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Sona Aur Khoon - 3
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Sona Aur Khoon - 3

by Acharya Chatursen
4.4
4.4 out of 5

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Creators
Publisher Rajpal
Synopsis "‘‘सोने का रंग पीला होता है और खून का रंग सुर्ख। पर तासीर दोनों की एक है। खून मनुष्य की रगों में बहता है, और सोना उसके ऊपर लदा हुआ है। खून मनुष्य को जीवन देता है, जबकि सोना उसके जीवन पर खतरा लाता है। पर आज के मनुष्य का खून पर उतना मोह नहीं है, जितना सोने पर है। वह एक-एक रत्ती सोने के लिए अपने शरीर की एक-एक बूँद खून बहाने को आमादा है। जीवन को सजाने के लिए वह सोना चाहता है, और उसके लिए खून बहाकर वह जीवन को खतरे में डालता है। आज के सभ्य संसार का यह सबसे बड़ा कारोबार है।’’ सोना और खून आचार्य चतुरसेन का चार भागों में लिखा उत्कृष्ट उपन्यास है जिसकी उल्लेखनीय विशेषता यह है कि इसका हर भाग अपने में सम्पूर्ण है। लेखक का लक्ष्य इस उपन्यास को दस भागों में पूरा करने का था, लेकिन अपने जीवनकाल में वे मात्र चार भाग ही लिख पाये। 1957 में प्रकाशित यह उपन्यास जितना उस समय लोकप्रिय था, उतना ही आज भी है। "

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Binding: HardBack
About the author आचार्य चतुरसेन शास्त्री (26 अगस्त 1891 – 2 फ़रवरी 1960) हिन्दी भाषा के एक महान उपन्यासकार थे। इनका जन्म उत्तर प्रदेश के बुलन्दशहर जिले के चांदोख में हुआ था। आचार्य का अधिकांश लेखन ऐतिहासिक घटनाओं पर आधारित था। चतुरसेन शास्त्री हिन्दी के उन साहित्यकारों में हैं जिनका लेखन-क्रम साहित्य की किसी एक विशिष्ट विधा में सीमित नहीं किया जा सकता। उन्होने ने लगभग पचास वर्ष के लेखकीय जीवन में 177 कृतियों का सृजन किया।वे मुख्यत: अपने उपन्यासों के लिए चर्चित रहे हैं। उन्होंने अपनी किशोरावस्था से ही हिन्दी में कहानी और गीतिकाव्य लिखना आरंभ कर दिया था। बाद में उनका साहित्य-क्षितिज फैलता गया और वे उपन्यास, नाटक, जीवनी, संस्मरण, इतिहास तथा धार्मिक विषयों पर लिखने लगे। शास्त्रीजी अध्येता ही नहीं, कुशल चिकित्सक भी थे। उन्होंने आयुर्वेद संबंधी लगभग एक दर्जन ग्रंथ लिखे। व्यवसाय से वैद्य होने पर भी उन्होंने साहित्य-सर्जन में गहरी रुचि बनाए रखी। शास्त्रीजी अपनी शैली के अनोखे लेखक थे, जो अपने कथा-साहित्य में भी इतिहास, राजनीति, धर्मशास्त्र, समाजशास्त्र और युगबोध से सम्पृक्त विविध विषयों को दृष्टि में रखकर लिखते थे। उन्होंने उपन्यासों के अलावा और भी बहुत कुछ लिखा है। उन्होने प्राय: साढ़े चार सौ कहानियाँ लिखीं हैं। गद्य-काव्य, धर्म, राजनीति, इतिहास, समाजशास्त्र के साथ-साथ स्वास्थ्य एवं चिकित्सा पर भी उन्होंने अधिकारपूर्वक लिखा है। रचनाकारों ने तिलस्मी एवं जासूसी उपन्यास लिखे जो कि उन दिनों अत्यन्त लोकप्रिय हुए।आचार्य चतुरसेन के उपन्यास रोचक और दिल को छूने वाले होते है। यह बचपन से ही आर्य समाज से प्रभावित थे और इन्होंने अनाज मंडी शाहदरा का घर दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड को दान कर दिया था, जिसमें आजकल विशाल लाइब्रेरी है।इनका अधिकतर लेखन ऐतिहासिक घटनाओं पर आधारित है। इनकी प्रमुख कृतियां गोली, सोमनाथ, वयं रक्षाम: और वैशाली की नगरवधू , सोना और खून (तीन खंड), रक्त की प्यास, हृदय की प्यास, अमर अभिलाषा, नरमेघ, अपराजिता, धर्मपुत्रइत्यादि हैं। आभा इनकी पहली रचना थी।
Specifications
  • Language: Hindi
  • Publisher: Rajpal
  • Pages: 304
  • Binding: HardBack
  • ISBN: 9789386534255
  • Category: Classics & Literary
  • Related Category: Classics
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