ये उनकी दूसरी कहानी है जो मैंने पढ़ी है। इससे पहले ‘एक कमज़ोर लड़की की कहानी’ ही पढ़ पायी हूँ और अपने
उत्सुकता को रोक नही सकी और उनके फेसबुक पर गयी। ‘लमही’ में प्रकाशित इस ‘लहरों की बाँसुरी’ के बारे में एक post पढ़ा की इस कहानी पर
किसी निर्माता निर्देशक ने फ़िल्म बनाने की इच्छा जाहिर की है। मैंने ये कहानी पढ़नी
शुरू की और कब समय बीतता गया पता ही नहीं चला।
सूरज
जी ने जिस प्रकार इस कहानी के पात्र समीर और नायिका
अंजलि को introduce किया
वो बहुत ही interesting था।
बहुत ही समसामयिक विषय और परिस्थितियां दर्शायी और उनको उतने की परिपक्व तरीके से handle किया। जो एक बहुत ही आम सी बात हो
सकती थी, जो
एक आसानी से सोचा जा सकने वाला अन्त हो सकता था इस कहानी का,जो बहुत ही obvious expectation हो सकती थी,उससे अलग थी ये कहानी। अंजलि और
समीर हमारे जाने-सुने चेहरे हो सकते है, हमारे
आस-पास बसे लोगों में से एक हो सकते हैं जिन्हें हम generally पहचान नहीं पाते। बहुत
ही आम से किरदार हैं ये दोनों लेकिन उनके strength of characters उनको
भीड़ से अलग करते हैं।
दोस्ती के रिश्ते को निभाने की परंपरा क्या हो सकती है, किस तरह की उम्मीदें हो सकती है
एक महिला की एक पुरुष मित्र से, बखूबी
दर्शाया है सूरज जी ने। दोस्ती समीर ने भी निभायी, नितिन ने भी निभायी और देसराज समझ
ही नहीं सका अंजलि की ज़रूरतें। सभी पात्र कितने सच्चाई के साथ उकेरे गए हैं, कि लगता है ये हमारे आस पास की ही कहानी हो।
इन सबके बीच अंजलि का चारित्रिक विकास, self- actualisation की समझ जो की उसकी अपनी
ज़रुरत के हिसाब से उसने समझी और अपने जीवन को उसमे ढाला।
अंजलि सिर्फ इस कहानी की नायिका ही नहीं बल्कि एक उदाहरण
हो सकती हैं की कैसे आज के समाज में एक नारी को अपने विषम परिस्थितियों से जूझना
चाहिए, हार
मान लेना किसी प्रश्न का उत्तर नहीं हो सकता, ये बताया है।
कई बार परिस्थितियों को एकदम से बदल पाना किसी के बस में
नहीं होता, लेकिन
अपने आपको किसी न किसी तरह से सकारात्मक ऊर्जा की ओर अग्रसर रखना ही, अँधेरे से उजाले की ओर ले जाने की
कुंजी होती है। समाज के अलग अलग तबकों में कहीं महिलाओं के लिए रास्ता काफी आसान
हुआ है तो कहीं कहीं मुश्किलें भी बढ़ भी गयी हैं।
ज़रुरत है ऐसे कई कई अंजलियों को अपने अपने मकसद की तलाश
करने की, सरे
राह दोस्त भी मिल ही जायेंगे जो आपको समझते होंगे, जो आपकी बात सुनेंगे। दोस्त पुरुष
या औरत कोई भी हो सकते हैं। आत्म निर्भरता और स्वाभिमान न खोने देने की ही
जद्दोजहद है। ये कहानी पढ़ने वालों के मन में जो सवाल जगाती है, उसका जवाब भी खुद ही दे देती है। चाहे
वो कोई अंजलि हो समीर के इंतज़ार में या हो कोई समीर किसी अंजलि को जानने का इच्छुक, सबके लिए एक बहुत ही व्यापक
नज़रिया और खुलेपन की उम्मीद जगाती है।
इन सबके बीच, दमन में महासागर के किनारे लहरों
की बाँसुरी ने पाठकों का मन मोह लिया। अंजलि ने अपने हिस्से के तीन दिन अपनी मर्ज़ी
से बिताये, उस
