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Devendra Pathak

Writer

देवेंद्र कुमार पाठक का जन्म 27 अगस्त 1956 को मध्य प्रदेश कटनी के एक छोटे गाँव भुड़सा में हुआ था। देवेंद्र कुमार pathak ने एम ए की डिग्री हासिल कर शिक्षण को चुना एवं 2017 में शालेय शिक्षा विभाग म प्र से सेवा निवृत्त हुए। साहित्य एवं लेखन की तरफ देवेंद्र कुमार पाठक का युवावस्था से ही रुझान रहा , आप महरूम तखल्लुस से ग़ज़ल कहते हैं। लेखन 1981 से ही देवेंद्र कुमार पाठक की रचनाएँ विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित व् आकाशवाणी तथा दूरदर्शन से प्रसारित होती रही हैं। अब तक देवेंद्र कुमार पाठक के चार कहानी संग्रह - मुहीम, धरम धरे को दंड (उद्भावना प्रकाशन, दिल्ली) , मरी खाल आखिरी ताल व् चनसुरिया का सुख (अयन प्रकाशन, दिल्ली) दो उपन्यास - विधर्मी (उद्भावना प्रकाशन, दिल्ली) व अदना सा आदमी (बुक रिवर, लखनऊ) तथा तीन कविता संग्रह - गीत नवगीत संग्रह - दुनिया नहीं अँधेरी होगी (उद्भावना प्रकाशन, दिल्ली) , ग़ज़ल संग्रह - ओढ़ने को आस्मां है (अयन प्रकाशन, दिल्ली) और आये नहीं सुदिन हिंदी कविता की चार विधाओं, छंदमुक्त, गीत - नवगीत, ग़ज़ल और दोहों का संग्रह (सन्मति प्रकाशन, हापुड़ दिल्ली) से प्रकाशित हुए हैं। एक कथेतर पुस्तक दो गज़ ज़मीन भी न मिली (बी एफ सी प्रकाशन, लखनऊ) एवं उस जन्मभूमि, घर -देहरी से खंड काव्य, (नित्या प्रकाशन, भोपाल) से प्रकाशित हुए हैं।...

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Aaye Nahin Sudin

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आज कविता की पहचान पर ही सवाल उठते हैं कि कविता किसे मानें? क्योंकि जिसे हम कविता कहते हैं या जिसे कविता के रूप में रोज़मर्रा की ज़िंदगी में पढ़ते, जानते-पहचानते, बूझते-समझते और मानते रहे हैं; वह कविता जो जन-जन की, जन-जन में रच-बसी होती है, जिसमें आम बहुसंख्य भारतीय जन का जीवन अंटता-समाता, उजागर होता है, वह कविता कहाँ है, कैसी है? हिंदी और तमाम भारतीय भाषाओं, क्षेत्रीय बोलियों की फिल्मों, हरियाणवी, भोजपुरी गानों में जो है क्या वह कविता है? वह कविता है जिसे कवि अब मंचों, समाचार-चैनलों पर सुनाता है, खूब हँसाता है और जो पंडालों में भारी-भरकम बाजों-गाजों, मधुर कण्ठस्वरों से भक्तमंडली को सुनाई-गाई जा रही है या जो सड़कों के किनारे मजमा लगाकर बच्चों द्वारा ढोलक बजाकर सुनाई जा रही है, वह कविता है? समूचे तौर पर विचार आलेख के रूप में जो लिखी जा रही है, वह कविता है या, जो परंपरागत छंद या नये छंद और शिल्प में आ रही है, वह कविता है? कविता, जिसे लोगों तक पहुँचाने के लिए कभी गोपाल सिंह नेपाली गाँव-गाँव, सड़क-सड़क गाते थे; रमेश रंजक किताबों के रूप में छाप कर हाट-मेलों में बेचने निकल पड़े थे या वह जो आंदोलित लोगों के समवेत कण्ठों से सड़कों पर मुखरित होती है । पत्र-पत्रिकाओं में छपने वाली कवियों की किसी भी रूप की कविताओं को हम क्यों बांटकर देखते हैं? कमोबेश कविता किसी न किसी रूप में जहाँ भी है, गीतात्मकता और लय लिये हुए है, समूची प्रकृति लय से परिपूर्ण है...

ISBN: 9789390539468

MRP: 225

Language: Hindi

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