Synopsisमहामुनि व्यास-कृत महाभारत की सरल संक्षिप्त प्रस्तुति-हिन्दी को निरालाजी का एक विशिष्ट और अत्यंत उपयोगी अवदान। यह पुस्तक विशेष रूप से ऐसे लोगों के लिए लिखी गई है जो संस्कृत ज्ञान से वंचित हैं। सभी महत्वपूर्ण घटना प्रसंग इसमें समाविष्ट हैं, अपने संवादों में सारे प्रमुख पात्र भी पूरी तरह मुखर हैं ! अठारह सर्गों की क्रमबंद्ध कथा ऐसी सरस और प्रवाहमयी भाषा-शैली में प्रस्तुत की गई है कि मूल ग्रंथ को न पढ़ पाने के बावजूद उसके संपूर्ण घटनाक्रम और विशिष्ट भावना-लोक से पाठक का सहज ही गहरा रिश्ता बन जाता है।
भूमिका
यह संक्षिप्त महाभारत साधारणजनों, गृहदेवियों और बालकों के लिए लिखी गयी है। इससे उन्हें महाभारत की कथाओं का सारांश मालूम हो जायेगा। भाषा सरल है। भाव के ग्रहण में अड़चन न होगी। पुस्तक लिखते समय मैंने कई छोटी-छोटी पुस्तकों का आधार लिया है—संस्कृत, बाँगला और हिन्दी। मुझे विश्वास है, साधारणजन इस पुस्तक से लाभ उठाकर मुझे कृतज्ञ करेंगे।
इत शम्
लखनऊ
26-7-39
'निराला'
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Binding: HardBack
About the author
सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' (21 फरवरी, 1896 - 15 अक्टूबर, 1961) हिन्दी कविता के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक माने जाते हैं। वे जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पंत और महादेवी वर्मा के साथ हिन्दी साहित्य में छायावाद के प्रमुख स्तंभ माने जाते हैं। उन्होंने कहानियाँ, उपन्यास और निबंध भी लिखे हैं किन्तु उनकी ख्याति विशेषरुप से कविता के कारण ही है।
किसी ने उस युग-कवि को ‘महाप्राण निराला’ कहा तो किसी ने उसे ‘मतवाला’ कहा। किसी ने उसे छायावादी युग का ‘कबीर ’कहा तो किसी ने उन्हें ‘मस्तमौला’ कहा । किसी ने उन्हें सांस्कृतिक नवजागरण का ‘बैतालिक’ कहा तो किसी ने उन्हें सामाजिक-क्रान्ति का ‘विद्रोही कवि’ कहा । एक साथ उनके नाम के साथ इतना वैविध्य और वैचित्रय जुटता गया कि इनका जीवन और काव्य दोनों विरोधाभास के रूपक बनते गए। मगर ‘निराला’ सचमुच निराला ही बने रहे। लोगों के द्वारा दिये गये विशेषणों की उन्होंने कभी चिन्ता नहीं की। वे एक साथ दार्शनिक भी थे, समाज-सुधारक भी थे, विद्रोही भी थे, स्वाभिमानी भी थे, अक्खड़ भी थे, फक्कड़ भी थे, उदारचेता भी थे और सबसे बढ़कर ‘महामानव’ थे।
युग की पीड़ा और समय का दंश निराला के हृदय को भी सालता रहा और उनके भीतर से शब्द का लावा फूटता रहा। उनके शब्द कहीं अंगार बनकर निकले तो कहीं इन्द्रधनुष बनकर उतरे। इस महान् कवि की जीवन-यात्रा भी फूल और अंगारे के बीच से होकर चलती रही। एक सतत संघर्ष की कहानी उनके जीवन की निशानी बनकर रह गई।