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Television Samiksha Siddhant Aur Vyavhar
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Television Samiksha Siddhant Aur Vyavhar

by Sudhish Pachauri
4.6
4.6 out of 5

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Creators
Publisher Vani Prakashan
Synopsis टीवी की समीक्षा की कोई सिद्धितिकी नहीं हो सकती। उसकी यदि कोई सिद्धांतिकी संभव है तो वह चिन्ह विज्ञान, डिक्स्ट्रकशन, संचार-प्रक्रियाओं , प्रभाव प्रक्रियाओं और जनसंचार के अर्थशाश्त्र को समग्रता में समझकर हि संभव है। यों टीवी का ‘समीक्षक’ हर दर्शक है, लेकिन टीवी का विमर्श विकसित करना एक व्यावहारिक कार्य है, जो हर वक़्त होता रहता है। इसीलिए आप टीवी पर या जनसंचार पर दो किताबें टिप कर तीसरी किताब नहीं बना सकते। मीडिया पर लिखना क्षण का क्षण में लिखना होता है। वह किसी किताब की नकल से नहीं बनता। यह किताब जिस बात को मजबूरती के साथ उठती है वह यह कि टीवी समीक्षक के बारे में एक बार लिखता कि टीवी समीक्षक ‘संत’ नहीं हो सकता और ‘अजदक’ तो कभी ‘संत’ हो हि नही सकता था। यह किताब पाठक के सामने टीवी कि नयी बहस रखती है जिससे उसका निहितार्थ जुड़ा हुआ है।

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Binding: HardBack
About the author सुधीश पचौरी (जन्म 1948 ; अलीगढ़) हिन्दी साहित्यकार, आलोचक एवं मीडिया विश्लेषक हैं। वे समकालीन साहित्यिक-विमर्श, मीडिया-अध्‍ययन, पॉपुलर संस्‍कृति एवं सांस्‍कृतिक अध्‍ययन के विद्वान के रूप में प्रसिद्ध हैं। सम्प्रति वे दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्राध्यापक हैं। सुधीश पचौरी के साहित्यिक योगदान के लिए इन्‍हें भारतेन्दु हरिश्‍चन्द्र सम्‍मान, हिन्दी साहित्यिक सम्‍मान और रामचन्द्र शुक्‍ल सम्‍मान से सम्‍मानित किया जा चुका है। केंद्रीय हिंदी संस्थान ने हिंदी आलोचना के क्षेत्र में अप्रतिम हिंदी सेवा करने के लिए उन्हें सुब्रह्मण्‍य भारती पुरस्‍कार से सम्‍मानित किया है। आपकी प्रमुख कृतियाँ - नई कविता का वैचारिक आधार, कविता का अन्त, दूरदर्शन की भूमिका, दूरदर्शन : स्वायत्तता और स्वतंत्रता, उत्तर आधुनिकता और उत्तरसंचरनावाद, उत्तर आधुनिक परिदृश्य, नवसाम्राज्यवाद और संस्कृति, दूरदर्शन : दशा और दिशा, नामवर के विमर्श, दूरदर्शन : विकास से बाजार तक, उत्तर आधुनिक साहित्यिक विमर्श, मीडिया और साहित्य, उत्तर केदार, देरिदा का विखंडन और साहित्य, साहित्य का उत्तरकांड : कला का बाजार, टीवी टाइम्स, इक्कीसवीं सदी का पूर्वरंग, अशोक वाजपेयी : पाठ कुपाठ, प्रसार भारती और प्रसारण-परिदृश्य, साइबर-स्पेस और मीडिया, स्त्री देह के विमर्श, आलोचना से आगे, हिन्दुत्व और उत्तर आधुनिकता, मीडिया जनतंत्र और आतंकवाद, विभक्ति और विखण्डन, नए जनसंचार माध्यम और हिन्दी, जनसंचार माध्यम, भाषा और साहित्य, निर्मल वर्मा और उत्तर-उपनिवेशवाद।
Specifications
  • Language: Hindi
  • Publisher: Vani Prakashan
  • Pages: 312
  • Binding: HardBack
  • ISBN: 9788181434517
  • Category: Novel
  • Related Category: Modern & Contemporary
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