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Home Literature Poetry Aiwan-E- Ghazal
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Aiwan-E- Ghazal
by Jeelani Banoo
4.4
4.4 out of 5
Creators
AuthorJeelani Banoo
PublisherRajkamal Prakashan
Synopsis‘ऐवाने ग़ज़ल’ की फ़िजा परम्परा से शायराना चली आई है, लेकिन वक्त, बदला, ज़मींदारी की पुख्ता ज़मीनें खिसकने लगीं, सबकी बराबरी के नारे हवा में गूँजने लगे तो ऐवाने ग़ज़ल के आख़िरी शायर वाहिद हुसैन के पास दिल की बातें करने के लिए रंगीन परों वाली एक नन्ही-सी चिड़िया ही बच गई जो रोज़ उनके बाग़ में उनके पास आकर बैठती। ख़त्म होने पर आमादा इस कहानी को नई रफ्तार बख़्शती है चाँद। बड़ी हवेली की नन्ही-मुन्नी खिलंदड़ी नवासी चाँद बड़ी होकर स्टेज पर पहुँचती है और एक असम्भव मुहब्बत में तपेदिक के हत्थे चढ़ जाती है। लेकिन जाते-जाते अपने पीछे छोड़ जाती है ग़ज़ल को। ग़ज़ल जिसने पैदा होने के बाद से प्यार और दुलार क्या होता है, नहीं जाना; बड़ी हुई तो जिन्दगी से उसने सिर्फ एक चीज माँगी-प्यार। जो आखिरकार उसे नहीं मिला और उसने अपना खाली आँचल क्रांति के ऊपर फैला दिया। और नक्सली माँ-बाप की जंगलों में जन्मी इकलौती औलाद क्रान्ति ने जेसे ऐवाने ग़ज़ल की पूरी परम्परा को ही उलटकर रख दिया। उसके कमरे में बम थे, जेब में पिस्तौल, हाथ में सिगरेट और चेहरे पर वह तेज जिसके सामने ऐवाने ग़ज़ल की दीवारों पर चस्पाँ तमाम हुस्नपरस्त शायर हक-दक रह गए।
छोटी-छोटी तफसीलों से लबरेज एक बड़ी कहानी।