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Home Reference Criticism & Interviews Aadyabimb Aur Sahityalochan
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Aadyabimb Aur Sahityalochan
by Krishnamurari Mishra
4.1
4.1 out of 5
Creators
AuthorKrishnamurari Mishra
PublisherRadhakrishna Prakashan
Synopsisप्रोफेसर कृष्णमुरारि मिश्र आधुनिक हिन्दी आलोचना के प्रमुख हस्ताक्षर हैं । हिन्दी में आद्यबिम्बात्मक आलोचना के प्रवर्तन का श्रेय उन्हें प्राप्त है । साहित्यिक कृतियों की संरचनात्मक गहनताओं की व्याख्या और वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन के लिए उन्हें विशेष ख्याति मिली है । आद्यबिम्ब और साहित्यालोचन शीर्षक उनका प्रस्तुत ग्रंथ इस आलोचना के सिद्धान्त और संप्रयोग से सम्बद्ध है । ग्रन्थ में तीन शीर्षक ग्रंथित हैं- 'आद्यबिम्ब', 'आद्यबिम्ब और साहित्यालोचन : आधार' तथा ' आद्यबिम्ब और साहित्यालोचन : स्वरूप' ।
'आद्यबिम्ब' शीर्षक के अन्तर्गत आद्यबिम्ब की युगीय धारणा का सैद्धान्तिक विवेचन है । इसमें फ्रायड और युग की धारणाओं के मूलभूत अन्तर का हिन्दी में पहली बार उद्घाटन है । साथ ही आद्यबिम्ब की युगीय धारणा का सारभूत आख्यान है जिसमें यौगपत्य के अल्पज्ञात वैज्ञानिक सिद्धान्त की भी चर्चा है । 'आद्यबिम्ब और साहित्यालोचन : आधार' शीर्षक से मुख्यतया युग के कलाचिन्तन का विवेचन है । आद्यबिम्बात्मक आलोचना की सैद्धान्तिकी के इस विवेचन से सिद्ध है कि युग का कलाचिन्तन हमारे भारतीय साहित्य-चिन्तन के लिए विजातीय नहीं है । वह भारतीय साहित्यशास्त्र के कालसिद्ध निकषों का पोषक है । युग की कलाविषयक धारणाएँ रससिद्धान्त और ध्वनिसिद्धान्त के बहुत निकट हैं । भारतीय काव्यशास्त्र में काव्य-हेतु के रूप में प्रतिभा के जिस स्वरूप की स्थापना की गई है वह सामूहिक अचेतन की युगीय धारणा के निकट है । सर्जक के व्यक्तित्व की असाधारणता को भारतीय आचार्यो के समान युग ने भी मुक्त कंठ से स्वीकार किया है । भारतीय आचार्यों के समान युग ने भी काव्य की लोकमंगलकारिणी शक्ति पर बल दिया है । उन्होंने सर्जक, भावक और समाज के सन्दर्भ में काव्य के माध्यम से जिस आत्मोपलब्धि का उल्लेख किया है उसमें आनन्द और लोकमंगल दोनों का समावेश है । 'आद्यबिम्ब और साहित्यालोचन : स्वरूप' शीर्षक के अन्तर्गत हिन्दी की आद्यबिम्बात्मक आलोचना के स्वरूप की सम्यक् विवृत्ति है ।
आशा है यह ग्रन्थ भी उनके पूर्व प्रकाशित ग्रन्थों की तरह हिन्दी में समादृत होगा ।