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Dyodhi Par Aalap
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Dyodhi Par Aalap

by Yatindra Mishra
4.6
4.6 out of 5

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Creators
Publisher Rajkamal Prakashan
Synopsis पिछली सदी के आखिरी वर्षों तक आते-आते यथार्थ कुछ इस कदर निरावृत्त हुआ कि उसे खोजने और रचना में व्यक्त करनेवाली पुरानी प्रविधियाँ अपने तमाम औजारों के साथ निरर्थक लगने लगीं। ‘समाजवाद’ से थोड़ा पहले ही नेहरूवीय भ्रमों का अवसान हुआ और रात के ‘अँधेरे में’ दिखनेवाला फासिस्ट जुलूस प्रभातफेरी और शोभायात्रा में बदल गया। न छिपाने में किसी की रुचि रह गई, न बताने को कुछ ख़ास बाक़ी बचा। हिन्दी की युवतम कविता के मुहावरे में इस विडम्बनात्मक स्थिति को यतीन्द्र मिश्र कुछ यूँ व्यक्त करते हैं: कठपुतलियाँ भी जानती हैं/जो दिखा रहीं वह नकली है/जो छिपा रहीं वह असली है...’ (कठपुतलियाँ)। यथार्थ में हुए परिवर्तन के इस विस्फोट ने पुरानी दुनिया में रचे-पगे अनेक रचनाकारों को स्तब्ध कर दिया। उनकी आँखें फटी रह गईं, पर नए दृश्य अपने आशयों के साथ उनमें समा न सके। इस स्थिति का सामना होने पर कुछ ने तो अपने भी आवरण उतार फेंके और बहती गंगा में कूद पड़े लेकिन अधिकांश ने पुराने वैचारिक ढाँचे को सख़्ती से पकड़ लिया। सम्भवतः असुरक्षा की भावना के चलते ‘विचारधारा के अवसान’ के युग मंे बनने वाला वैचारिक स्टीरियोटाइप पहले से अधिक एकीकृत और व्यापक हुआ। परम्परागत आलोचना ने भी इसे सराहा क्योंकि उसकी समस्या भी वही थी, यानी नये यथार्थ के सामने असहजता और अपने अप्रासंगिक हो जाने का भय। दोनों ने एक दूसरे की कमी को पहचाना और भाषा में उसकी भरपाई की - ‘दिखाई नहीं देती बात करती जुबान में/एक ताज़ी आदिम महक/न ऐसा सच/जो निबौलियों की तरह कड़वा हो (हम प्रतिदिन)। इस ‘मतलबपरस्ती’ के बरक्स कुछ स्वर हिन्दी कविता में ऐसे भी उभरे जिन्होंने नए यथार्थ की चमकीली सतह की चकाचौंध से आक्रान्त हुए बिना उसकी गहराइयों में जाने का जोखिम उठाया और वहाँ से भाँति-भाँति के रंग-बिरंगे तत्त्व एकत्र किए। स्वभावतः, बहुस्तरीय यथार्थ से सम्पर्क और तदनुरूप भाषा-शैली की ईमानदार खोज के कारण उनके स्वर भी अलग-अलग थे, लेकिन उनकी एकसूत्रता भी ठीक उसी वजह से थी - ‘इसी भीड़ में रहते हुए भीड़ से अलग/हरएक रोता है अपने-अपने ढंग से/जिस पर दूसरे अपने अनूठे तरीकों से हँसते हैं’ (मसखरे)। यतीन्द्र मिश्र की कविता इन्हीं नए स्वरों का प्रतिनिधित्व करती है। धैर्य के साथ चीज़ों को देखना, उनके रहस्यों को विखंडित करना यतीन्द्र मिश्र को विशेष प्रिय है। यह संग्रह इस अर्थ में अनूठा है कि इसकी प्रायः सभी कविताएँ किसी वस्तु, व्यक्ति या स्थिति को विश्लेषित करती, ठोस वस्तुस्थिति की कविताएँ हैं। भावनाओं की अमूर्त्त दुनिया भी है, लेकिन परदे के पीछे। इहलौकिकता के साथ यतीन्द्र मिश्र की कविता की दूसरी विशेषता है इसकी स्मृति-सम्पन्नता। वैसे तो ‘नमक’ जैसी एकाध कविता में अतीत के संघर्ष की स्मृति भी मिलती है, लेकिन आमतौर पर यतीन्द्र के यहाँ मिटती हुई अथवा हाशिये पर जाती