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Home Anthology Anthology Fiction Vinoba Ke Uddharan
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Vinoba Ke Uddharan
by Nandkishore Acharya
4.5
4.5 out of 5
Creators
AuthorNandkishore Acharya
PublisherRajkamal Prakashan
Synopsisविनोबा की दृष्टि में उच्चतम कोटि का साहित्य मूलत: सत्यान्वेषण की स्वायत्त प्रक्रिया है—अनुभूत्यात्मक अन्वेषण की प्रक्रिया—और इसीलिए, वह उसे विज्ञान और आत्मज्ञान के समकक्ष—बल्कि शायद अधिक महत्त्वपूर्ण दर्जा देते हैं तथा साहित्य की शक्ति को 'परमेश्वर की शक्ति के बराबर' मानते हैं। साहित्यकारों की एकाधिक कोटियों को स्वीकार करते हुए भी वह सर्वाधिक महत्त्व उन साहित्यकारों को देते हैं, जिन्होंने किसी नये मार्ग का अन्वेषण किया होता है। यह प्रक्रिया, विनोबा के अनुसार, केवल लेखक तक ही सीमित नहीं रहती बल्कि पाठक या ग्रहीता में भी घटित होती है। वह, इसलिए अर्थ की निश्चितता को उत्तम साहित्य का गुण नहीं मानते। कह सकते हैं कि उत्तर-आधुनिकतावादी साहित्य-चिन्तकों की तरह वह साहित्यिक रचनात्मकता को अर्थ की निरंकुशता से मुक्ति के पक्षधर हैं। विनोबा उन साहित्यिक सैद्धान्तिकों की पंक्ति में आ खड़े होते हैं जो अर्थ या तात्पर्य को पाठकाश्रित मानते हैं। वह मानते हैं कि किसी रचना के न केवल परस्पर विरोधी भाष्य लिखे जा सकते हैं, बल्कि ऐसा भी भाष्य लिखा जा सकता है, जो स्वयं लेखक के अपने मन्तव्य के विरोध में हो और सम्भव है कि न केवल अन्य लोग, बल्कि स्वयं लेखक भी उसे स्वीकार कर ले। साहित्य के सत्य की अनुभूत्यात्मक प्रक्रिया होने के कारण विनोबा अपनी अनुभूति के प्रति निष्ठा को साहित्यकार के लिए अनिवार्य मानते हैं—यही साहित्यकार की नैतिकता है। विनोबा के साहित्य-चिन्तन से सम्बन्धित लेखों और टिप्पणियों का यह चयन साहित्य-अध्येताओं की ही नहीं, सामान्य पाठक-वर्ग की साहित्यिक समझ को भी निश्चय ही उत्प्रेरित कर सकेगा, ऐसी उम्मीद की जा सकती है। —प्रस्तावना से ''हमारे समय में ऐसे लोग विरले हैं जो किसी अन्य क्षेत्र में सक्रिय और निष्णात होते हुए साहित्य के बारे में कुछ विचारपूर्वक लिखें-कहें। महात्मा गाँधी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी और अपने समय में अनूठे सन्त विनोबा भावे ने साहित्य पर कई बार विचार किया है जो अकसर हमारे ध्यान में नहीं आया और आता है। वरिष्ठ कवि-आलोचक नन्दकिशोर आचार्य ने विनोबा के साहित्य-चिन्तन को संकलित कर साहित्य पर सोचने की नयी और विस्मृत दृष्टि को पुनरुज्जीवित किया है। हमें प्रसन्नता है कि रज़ा साहब के अत्यन्त प्रिय विनोबा जी की यह सामग्री हम प्रस्तुत कर रहे हैं।" —अशोक वाजपेयी