Synopsisयदि हम आधुनिक भारतीय आर्यभाषाओं में रचित रामकथाओं पर ग़ौर करें तो इस क्रम में हम देखते हैं कि सबसे पहले जिस आधुनिक भारतीय आर्यभाषा में रामकथा मिलती है वह है असमिया भाषा में 14वीं सदी में ‘अप्रमादी कवि’ माधव कन्दलि द्वारा रचित ‘सप्तकाण्ड रामायण’। ध्यातव्य है कि यह रामकथा तुलसी के ‘रामचरितमानस’ से लगभग डेढ़ सौ वर्ष पूर्व लिखी गयी। आश्चर्य की बात यह भी है कि यह रामकथा सबसे पहले उस प्रदेश में लिखी गयी जो मूलतः कृष्ण-भक्ति प्रधान क्षेत्र है। इससे भी ज़्यादा चकित करने वाली बात यह है कि असम के महान कृष्ण भक्त कवि महापुरुष श्रीमन्त शंकरदेव ने अपना पहला बरगीत ‘मन मेरी राम चरणहि लागू...’ और अन्तिम नाटक ‘रामविजय’ राम को केन्द्र में रखकर लिखा है। यह महज़ इत्तेफ़ाक़ तो नहीं हो सकता। यह रामकथा की चतुर्दिक व्याप्ति तथा उसकी गरिमा-महिमा नहीं है तो और क्या है? ख़ैर, श्रीमन्त शंकरदेव विरचित ‘उत्तरकाण्ड’ और कवि प्रवर माधवदेव कृत ‘आदिकाण्ड’ असमिया रामकथा शृंखला की महत्त्वपूर्ण कड़ियाँ हैं। इसी क्रम में अनन्त कन्दलि के ‘पाताखण्ड रामायण’ एवं ‘जीवस्तुति रामायण’, हरिहर विप्र के ‘लवकुशर युद्ध’, दुर्गावर कायस्थ के ‘गीतिरामायण’, अनन्त ठाकुर अता के ‘श्रीराम कीर्तन’, रघुनाथ महन्त के ‘अद्भुत रामायण’ एवं ‘कथा रामायण’, श्रीराम अता के ‘अध्यात्म रामायण’ आदि का भी नाम लिया जा सकता है। इन रामकथाओं में आमतौर पर वाल्मीकि रामायण के सारानुवाद को ही लोकभाषा में कुछ नवीन उद्भावनाओं के साथ प्रस्तुत किया गया है। असमिया लोक जीवन एवं लोक संस्कृति के फशेक एलिमेंट्स जैसे - असम के विशिष्ट खेलों, वाद्ययन्त्रों, मछली के प्रकार, सिल्क, ताम्बूल, असमिया जाति, पेशा, व्यवसाय आदि का निवेश इन रामकथाओं को स्वाभाविक एवं मौलिक बनाता है। ये तो हुई असमिया रामकथा के लिखित रूप की बात। वाचिक रूप में भी असमिया रामकथा की एक सुदीर्घ एवं समृद्ध परम्परा असम के लोकगीतों, संस्कार गीतों एवं श्रम गीतों में मौजूद रही है। ‘निसुकनि गीतों’, ‘हुसरी गीतों’, ‘बारामाही गीतों’, ‘नावखेलोवा गीतों’, ‘बियानाम’, ‘मन्त्र साहित्य’ तथा ‘जतुवा ठाँस (लोकोक्ति)’ आदि में रामकथा स्थानीय वैशिष्ट्य के साथ उपस्थित है। असम के जनजातीय बहुल समाज में भी अलग-अलग रामकथाएँ अपने लोकल फ़्लेवर के साथ भिन्न-भिन्न रूपों में तथा प्रभूत मात्रा में उपलब्ध हैं। इस दृष्टि से कार्बी जनजाति के ‘साबिन आलुन’, टाईफाँके जनजाति के ‘टाई रामायण’ तथा न्यीशी, मिजो, डिमासा, खामती, तिवा, बोडो आदि जनजातियों के लोक साहित्य में रामकथा पूरी विविधता के साथ मौजूद है। लिखित और वाचिक साहित्य के अलावा देश-विदेश की साहित्येतर कलाओं मसलनµचित्राकला, मूर्तिकला, स्थापत्य कला, मुखौटा कला आदि में भी रामकथा के दृष्टान्त मिलते हैं। श्रीलंका, जावा, सुमात्रा, कम्बोडिया, थाईलैंड, इंडोनेशिया आदि देशों की विभिन्न कलाओं में भी रामकथा की स्पष्ट छाप मिलती है। असम में स्थित दुनिया के सबसे बड़े नदी द्वीप ‘माजुली’ की मुखौटा कला विश्व प्रसिद्ध है। माजुली की इस अद्भुत कला में भी रामकथा सदियों से जीवन्त है और उसकी अपनी एक विशिष्ट पहचान भी है। असमिया लोक, शास्त्र और कला में व्याप्त रामकथा के इन्हीं वैविध्यपूर्ण एवं बहुपक्षीय रूपों को उद्घाटित करना ही इस पुस्तक का लक्ष्य है।