संगीत के साथ खुद को आज़ाद किया और नयी चुनौतियों के लिए खुद को तैयार किया। समीर
ने जाना की एक औरत के कितने रूप हो सकते हैं और सब के सब सच्चे।
सूरज
जी, धन्यवाद
इस प्यारी सी कहानी के लिए।
भावना झा हैदराबाद
लमही – पाठकीय प्रतिक्रिया
लमही का अप्रैल – जून १५ अंक प्राप्त हुआ।
लमही जो कहानियों के लिए विशेषतः जानी जाने वाली पत्रिका है उसमें लेखक सूरज प्रकाश की कहानी ‘लहरों की बांसुरी’ एक स्त्री का उद्घोष है। अंजलि और समीर दो फेसबुक दोस्तों का आभासी से व्यक्त होने के बाद संबंधों का एक ऐसा मायाजाल हैं जिसमें पाठक यदि फंसता है तो अंत पढ़े बिना उससे बाहर नहीं निकल सकता क्योंकि सेल्फ एक्चुएलाइजेशन के माध्यम से एक नयी परिभाषा एक नया गणित देने की लेखक ने कोशिश की है। एक खुला निमंत्रण पाठक को कि आओ और करो व्याख्या या फिर करो चीर फाड़ अपने अपने नज़रिए से क्योंकि सब्जेक्ट बोल्ड होते हुए भी बोल्ड नहीं कहा जा सकता और नहीं होते हुए भी कहा जा सकता है एक ऐसा चक्रव्यूह जिसमें दोनों ओर दरवाज़ा है अब मर्ज़ी है पाठक की कि उसे कहाँ से निकलना है। आज जिस रफ़्तार से स्त्री ने कदम आगे बढाया है, अपने हक़ के लिए आवाज़ उठानी सीखी है तो ऐसे कदम उठने लाजिमी हैं और उसी का दिग्दर्शन लेखक यहाँ कराता है। हर बार स्त्री पुरुष सम्बन्ध को एक ऐसे मोड़ पर लाकर स्खलित किया है जो पाठक की सोच की उड़ान को धराशायी करता है। जहाँ स्त्री और पुरुष हों वहां सम्बन्ध बनाने आसान होते हैं खास तौर पर ऐसी स्थिति में जब स्त्री को उस स्थिति से एक अरसा हो चुका हो और ऐसे समय में खुद पर कण्ट्रोल कर सम्बन्ध को बनाए रखने की कोशिश मानो एक जद्दोजहद खुद के साथ कोई कर रहा हो, खुद से लड़ना सबसे मुश्किल होता है और यहाँ समीर और अंजलि के माध्यम से लेखक ने दोनों ही पात्रों को खुद से ही लड़ते दिखाया है जो एक अभिनव प्रयोग है क्योंकि कभी कभी जरूरी होता है रिश्तों का दीर्घगामी होना और उसी को प्रमाणित करती कहानी पाठक के मन मस्तिष्क पर गहरी छाप छोडती है और यही कहानी की सफलता है।
शुभकामनाओं के साथ
वंदना
गुप्ता
Rajendra Rajan mujhe 3 maheene pehle Bhai surajji ki is kahani ko padhne ka suawsar mila tha. I was highly excited about a new subject in which the Naayika of this story rexplores and reinvents herself after passing through great struggle and turmoil. Top of Form
Bhawana Sinha “लहरों की बांसुरी” खूबसूरत शीर्षक खूबसूरत कहानी , लहरों की तरह उठते मिट्ते आम स्त्रि की भावनाओं की कहानी। आंजलि आधुनिक है , उसके कपड़े आधुनिक, विचार आधुनिक, अनेक पीड़ाओं को झेलते एक सशक्त नारी जो अपनी पहचान बनाना चाहती, जीवन खूबसूरती से जीन…See More
Pravesh Soni कहानी बहुत अच्छी लगी ।एक नया विषय और दृष्टिकोण देखने को मिला ।किस तरह छोटे शहर की पारिवारिक परिपाटियों से जीवन शुरू करने वाली लड़की स्वयंसिद्धा हो जाती है। विपरीत परिस्थितिया शक्ति देती है यह भी इस कहानी में देखने को मिला ।नायिका सयंमित होकर अपने उन्मुक…See More
