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Home Literature Literature HASTINAPUR EXTENTION ‘हस्तिनापुर एक्सटेंशन’
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HASTINAPUR EXTENTION ‘हस्तिनापुर एक्सटेंशन’
by UMESH PRASAD SINGH उमेश प्रसाद सिंह
4.1
4.1 out of 5
Creators
AuthorUMESH PRASAD SINGH उमेश प्रसाद सिंह
PublisherPRATISHRUTI PRAKSHAN
Synopsisमहाभारत एक सतत चलने वाली कथा है। यह जितनी समूह की कथा है, उतनी ही व्यक्ति की भी। एक-एक व्यक्ति की। इसलिए यह जितनी बाहर की कथा है, उतनी ही भीतर की भी। जब-जब राजधर्म प्रश्नांकित होता है, नैतिकता स्खलित होती है, महाभारत अपने नए-नए आयाम गहता है। इसलिए महाभारत की कथा हर बार नए-नए रूपों में रची जाकर उपस्थित होती रहती है। उमेश प्रसाद सिंह ने भी इसे अपने समकाल में रूपायित किया है। ‘हस्तिनापुर एक्सटेंशन’ उपन्यास के कलेवर में हमारे समय के अनेक गाढ़े और अनसुलझे प्रश्नों को सुलझाने का एक दार्शनिक प्रयास है। यह बाहर से अधिक भीतर का महाभारत है। इसके पात्र बेशक महाभारत के हैं, पर वे सब हमारे बीच उपस्थित हैं, हर समय, हर स्थिति में। उनके भीतर हर वक्त एक युद्ध चलता रहता है। हर वक्त कुछ नैतिक प्रश्न उठते रहते हैं। वे जितना बाहर से नहीं लड़ रहे हैं, उससे अधिक अपने भीतर से लड़ रहे हैं। हर वक्त वे खुद को तलाशते, खुद को प्रश्नांकित करते रहते हैं। उन्हें अपनी सही ‘पोजीशन’ पर न टिके रह पाने का पश्चाताप है तो झुंझलाहट और आत्मधिक्कार भी। इस तरह तमाम चुप्पियों के खिलाफ उनके भीतर भयानक हाहाकार है। यह उपन्यास हमारे भीतर लड़े जा रहे महाभारत की उत्तरकथा है। इस औपनन्यासिक आख्यान के केंद्र में भीष्म पितामह हैं। उनके भीतर उठ रहे झंझावात, महाभारत के बाद निरंतर चल रहा महाभारत है। इसमें भीष्म खुद को प्रश्नांकित करते हैं, तो महाभारत के अन्य पात्र के भीतर के सवालों, उनके पश्चात्ताप, उनके अंतर्द्वंद्वों को भी रेखांकित करते रहते हैं। हस्तिनापुर शायद निरंतर महाभारत को अभिशप्त है। भीष्म उसके स्थायी योद्धा हैं। इस तरह उनमें हमारे समय का रक्तपात भी निरंतर घटित, प्रश्नांकित होता रहता है। यह उपन्यास उसका संवेदनात्मक दस्तावेज है।