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Home Nonfiction Biographies & Memoirs Guruji Ki Kheti-Bari
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Guruji Ki Kheti-Bari
by Vishwanath Tripathi
4.4
4.4 out of 5
Creators
AuthorVishwanath Tripathi
PublisherRajkamal Prakashan
Synopsisआलोचक के रूप में अपनी सृजनात्मक अप्रोच के लिए सराहे जानेवाले विश्व्नाथ त्रिपाठी की सवा-सराहना बतौर गद्यकार हमेशा ही सुरक्षित रहती है ! आलोचना से इतर अपनी हर पुस्तक के साथ उन्होंने 'दुर्लभ गद्यकार' की अपनी पदवी ऊंची की है ! उनकी भाषा और कहाँ चलते-फिरते साकार मनुष्य की प्रतीति देती है ! ऐसे कम ही लेखक हैं जिनकी लिखी पंक्तियों के बीच रहते हुए आप एक तनहा पाठक नहीं रह जाते, अपने आसपास किसी की उपस्थिति आपको लगातार महसूस होते हैं !
इन पृष्ठों में आप राजनीती का वह जामना भी देखेंगे जब 'अनशन, धरना, जुलूस, प्रदर्शन, क्रांति, उद्धार-सुधार, विकास, समाजवाद, अहिंसा जैसे शब्द्रो का अर्थ्पतन, अनर्थ, अर्थघृणा और अर्थशर्म नहीं हुआ था !' और विश्वविद्यालय के छात्र मेजों pa मुट्ठियाँ पटक-पटककर मार्क्सवाद पर बहस किया करते थे ! जवाहरलाल नेहरु, कृपलानी, मौलाना आजाद जैसे राजनितिक व्यक्तित्वों और डॉ. नागेन्द्र, विष्णु प्रभाकर, बालकृष्ण शर्मा नवीन, शमशेर और अमर्त्य सेन जैसे साहित्यिकों-बोद्धिकों की आँखों बसी स्मृतियों से तारांकित यह पुस्तक त्रिपाठी जी के अपने अध्यापन जीवन के अनेक दिलचस्प संस्मरणों से बुनी गई है ! किस्म-किस्म के पढनेवाले यहाँ हैं ! हरियाणा से कम्बल ओढ़कर और साथ में दूध की चार बोतलें कक्षा में लेकर आनेवाला विद्यार्थी है तो किरोड़ीमल के छात्र रहे अमिताभ बच्चन, कुलभूषण खरबंदा, दिनेश ठाकुर और राजेंद्र नाथ भी हैं !
शुरुआत उन्होंने बिस्कोहर से अपने पहले गुरु रच्छा राम पंडित के स्मरण से की है ! इसके बाद नैनीताल में अपनी पहली नियुक्ति और तदुपरांत दिल्ली विश्वविद्यालय में बीते अपने लम्बे समय की अनेक घटनाओं को याद किया है जिनके बारे में वे कहते हैं : 'याद करता हूँ तो बादल से चले बाते हैं मजमूँ मेरे आगे !