Santosh
Pandey मानवीय संमवेदनाओ..सजी..नारी की फर्श
से अर्श तक की संघर्ष यात्रा.को फेसबुक मित्र के साथ..बिताए दिनों ने प्रतिकात्मक
ढंग
सिद्ध
किया है कि.. आज की नारी को लगे ना भारी.. जीवन की कोई भी
जिम्मेदारी…आत्मविश्वास के बल पर कैसे नायिका ने
अपने
लिए कुछ खास लम…See More
Pratibha Kumar · बहुत अच्छी कहानी ….. देह से परे स्त्री पुरुष के खूबसूरत सम्बन्धों की खूबसूरत कहानी …… बहुत बहुत बधाई
Shashi Sharma सूरज प्रकाश जी, कहानी पढ़ ली, अनुमानित कमज़ोरियों को लाँघकर एक दैवी शक्ति से भर गई हूँ।कई पंक्तियाँ मन
पर छप गईं हैं। सैल्फ एक्चुअलाइज़ेशन के अर्थ वाला
हिस्सा दो बार और धीरे धीरे पढ़ा। पता चलता है कि आपने इस दर्द से ताकत तक के सफ़र
को कैसे झेला होगा
।इनसानी
रिश्तों और भरोसे की बेहतरीन मिसाल ।अभी काॅलेज जा रही हूँ ।एक दो साथियों से
कहूँगी पढ़ने के लिए ।(सुपात्र भी तो बहुत कम मिलते हैं)
Pratibha Upadhyaya समीर का तो पता नहीं, पर अंजलि जरूर खाली हो गई होंगी।
Singh Anamika यही तो ग्लैमर है इस कहानी का बिल्कुल इसके टाइटिल की तरह … बांसुरी की तरह… किसी के होठों को छूती है किसी के कानों तक पहुंचती है मगर उद्देश्य पूरा करती है और वह है … सब को आनंदित करना …। रिश्तों और भरोसे की बेहतरीन मिसाल हये कहानी
Pran Sharma · Friends with प्रेम जनमेजय and 25 others
Suraj Ji , Aapkee lambee Kahani Aadhee Padhne Ke Baad Dimaag Ne Socha Ki Shesh Kal Padhunga Lekin Man Ke Aage Uskee Pesh Nahin Gayee , Lahron Kee Bansuree Ke Sabhee Swar Sunne Hee Padhe . Achchhee Kahani Ke liye Aapko Dheron Badhaaeeyan Aur Shubh Kamnaayen .
19 April at 00:24 · Unlike · 3
Anjali Singh I read your story many times
Mita Das सर मैंने यह कहानी आपके कथाकार ब्लॉग में पढ़ ली………. इस समय की एक बोलती तस्वीर
Karuna Pande sir naee parampara kab niklegee , meree kahanee vapas kar dijeeye kareeb ek saal se aap ke paas padee hai.
Shashi Sharma प्रतिभा उपाध्याय, अंजलि क्यों खाली होगी,वह खालीपन और भरेपन के मानदंडों को लाँघ चुकी है ।यहाँ दो प्यारे मित्र हैं जो बस एक दूसरे के भरोसे पर विश्वास करते है, भरना खाली करना, तेर मेर , स्त्री पुरुष का भेद सब पीछे छोड़ आई है अंजलि, एक मैच्योर दोस्त के साथ व्यस्त लेकिन बेरंग जिंदगी के लिए कुछ सार्थक पल जी लेना चाहती है जिनमें प्यार की एक नई छवि हम लोग देखते हैं जिसकी हमें आदत नहीं है ।
Pratibha Upadhyaya Shashi Sharma जी, पता नहीं आपने खाली होने को किस अर्थ में लिया। मैंने इसे “आत्मिक सुख” के अर्थ में प्रयोग किया।
Shashi Sharma आपने लिखा अंजलि ज़रूर खाली होगई होगी इसका अर्थ आत्मिक सुख तो व्यंजित नहीं होता ।
Pratibha Upadhyaya बोझ उतर गया, वर्षों का गुबार निकल गया –खाली हो गई -यह तात्पर्य है।
सरस्वती मिश्र बहुत बहुत बेहतरीन…….संबंधों के एक नये रंग से परिचित कराती हुई…..
