Synopsisरांगेय राघव हिंदी के उन प्रतिभाशाली लेखकों में से हैं जिन्होंने साहित्य के विविध अंगों की समृद्धि के लिए अपनी कुशल लेखनी से अनेक महत्वपूर्ण ग्रंथों का सृजन किया। उनकी कविता, कहानी, नाटक, उपन्यास, आलोचना तथा इतिहास आदि विषयक अनेक उपादेय कृतियां इस कथन की साक्षी हैं। मूलतः दक्षिणात्य होते हुए भी उन्होंने जिस जागरूक प्रतिभा, योग्यता तथा कुशलता से हिंदी साहित्य के श्री-वर्द्धन में अपना अविस्मरणीय योगदान दिया, वह इतिहास के पन्नों में दर्ज है।
'कब तक पुकारूं' उनकी प्रतिभा और लेखन-क्षमता को अभिषिक्त करने वाली जीवंत औपन्यासिक रचना है। इसमें उन्होंने समाज के सर्वथा उपेक्षित उस वर्ग का चित्रण अत्यंत सरल और रोचक शैली में प्रस्तुत किया है जिसे सभ्य समाज 'नट' या 'करनट' कहकर पुकारता है। 'कब तक पुकारूं' की गणना हिंदी के कालजयी साहित्य में की जाती है।
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Binding: PaperBack
About the author
रांगेय राघव (17 जनवरी, 1926 - 12 सितंबर, 1962) हिंदी के उन विशिष्ट और बहुमुखी प्रतिभावाले रचनाकारों में से हैं जो बहुत ही कम उम्र लेकर इस संसार में आए, लेकिन जिन्होंने अल्पायु में ही एक साथ उपन्यासकार, कहानीकार, निबंधकार, आलोचक, नाटककार, कवि, इतिहासवेत्ता तथा रिपोर्ताज लेखक के रूप में स्वंय को प्रतिस्थापित कर दिया, साथ ही अपने रचनात्मक कौशल से हिंदी की महान सृजनशीलता के दर्शन करा दिए।आगरा में जन्मे रांगेय राघव ने हिंदीतर भाषी होते हुए भी हिंदी साहित्य के विभिन्न धरातलों पर युगीन सत्य से उपजा महत्त्वपूर्ण साहित्य उपलब्ध कराया। ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि पर जीवनीपरक उपन्यासों का ढेर लगा दिया। कहानी के पारंपरिक ढाँचे में बदलाव लाते हुए नवीन कथा प्रयोगों द्वारा उसे मौलिक कलेवर में विस्तृत आयाम दिया। रिपोर्ताज लेखन, जीवनचरितात्मक उपन्यास और महायात्रा गाथा की परंपरा डाली। विशिष्ट कथाकार के रूप में उनकी सृजनात्मक संपन्नता प्रेमचंदोत्तर रचनाकारों के लिए बड़ी चुनौती बनी।