Synopsisमल्लिका आधुनिक हिन्दी के निर्माता भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की वह प्रेमिका थी जिसके संबंध में इतिहास और साहित्य मौन है। भारतेन्दु के घर के पास रहने वाली बाल-विधवा, मल्लिका ने भारतेन्दु से हिन्दी पढ़ना-लिखना सीखकर बांग्ला के तीन उपन्यासों का हिन्दी में अनुवाद किया। उन्हीं अनुवादों ने भारतेन्दु को ‘उपन्यास’ विधा से परिचित करवाया और इसी से प्रेरणा पाकर वे आधुनिक हिन्दी के निर्माता बने। लेकिन भाग्य की ऐसी विडंबना कि मल्लिका ने जो स्वयं मौलिक उपन्यास लिखा, उसका कहीं कोई ज़िक्र तक नहीं मिलता; जबकि उनका वह उपन्यास हिन्दी का प्रथम उपन्यास माने जाने वाले, परीक्षागुरु, से पहले का है। इतिहास के धुंधलके से गल्प के सहारे मनीषा कुलश्रेष्ठ ने उसी विस्मृत और उपेक्षित नायिका को खोज निकाला है और उसके जीवन पर एक काल्पनिक जीवनीपरक उपन्यास रचा है।
मनीषा कुलश्रेष्ठ एक सुपरिचित लेखिका हैं जो कथा साहित्य के कई महत्त्वपूर्ण सम्मान और फ़ैलोशिप प्राप्त कर चुकी हैं। इनके अब तक सात कहानी-संग्रह और चार उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं जिनमें शिगाफ़, पंचकन्या, स्वप्नपाश और किरदार उल्लेखनीय हैं। इनकी कई कहानियाँ विदेशी भाषाओं में भी अनूदित हो चुकी हैं।
इनका संपर्क है: manishakuls@gmail.com
Enjoying reading this book?
PaperBack
₹235
Print Books
Digital Books
About the author
हिन्दी साहित्य जगत की जानी मानी लेखिका मनीषा कुलश्रेष्ठ को लेखन के प्रति रुचि अपनी मां से विरासत में मिली. मनीषा का जन्म 26 अगस्त, 1967 को जोधपुर, राजस्थान में हुआ. विज्ञान से स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद इन्होंने स्नातकोत्तर और एमफिल हिन्दी साहित्य से किया।
प्रकाशित कृतियाँ:
कठपुतलियाँ, कुछ भी तो रूमानी नहीं, केयर ऑफ स्वात घाटी, गन्धर्व-गाथा, बौनी होती परछाईं, रंग रूप रास गंध शिगाफ, शालभंजिका, मल्लिका, किरदार, होना अतिथि कैलाश का
कृष्णा सोबती को अपना आदर्श मानने वाली मनीषा जी पिछले १० वर्षों से इंटरनेट की पहली हिंदी वेब पत्रिका हिंदीनेस्ट का सम्पादन कर रही हैं ।