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हरिशंकर परसाई : लेखक जिन्होंने हिंदी में व्यंग्य को विधा का दर्जा दिलाया
Literature / Persona

हरिशंकर परसाई : जिन्होंने हिंदी में व्यंग्य को विधा का दर्जा दिलाया

Harishankar Parsai: Noted satirist and humorist of modern Hindi literature

प्रसिद्ध लेखक हरिशंकर परसाई हिंदी के पहले रचनाकार हैं जिन्होंने व्यंग्य को विधा का दर्जा दिलाया और उसे हल्के–फुल्के मनोरंजन की परंपरागत परिधि से उबारकर समाज के व्यापक प्रश्नों से जोड़ा। उन्होंने अपने व्यंग्य के द्वारा बार-बार पाठको का ध्यान व्यक्ति और समाज की उन कमजोरियों और विसंगतियो की ओर आकृष्ट किया है जो हमारे जीवन को दूभर बना रही है।

सामाजिक और राजनीतिक जीवन में व्याप्त भ्रष्टाचार एवं शोषण पर उन्होंने करारा व्यंग्य किया है। उनकी व्यंग्य रचनाएँ हमारे मन में गुदगुदी ही पैदा नहीं करतीं बल्कि हमें उन सामाजिक वास्तविकताओं के आमने–सामने खड़ा करती है। उनका समूचा साहित्य वर्तमान से मुठभेड़ करता हुआ दिखाई देता है।

आवारा भीड़ के खतरे, में वे लिखते हैं ,

“दिशाहीन, बेकार, हताश, नकारवादी, विध्वंसवादी युवकों की यह भीड़ खतरनाक होती है. इसका प्रयोग महत्वाकांक्षी खतरनाक विचारधारा वाले व्यक्ति और समूह कर सकते हैं. इस भीड़ का उपयोग नेपोलियन, हिटलर और मुसोलिनी ने किया था. यह भीड़ धार्मिक उन्मादियों के पीछे चलने लगती है. यह भीड़ किसी भी ऐसे संगठन के साथ हो सकती है, जो उनमें उन्माद और तनाव पैदा कर दे. फिर इस भीड़ से विध्वंसक काम कराए जा सकते हैं. यह भीड़ फासिस्टों का हथियार बन सकती है. हमारे देश में यह भीड़ बढ़ रही है. इसका उपयोग भी हो रहा है. आगे इस भीड़ का उपयोग सारे राष्ट्रीय और मानव मूल्यों के विनाश के लिए, लोकतंत्र के नाश के लिए करवाया जा सकता है.”

किताब : आवारा भीड़ के खतरे
लेखक : हरिशंकर परसाई
प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन
मूल्य : 175/-

‘निठल्ले की डायरी’ में वे लिखते हैं

“-स्वामीजी, दुसरे देशो में लोग गाय की पूजा नही करते, पर उसे अच्छी तरह रखते है और वह बहुत खूब दूध देती है।
– बच्चा , दूसरे देशो की बात छोडो। हम उनसे बहुत ऊँचे है। देवता इसीलिय सिर्फ हमारे यहाँ अवतार लेते है। दुसरे देशो में गाय दूध के उपयोग के लिए होती है, हमारे यहाँ दँगा करने, आंदोलन करने के लिए होती है। हमारी गाय और गायो से भिन्न है।
– स्वामीजी, और सब समस्याएं छोड़कर आप लोग इसी एक काम में क्यों लग गए है?
– इसी से सब हो जाएगा बच्चा! अगर गोरक्षा का क़ानून बन जाए तो यह देश अपने आप समृध्द हो जाएगा। फ़िर बादल समय पर पानी बरसाएंगे, भूमि खूब अन्न देगी और कारखाने बिना चले भी उत्पादन करेंगे। धर्म का प्रताप तुम नही जानते। अभी जो देश की दुर्दशा है, वह गौ के अनादर के कारण ही है।
– एक और बात बताइये। कई राज्यो में गौ रक्षा के लिए क़ानून है बाकी में समाप्त हो जाएगा। आगे आप किस बात पर आंदोलन करेंगे?
– अरे बच्चा, आंदोलन के लिए बहुत विषय है। सिंह दुर्गा का वाहन है। उसे सर्कस वाले पिंजरे में बंद करके रखते है और उससे खेल कराते है। यह अधर्म है। सब सर्कसो के खिलाफ आंदोलन करके, देश के सारे सर्कस बन्द करवा देंगे। फिर भगवान का एक अवतार मत्स्यावतर भी है। मछली भगवान का प्रतीक है। हम मछुओ के खोलाफ आंदोलन छेड़ देंगे। सरकार का मत्स्यपालन विभाग बन्ध करवा देंगे।
– स्वामीजी उल्लू लक्ष्मी जी का वाहन है। उसके लिए भी तो कुछ करना चाहिये।
– यह सब उसीके लिए तो कर रहे है, बच्चा! इस देश में उल्लू को कोई कष्ट नही है। वह मजे में है।”