Rachna Bhola Yamini पता नहीं क्यों, कहानी पढ़ते हुए कजानजाकिस के वे शब्द याद आ गए. Create an idealized image of yourself and try to resemble it . अमृता प्रीतम इन्हीं शब्दों के साथ जीती रहीं. अंजलि भी वही कर रही है. बेहतरीन कहानी के लिए बधाई सर
Sumitra Mehrol बेहतरीन अंदाज़े बयां,…बहुत से स्तरों पर कहानी बांधती है….पर कुछ सवाल भी खड़े करती है….क्या शराब और सिगरेट में आकंठ डूबे बिना आधुनिक और स्वतंत्र नहीं हुआ जा सकता…..क्या कस्बाई माहोल में पली बढ़ी स्त्री भारतीय नैतिकतावादी परंपरागत संस्कारो से इतनी जल्दी मुक्त हो कर इतनी हिम्मत जुटा सकती है कि आभासीय दुनिया के पुरुषकेसाथ पहली ही मुलाकात के बाद होटल के एक कमरे मेंकई दिन बिता सके,,,क्या भारतीय परिवेश इतना सुरक्षित हो गया है….क्या अंजलि का teenager बेटा भी माँ की इस स्वतंत्रता को इतनी ही सहजता से स्वीकार कर लेगा……..इतने मादक परिवेश में दैहिक संबंध स्थापित हो भी जाते तो नायक नायिका के संबंधो की ऊष्मा में शायद कोई कमी ना आती……क्या सच में ऐसे माहोल में दैहिक आकर्षण से आसानी से मुक्त हुआ जा सकता है..
Archna Chaturvedi कहानी वाकई बहुत जबरदस्त है मजा आगया पढ़कर |
Abhishek Awasthi कई पहलूओं को दर्शाती कहानी . . . सेल्फ आक्चुयलाईजेशन चीज़ ही ऐसी ही. . . नीतिन. . . समीर और अंजलि . . . . जैसे वहीं कहीं मंच पर नाटक का प्रदर्शन कर रहे हों . . बेहद पसंद आयी . . . आपको बहुत बधाई .
Meena Rana Shah बाँसुरी के हर छिद्र का स्वर हर साँस के साथ अलग अलग ….रिश्तों की ये ईमानदारी अपनेआप में विश्वास जगाती है…कहानी पढ़ने के बाद का असमन्जस हर पाठक के साथ की वह खाली हुआ या भरा . ..उम्दा कहानी
Meena Rana Shah एक बात और 63 वर्ष की उम्र में जब की सूरजप्रकाश रिटायरमेंट की जिंदगी जी रहें हैं किसी आध्यात्मिक मोड़ की कहानी की बजाय विशुद्ध मादक रोमांटिक और उन्मुक्त लिखते हुए नायिका का एक अलग ही रुप उन्होंने प्रस्तुत किया है आज स्त्री कई मायनों में सामाजिक वर्जनाओं …See More
Ramesh Upadhyaya कहानी पूरी पढ़ ली है, लेकिन राय नहीं बनायीं. बनाते तो बतानी पड़ती और बताते तो क्या बताते?
Varsha Rawal nihshbd……..samudr me nayika nahi ,nayika me samudr ho jaise…………
Vivek Mishra अच्छी दोस्तियां, यादगार यात्राएं, लीक से हटकर कहानियाँ जीवन में अनायास ही आती हैं। मैं सच झूठ, सही गलत के चक्कर में नहीं पढूंगा। बस इतना कहूँगा की खाके के बाहर की कहानी है जिसे पढ़ते हुए आप वर्जनाओं सेउक्त होते चलते हैं। सूरज जी बधाई।
लेफ़्टिनेंट डॉ.मोहसिन ख़ान बस अभी पूरी कहानी पढ़ी और टिप्पणी पोस्ट कर रहा हूँ। मुझे यह कहानी आत्मविस्तार की भावना लिए लग रही है । कहानी अच्छी है, इस पर कई दृष्टियों से सोचना अभी शेष है ।
Prashant
Vasaikar सरजी मुझे यह कहानी बहुत ही अच्छी लगी।
कहानी में कही भी पाठक को बोअर नहीं होने दिया है। हमेशा हर मोड़ पर कहानी को ज़िंदा
रखा है।
काबिले
तारीफ़
बधाई
हो
Archna Pant .
