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Home Literature Poetry Antra
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Antra
by Vishwanath
4.1
4.1 out of 5
Creators
AuthorVishwanath
PublisherRajpal
Synopsisहिंदी प्रकाशन के पुरोधा विश्वनाथ पिछले 65 वर्षों से प्रकाशन क्षेत्र से जुड़े हैं। 1920 में लाहौर में जन्मे विश्वनाथ जी को किशोर अवस्था में प्रकाशन-क्षेत्र में आना पड़ा जब उनके पिता महाशय राजपाल जी की एक मतान्ध कट्टरवादी ने हत्या कर दी।
1927 में देश के विभाजन के पश्चात विश्वनाथ जी ने दिल्ली में पुनः 'राजपाल एंड संस' स्थापित किया। थोड़ी सी समय में हिंदी के सभी प्रसिद्ध साहित्यकारों का सर्वोप्रिय प्रकाशन-संस्थान बन गया। अग्रणी प्रकाशक होने के नाते अमेरिका ने उन्हें अमेरिकी प्रकाशन-व्यवसाय देखने-समझने के लिए आमंत्रित किया। तत्पश्चात अपने छोटे भाई श्री दीनानाथ के साथ मिलकर उन्होंने हिंदी पॉकेट बुक्स की स्थापना की और अंग्रेजी साहित्य का प्रकाशन 'ओरिएन्ट पेपरबैक्स' के नाम से प्रारंभ किया।
विश्वनाथ जी अखिल भारतीय हिंदी प्रकाशक संघ और 'फाउंडेशन ऑफ इंडियन पब्लिशर्स के अध्यक्ष रह चुके हैं। आपने अनेक भारतीय प्रकाशक मंडलों का विभिन्न देशों में नेतृत्व किया।
विश्वनाथ जी प्रकाशन को एक रचनात्मक कला और व्यवसाय तथा लेखकों से अपने आत्मीय संबंधों को अपनी मूल्यांकन उपलब्धि मानते हैं। स्वर्गीय बच्चन जी, दिनकर जी, डॉ शिवमंगल सिंह सुमन, रांगेय राघव, आचार्य चतुरसेन, मोहन राकेश, सब के साथ उनके मधुर संबंध रहे। ऐसे ही मधुर संबंध उनके वर्तमान लेखकों से हैं।
विश्वनाथ जी का अधिकांश समय अब शिक्षण-क्षेत्र में व्यतीत होता है। डी. ए. वी कॉलेज मैनेजिंग कमेटी के वरिष्ठ उपाध्यक्ष होने के नाते भारत में फैले 700 डी. ए. वी शिक्षण संस्थानों के नीति निर्धारण और प्रबंधन में वे प्रतिदिन समय देते हैं। इसके अतिरिक्त समाज सेवा में जुटे लाला दीवानचंद ट्रस्ट और राजपाल एजुकेशन ट्रस्ट के अध्यक्ष हैं।
कविता लेखन से उनका संबंध पिछले मात्र तीन वर्षों से ही हुआ है। इस अवधि में उन्होंने अंग्रेजी और हिंदी में सैकड़ों कविताएँ लिखी हैं। 'अंतरा' उनकी हिंदी कविताओं का प्रथम संग्रह है।