किताब : ‘निठल्ले की डायरी’
लेखक : हरिशंकर परसाई
प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन
मूल्य : 150/-

‘विकलांग श्रद्धा का दौर’ में वे लिखते हैं

“मैं ईसा की तरह सूली पर से यह नहीं कहता – पिता, उन्हें क्षमा कर। वे नहीं जानते वे क्या कर रहे हैं। मैं कहता – पिता, इन्हें हरगिज क्षमा न करना। ये कम्बख्त जानते हैं कि ये क्या कर रहे हैं।”

“भरत ने कहा – स्मगलिंग तो अनैतिक है। पर स्मगल किए हुए सामान से अपना या अपने भाई-भतीजे का फायदा होता है, तो यह काम नैतिक हो जाता है। जाओ हनुमान, ले जाओ दवा।
मुंशी से कहा – रजिस्टर का पन्ना फाड़ दो।”

“हीनता के रोग में किसी के अहित का इंजेक्शन बड़ा कारगर होता है।”

“बड़े कठोर आदमी है। शादी -ब्याह नहीं किया। न बाल – बच्चे। घूस भी नहीं चलेगी।”

“श्रद्धा ग्रहण करने की भी एक विधि होती है! मुझसे सहज ढंग से अभी श्रद्धा ग्रहण नहीं होती! अटपटा जाता हूँ! अभी ‘पार्ट टाइम’ श्रधेय ही हूँ! कल दो आदमी आये! वे बात करके जब उठे तब एक ने मेरे चरण छूने को हाथ बढाया! हम दोनों ही नौसिखुए! उसे चरण चूने का अभ्यास नहीं था, मुझे छुआने का! जैसा भी बना उसने चरण छु लिए! पर दूसरा आदमी दुविधा में था! वह तय नहीं कर प् रहा था कि मेरे चरण छूए य नहीं! मैं भिखारी की तरह उसे देख रहा था! वह थोडा-सा झुका! मेरी आशा उठी! पर वह फिर सीधा हो गया! मैं बुझ गया! उसने फिर जी कदा करके कोशिश की! थोडा झुका! मेरे पाँवो में फडकन उठी! फिर वह असफल रहा! वह नमस्ते करके ही चला गया! उसने अपने साथी से कहा होगा- तुम भी यार, कैसे टूच्चो के चरण छूते हो! “

किताब : ‘विकलांग श्रद्धा का दौर’
लेखक : हरिशंकर परसाई
प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन
मूल्य : 150/-

‘तुलसीदास चन्दन घिसे’ में वे लिखते हैं

“साधो, अब करना यह चाहिए। रोज़ विधान सभा के बाहर एक बोर्ड पर आज का बाजार भाव लिखा रहे। साथ ही उन विधायकों की सूची चिपकी रहे, जो बिकने को तैयार हैं। इससे ख़रीददार को भी सुभीता होगा और माल को भी।”

किताब : ‘तुलसीदास चन्दन घिसैं’
लेखक : हरिशंकर परसाई
प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन
मूल्य : 150/-

परसाई जी की मान्यता रही कि सामाजिक अनुभव के बिना सच्चा और वास्तविक साहित्य लिखा ही नही जा सकता। सामाजिक विसंगतियो के प्रति गहरा सरोकार रखने वाला ही लेखक सच्चा व्यंग्यकार हो सकता है। परसाई जी सामायिक समय का रचनात्मक उपयोग करते है। उनका समूचा साहित्य वर्तमान से मुठभेड़ करता हुआ दिखाई देता है। परसाई जी हिन्दी साहित्य में व्यंग विधा को एक नई पहचान दी और उसे एक अलग रूप प्रदान किया।

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