कहानी
पढी ! ….
भावनाओं
की बांसुरी के विभिन्न स्वरों को जीती हुई … पग-पग पर नये सुरों, नए गीतों को उलीचती हुई ….. प्रेम और विश्वास की लहरों पर तिरती हुई …
परिपक्व मन और मित्रता की अनूठी कहानी !…See More
Anuradha Singh कहानी मानव मन की सुप्त कामनाओं का दर्पण है। यह नायिका आम भारतीय स्त्री नहीं है सो यह मन की मर्यादा में विश्वास नहीं रखती, जिसे वह ऐसा निर्णय लेते ही त्याग चुकी थी। उसके लिये चरित्र के मायने सिर्फ़ शारीरिक शुद्धता ही हैं। स्थापित धारणाओं के ख़िलाफ़ एक रोचक कहानी।
Umrao Singh Jatav · 67 mutual friends
मुझे कहानी को पढ़कर कथा, कथाकार और कहानी पर चस्पां कमेंट्स की बाढ़ पर बेहद आश्चर्य हुआ. बाकी सबके विस्तार में न जाकर बस इतना ही इस कहानी की नायिका और उसकी सोच के बारे में . अपनी सोच और शारीरिक इच्छा-अनिच्छा को प्रयोगशाला में परखने के लिए नि:संकोच-निस्पृह…See More
Dr-Meenakshee
Swami आपकी कहानी लहरों की बांसुरी पढी।
पढकर
निशब्द जैसी स्थिति हो गई।
अद्भुत। …See More
Pratibha Upadhyaya एक सामजिक वर्जनाओं का अंत दूसरी वर्जानाओं में तलाशना Self actualization नहीं, self deception ज़रूर हो सकता है, जो अंततोगत्वा अवसाद को ही जन्म देता है.
Bottom of Form
यह अंक भी रचनाओं से समृद्ध है। दिनेश पालीवाल, सूरज प्रकाश, रणविजय सिंह सत्यकेतु, मीना पाठक, उपासना नीरव आदि की कहानियों के अलावा कई किताबों पर अच्छी समीक्षाओं व मुक्तिबोध की कहानियों में सामाजिक यथार्थ पर ब्रजेश के लेख से संपन्न है यह।
पर अंक मिलते ही जिस कहानी ने बांध
लिया वह है सूरज प्रकाश की कहानी: लहरों की बांसुरी। कल्पना का कैसा वितान बुना
है भाई ने।
पढ कर
लगा कि कल्पना की रस्सियों पर भी झूलने का अपना आनंद है।
कभी
एक गीत पढा था।
एक
निमिष मैं ढल जाता
बस और
तुम्हारा था।
यहां
इस कहानी में ऐसे ही कुछ हालात बनते हैं। कहानी के दोनो पात्र स्त्री-पुरुष लंबी
ड्राइव पर औचक मिलते हैं । केवल एक निमिष भर नहीं,
आने
वाले हर स्नेहिल क्षण में भी कमजोर पड़ने से एक दूसरे को कैसे बचा लेते हैं इसी
संयम और स्नेह की कथा है यह। लगा कि अब गए तब गए । दोनों एक साथ वासना की लहरों
में डूब गए पर वे बार बार कामना के जलविवर में समा जाने से बच जाते हैं। सूरज के
पास अपार किस्सागोई है जिसे मैं उनके उपन्यास देस विराना में देख चुका हूूं।
छूटते हुए घर की सारी कहानियां इसी किस्सागोई की गवाह हैं। वे कहानियों के बुनकर
हैं, शिल्प भले ही उनके पास कोई जादुई न हो, पर किस्सों की चासनी दो तार वाली है। चाहें तो इसे आप भी पढ कर देखें ।
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