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Rani Nagfani Ki Kahani
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Rani Nagfani Ki Kahani

by Harishankar Parsai
4.3
4.3 out of 5

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Creators
Publisher Vani Prakashan
Synopsis यह एक व्यंग्य कथा है। ‘फेंटजी’ के माध्यम से लेखक ने आज की वास्तविकता के कुछ पहलुओं की आलोचना की है। ‘फेंटेजी’ का माध्यम कुछ सुविधाओं के कारण चुना गया है। लोक-मानस से परंपरागत संगति के कारण ‘फेंटेजी’ की व्यंजना प्रभावकारी होती है इसमें स्वतंत्रता भी काफी होती है और कार्यकारण संबंध का शिकंजा ढीला होता है। यों इनकी सीमाएं भी बहुत हैं। लेखक ‘शाश्वत-साहित्य’ रचने का संकल्प करके लिखने नहीं बैठता। जो अपने युग के प्रति ईमानदार नहीं होता, वह अनंतकाल के प्रति कैसे हो लेता है? लेखक पर ‘शिष्ट हास्य’ का रिमार्क चिपका रहा है। जो उन्हे हास्यापद लगता है। महज हँसाने के लिए लेखक ने शायद ही कभी कुछ लिखा हो और शिष्ट तो वह कभी रहे ही नहीं। यह पुस्तक पाठक के घाव को कुरेदने की एक कोशिश है जो उन्हें ही दर्द देगी जिनके अंदर खौट है।

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Binding: PaperBack
About the author हरिशंकर परसाई (22 अगस्त, 1924 - 10 अगस्त, 1995) हिंदी के प्रसिद्ध लेखक और व्यंगकार थे। उनका जन्म जमानी, होशंगाबाद, मध्य प्रदेश में हुआ था। वे हिंदी के पहले रचनाकार हैं जिन्होंने व्यंग्य को विधा का दर्जा दिलाया और उसे हल्के–फुल्के मनोरंजन की परंपरागत परिधि से उबारकर समाज के व्यापक प्रश्नों से जोड़ा। उनकी व्यंग्य रचनाएँ हमारे मन में गुदगुदी ही पैदा नहीं करतीं बल्कि हमें उन सामाजिक वास्तविकताओं के आमने–सामने खड़ा करती है, जिनसे किसी भी व्यक्ति का अलग रह पाना लगभग असंभव है। लगातार खोखली होती जा रही हमारी सामाजिक और राजनैतिक व्यवस्था में पिसते मध्यमवर्गीय मन की सच्चाइयों को उन्होंने बहुत ही निकटता से पकड़ा है। सामाजिक पाखंड और रूढ़िवादी जीवन–मूल्यों की खिल्ली उड़ाते हुए उन्होंने सदैव विवेक और विज्ञान–सम्मत दृष्टि को सकारात्मक रूप में प्रस्तुत किया है। उनकी भाषा–शैली में खास किस्म का अपनापा है, जिससे पाठक यह महसूस करता है कि लेखक उसके सामने ही बैठा है ।
Specifications
  • Language: Hindi
  • Publisher: Vani Prakashan
  • Pages: 124
  • Binding: PaperBack
  • ISBN: 9789352292042
  • Category: Satire & Humour
  • Related Category: Humour
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