Popular blogs

All blogs collections

अब लीजिए भी चचा!

तो अब यह तय हो गया है कि घूसखोरी के बिना कोई चारा नहीं। लाचारी का नाम है घूस। आचार भी लाचार हो गये है इसके सामने। व्यवहार में घुस आयी है यह। आचार में टंकित हो...

साहित्य
सपने में आए अरविन्द केजरीवाल साहब!!

पत्नी जी ने रात को सपना देखा. और सपने में अरविन्द केजरीवाल साहब को देखा. सुबह उठते ही बोली कि आओ, पहले सपना सुनो, चाय बाद में बनाना. ऐसा सुअवसर खाकसार को कभी-कभी...

अरविन्द केजरीवाल साहित्य
भारत जीता!?

मुझे आपको यह बतलाते हुए अपार गंभीर होना पड़ रहा है कि भारत जीत गया. भारत, जो आदतन जीतने के प्रति कभी गंभीर नहीं रहा, जीत गया. यूँ मैं गंभीर नहीं हो पाता, भारत की...

खेल खेल-भावना
साहित्य का काण्ड पंडित

उन्होंने साहित्य मर्मज्ञ के चरणकमल कसकर पकड़ लिए और दुहाई देने लगे, ‘‘गुरूदेव, मुझे विधिवत् शिष्य स्वीकार करो। कब से तड़फ रहा हूं, अंगीकार करो। बना दो मुझे...


नया सालः नये हथकण्डे

पुराना साल जा चुका है। बिलकुल लुटे-पिटे राहगीर की तरह। राहगीर की हालत, राह में लुटने के बाद कैसी होती है, यह पुराना साल जाते-जाते दिखा गया। पुराने साल की शक्ल...


बस, तू कब आयेगी!

बस की प्रतीक्षा में खड़ा यात्री स्वयं से पूछता है- बस, तू कब आएगी? दुनिया में बस ही एक ऐसी चीज है जिसके बारे में प्रतीक्षारत् यात्री कभी नहीं कहता, कि अब ‘बस’...


लघुकथा संकलन स्वाभिमान पुस्तक लोकार्पण व् लघुकथा स्वाभिमान दिवस

आज मातृभारती.कॉम आयोजित राष्ट्रीय लघुकथा प्रतियोगिता में श्रेष्ठ लघुकथाओं को पुस्तक स्वरूप देकर पुस्तक लोकार्पण कार्यक्रम रखा गया। लघुकथा संकलन का नाम...


डायरी जी

११ मई. १९१२. यानी आज से सौ बरस पहले जन्म हुआ था सआदत हसन मंटो का. मंटो के नाम से हिंदी का शायद ही कोई पाठक अपरिचित होगा. उनकी विवादस्पद कहानियां, जैसे काली सलवार,...


डेमोक्रेसी का डेकोरम

कल स्वतन्त्रता दिवस है। यह बहस का विषय हो नहीं सकता। इस मामले में बहस की कोई गुंजाइश ही नहीं है। और फिर बहस तो छोटे बच्चों का विषय है। जब तिरंगे, बिकने के लिए...


एक गरीब की दीपावली

यह एक गरीब था और दीपावली मनाना चाहता था। किन्तु उसे दुःख था कि वह गरीब है और दीपावली धूमधाम से नहीं मना सकता। वह अपनी गरीबी पर इस हद तक शर्मिन्दा था कि एक बार...


तक़दीर का फंसाना

छोटे शहर में ऑटो कम, रिक्शाएं ज्यादा होती हैं। रिक्शा चलाने वाले को रिक्शावाला कहा जाता है। रिक्शावाला बचपन से रिक्शावाला नहीं होता। बचपन में वो रिक्शावाले...


शाहरुख़ नहीं, रईस !!

रईस में शाहरुख़ नहीं, शाहरुख़ में रईस हैं। और ये कारनामा करने वाले खुद शाहरुख़ हैं। इस लिहाज से उनका ये बोल्ड स्टेप है। वही बोल्ड स्टेप जो उन्होंने बाज़ीगर में...


महिलाओं पर राष्ट्रीय सहमति

महिलायें लोकतांत्रिक राष्ट्र की सबसे सुन्दर वस्तु हैं इसलिये इन पर राष्ट्रीय सहमति बनानी अत्यन्त आवश्यक है। एक बार राष्ट्रीय सहमति का ठप्पा लग गया तो फिर...


फ़िल्म समीक्षा/ठग्स ऑफ हिंदुस्तान

ठगों का नाम सुनकर कभी किसी काल में, बरसों पूर्व, पसीने निकल जाते होंगे। लेकिन निर्देशक विजय कृष्ण आचार्य की "ठग्स ऑफ इंडिया" देखने पर पैसे निकले, पसीने नहीं।...


कविता मातृ दिवस पर/ जिनकी माँ नहीं होती।

जिन बच्चों की माँ नहीं होती बाप ज़िम्मेदारी निभाते हैं माँ की भी जिस तरह भगवान में आस्था होने पर लोग पत्थर को भगवान मान लेते हैं बच्चे भी ढूंढ लेते हैं बाप की...