Synopsisक्या हम सिर्फ़ मज़बूत लोगों की लड़ाई लड़ रहे हैं? कमज़ोरों के हक की लड़ाई में कमज़ोरों के लिए कोई जगह नहीं?
(इस पुस्तक की एक कहानी, ‘और कितने यौवन चाहिए ययाति?’ में से)
ये पंक्तियाँ सिर्फ़ इस कहानी की पंक्तियाँ नहीं हैं। ये अशोक कुमार पाण्डेय की कहानियों की समूल चिंता है। संग्रह की सारी कहानियाँ आदर्श, थ्योरी और ज़मीनी वास्तविकता के विरोधाभास से मुठभेड़ करती हैं। एक पर्यवेक्षक की तरह लेखक अपनी कहानी में घटने वाली परिस्थितियों को दर्ज करते जाते हैं मुस्तैदी से। ज़ाहिर है फिर उन परिस्थितियों के बरअक्स सवाल भी उठ खड़े होते हैं, पैने और नुकीले! और सपनीली आशाओं से भरे भी।
न्याय और हक की पुकार से लबरेज़ ये कहानियाँ अपने समय और समाज पर एक करारी टिप्पणी करती हैं। इस टिप्पणी को गौर से देखने और समझने की ज़रूरत है।’’
-वंदना राग
हरफ़नमौला लेखक अशोक कुमार पाण्डेय अपनी बेहद संप्रेषणीय भाषा और साहसिक प्रयोगों के लिए जाने जाते हैं। दो कविता-संग्रह, आलोचना, माक्र्सवाद, भूमंडलीकरण पर दसेक किताबों तथा दो महत्त्वपूर्ण पुस्तकों के अनुवाद के साथ बेहद चर्चित किताब कश्मीरनामा: इतिहास और समकाल के बाद यह पहला कहानी संग्रह। कविता के लिए कुछ पुरस्कार भी लेकिन अक्सर सूचियों से बाहर। जनबुद्धिजीवी की भूमिका का निरन्तर निर्वाह।
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Binding: PaperBack
About the author
अशोक कुमार पांडेय का जन्म 24 जनवरी, 1975 को पूर्वी उत्तर प्रदेश के मऊ ज़िले के सुग्गी चौरी गाँव में हुआ। आप गोरखपुर विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में परास्नातक हैं। कविता, कहानी और अन्य कई विधाओं में लेखन के साथ-साथ अनुवाद कार्य भी करते हैं। कथेतर विधा में इनकी पहली शोधपरक पुस्तक 'कश्मीरनामा' बहुत चर्चा में रही। कश्मीर के इतिहास और समकाल के विशेषज्ञ के रूप में इनकी एक सशक्त पहचान है। २०२० में अशोक जी की दो किताबें 'कश्मीर और कश्मीरी पंडित' और उसने गाँधी को क्यों मारा राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित हुई हैं और दोनों ही किताबों को पाठकों ने हाथिओं हाथ लिया है।