हुई मूल्यवान चीज़ों की स्मृति बार-बार आती है। लोक और संगीत प्रायः इसके माध्यम बनते हैं। ‘बारामासा’, ‘लोकगीत’ और ‘किस्से कहानियों की स्मृतियाँ’ ऐसी कविताएँ हैं, जिनमें यथार्थ और स्वप्न के संदर्भ में लोकजीवन की स्मृति को सहेजा गया है। ‘आदमी बने रहने की कोशिश’ तथा ‘अष्टपदी’ जैसी कविताओं में यह चिन्ता संगीत के माध्यम से हमारे सामने आती है, जबकि हाशिये पर पहुँच चुके लोग अपनी शक्ति के साथ ‘तकियाकलाम’, ‘मिरासिनें’ तथा ‘कछुआ और खरगोश’ में उपस्थित होते हैं। वैसे तो यतीन्द्र का काव्य-संसार शुरू से आखिर तक ऐन्द्रिक संवेदनों का संसार है, लेकिन रंगों का जादू उन्हें खासतौर पर सम्मोहित करता है। रंग और संगीत की परस्पर अन्तः- क्रिया से निर्मित प्रेम का यह बिम्ब देखें - ‘मैं नदी जितना साँवला/तुम सूर्योदय जितनी उज्ज्वल/हमारा प्रेम/कभी बसंत/ कभी जोगिया में/एक अतिविलम्बित बढ़त’ (हमारा प्रेम)। तेज़ी से भागते समय को रंगों के आकर्षण मंे रोक रखना कवि को सम्भव जान पड़ता है। लिखना, पढ़ना और रँगना यहाँ परस्पर समानार्थक क्रियाएँ बनकर उभरती हैं। सम्भवतः इसीलिए अपने देशकाल का सबसे सार्थक आख्यान वे ‘सुनो रंगरेज’ जैसी कविता में कर पाते हैं। इस दृष्टि से ‘समय को रँगते हुए पढ़ना’, ‘सहजता के लिए जगह’ और ‘कजरी’ जैसी कविताएँ उल्लेखनीय बन पड़ी हैं। कवि की यही प्रवृत्तियाँ तानसेन, तुकाराम, उस्ताद अलाउद्दीन खाँ और ग़ालिब तक उसे ले जाती हैं और उनके होने का मतलब, उनका सार-तत्त्व तलाशती हैं। इसी तलाश में यतीन्द्र अक्सर उन जगहों पर भी पहुँचते हैं, जहाँ जीवन की साधारण परिस्थितियाँ अपनी विशिष्टता में मौजूद हैं। यहाँ उनके साथ कवि का सौहार्दपूर्ण रिश्ता हमें ज्यादा बड़े आशयों की ओर ले जाता है और इस प्रक्रिया में ‘रफ़ू’, ‘लंगड़ा आम’, ‘सुबह’ व ‘ढोल’ जैसी महत्त्वपूर्ण कविताओं से हमारा सामना होता है। इन कविताओं को पढ़कर कोई भी पाठक मामूली चीज़ों से कविता बना देने की कवि की प्रतिभा को महसूस किए बिना नहीं रहेगा। यह संग्रह हिन्दी की युवा कविता की सम्भावना, शक्ति और दिशा को प्रकट करने वाला एक प्रतिनिधि संग्रह है, जिसे, निश्चय ही पाठकों का प्रेम मिलेगा। - कृष्णमोहन

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Binding: HardBack
About the author कलाओं में गहरी रुचि रखने वाले हिन्दी कवि, सम्पादक और संगीत अध्येता यतीन्द्र मिश्र के अबतक तीन कविता-संग्रह प्रकाशित हैं। ड्योढी पर आलाप विशेष चर्चित रहा। साथ ही, इन्होंने शास्त्रीय गायिका गिरिजा देवी पर हिंदी में एक पुस्तक लिखी है। हाल ही में प्रसिद्ध नृत्यांगना सोनल मान सिंह पर इनकी एक पुस्तक देवप्रिया प्रकाशित हुई है। भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार, भारतीय भाषा परिषद युवा पुरस्कार, तथा हेमंत स्मृति कविता पुरस्कार से सम्मानित। इन दिनों सहित पत्रिका के संपादन से संबद्ध।
Specifications
  • Language: Hindi
  • Publisher: Rajkamal Prakashan
  • Pages: 103
  • Binding: HardBack
  • ISBN: 8126709499
  • Category: Poetry
  • Related Category: Literature
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