logo
Home Nonfiction Reference Work PRISON DAYS AND OTHER POEMS : NILAMBARI : SIGNS AND SILENCE : FIRST PERSON SECOND PERSON
product-img product-img
PRISON DAYS AND OTHER POEMS : NILAMBARI : SIGNS AND SILENCE : FIRST PERSON SECOND PERSON
Enjoying reading this book?

PRISON DAYS AND OTHER POEMS : NILAMBARI : SIGNS AND SILENCE : FIRST PERSON SECOND PERSON

by Sachchidananda hirananda vatsyayan ajneya
4.2
4.2 out of 5

publisher
Creators
Publisher RUPA PUBLICATIONS
Synopsis

Enjoying reading this book?
Binding: Paperback
About the author सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन "अज्ञेय" (7 मार्च, 1911 - 4 अप्रैल, 1987) को कवि, शैलीकार, कथा-साहित्य को एक महत्त्वपूर्ण मोड़ देने वाले कथाकार, ललित-निबन्धकार, सम्पादक और अध्यापक के रूप में जाना जाता है। इनका जन्म 7 मार्च 1911 को उत्तर प्रदेश के कसया, पुरातत्व-खुदाई शिविर में हुआ।बचपन लखनऊ, कश्मीर, बिहार और मद्रास में बीता। बी.एससी. करके अंग्रेजी में एम.ए. करते समय क्रांतिकारी आन्दोलन से जुड़कर बम बनाते हुए पकड़े गये और वहाँ से फरार भी हो गए। सन्1930 ई. के अन्त में पकड़ लिये गये। अज्ञेय प्रयोगवाद एवं नई कविता को साहित्य जगत में प्रतिष्ठित करने वाले कवि हैं। अनेक जापानी हाइकु कविताओं को अज्ञेय ने अनूदित किया। बहुआयामी व्यक्तित्व के एकान्तमुखी प्रखर कवि होने के साथ-साथ वे एक अच्छे फोटोग्राफर और सत्यान्वेषी पर्यटक भी थे। प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा पिता की देख रेख में घर पर ही संस्कृत, फारसी, अंग्रेजी और बांग्ला भाषा व साहित्य के अध्ययन के साथ हुई। 1925 में पंजाब से एंट्रेंस की परीक्षा पास की और उसके बाद मद्रास क्रिस्चन कॉलेज में दाखिल हुए। वहाँ से विज्ञान में इंटर की पढ़ाई पूरी कर 1927 में वे बी.एससी. करने के लिए लाहौर के फॅरमन कॉलेज के छात्र बने। 1929 में बी. एससी. करने के बाद एम.ए. में उन्होंने अंग्रेजी विषय लिया; पर क्रांतिकारी गतिविधियों में हिस्सा लेने के कारण पढ़ाई पूरी न हो सकी। 1930 से 1936 तक विभिन्न जेलों में कटे। 1936-37 में सैनिक और विशाल भारत नामक पत्रिकाओं का संपादन किया। 1943 से 1946 तक ब्रिटिश सेना में रहे; इसके बाद इलाहाबाद से प्रतीक नामक पत्रिका निकाली और ऑल इंडिया रेडियो की नौकरी स्वीकार की। देश-विदेश की यात्राएं कीं। जिसमें उन्होंने कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय से लेकर जोधपुर विश्वविद्यालय तक में अध्यापन का काम किया। दिल्ली लौटे और दिनमान साप्ताहिक, नवभारत टाइम्स, अंग्रेजी पत्र वाक् और एवरीमैंस जैसी प्रसिद्ध पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया। 1980 में उन्होंने वत्सलनिधि नामक एक न्यास की स्थापना की जिसका उद्देश्य साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में कार्य करना था। दिल्ली में ही 4 अप्रैल 1987 को उनकी मृत्यु हुई। 1964 में आँगन के पार द्वार पर उन्हें साहित्य अकादमी का पुरस्कार प्राप्त हुआ और 1978 में कितनी नावों में कितनी बार पर भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार।
Specifications
  • Language: English
  • Publisher: RUPA PUBLICATIONS
  • Pages: 500
  • Binding: Paperback
  • ISBN: 9788129118141
  • Category: Reference Work
  • Related Category: Reference & Research
Share this book Twitter Facebook
Related articles
Related articles
Related Videos


Suggested Reads
Suggested Reads
Books from this publisher
THE DEFINITIVE CHARLES DICKENS by RUPA
BEYOND HORIZONS by MAJOR A K SINGH
THE CHILDREN OF THE NEW FOREST by CAPTAIN MARRYAT
GREAT STORIES BY NOBEL PRIZE WINNERS by EDMOND VOLPE
LITTLE RED BOOK WORD FACTS by Terry O’Brien
THE MANAGERS PHRASE BOOK by PATRICK ALAIN
Books from this publisher
Related Books
HISTORY ON A BANNER NEERU NANDA
MARVELS OF INDIAN IRON THROUGH THE AGES BALA SUBRAMANIAM
THE CHANGING FACE OF BUREAUORACY SANJOY BAGCHI
RELIGION, INTER-COMMUNITY RELATIONS AND THE KASHMIR CONFLICT YOGINDER SIKAND
INDIA AT TURNING POINT T S R SUBRAMANIAN
COMING BLOWBACK WILSON JOHN
Related Books
Bookshelves
Stay Connected