिधि संकलन हिन्दी पाठकों को समर्पित करते हुए प्रकाशक ओर सम्पादक ने जालिब पर कोई एहसान नहीं किया, बल्कि खुद को गौरवान्वित किया है।